
आज कई लोग यह मान लेते हैं कि कैंसर सिर्फ बढ़ती उम्र की समस्या है या वह लाइफ में बहुत समय बाद ही शुरू होता है। लेकिन जब बात कोलन कैंसर की आती है, तो वह अक्सर चुपके से शुरू होता है और शुरुआती दौर में लक्षण बहुत मामूली होते हैं। इसी कारण एक सिंपल और नियमित स्क्रीनिंग टेस्ट को डॉक्टर लाइफ सेवर कहते हैं क्योंकि यह जल्दी पहचान कर इलाज को संभव बनाता है। आज हम जानेंगे कि कोलन कैंसर क्या है, कौनसे रिस्क है, वह कौन-सा टेस्ट है जिसे सिंपल कहा जा रहा है और कैसे आप खुद को इससे कैंसर से सेफ रख सकते हैं।
कोलन हमारे पाचन तंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। जब इस हिस्से की कोशिकाएं अनियंत्रित रूप से बढ़ने लगें, तो कोलन कैंसर पैदा हो सकता है। अक्सर यह पॉलिप्स नामक छोटी ग्रोथ से शुरू होता है, जो धीरे-धीरे बदरूप होकर कैंसर में बदल सकती है। यह बीमारी खासतौर पर बढ़ती उम्र, रेगुलर खराब डाइट और लाइफस्टाइल हैबिट्स खराब होने की वजह से देखी जाती है।
और पढ़ें - सिर्फ एक दाना चूना और आपकी हड्डियां होंगी लोहे जैसी, जानिए क्या कहते हैं एक्सपर्ट
कुछ ऐसे फैक्टर हैं जो यह संकेत देते हैं कि किसी व्यक्ति को कोलन कैंसर का खतरा अधिक हो सकता है। जैसे अधिकांश मामले 50 वर्ष के बाद पाये जाते हैं। फैमिली हिस्ट्री भी इसका कारण बनती है जैसे अगर किसी नजदीकी रिश्तेदार को इस तरह का कैंसर हो चुका है। इसके अलावा कोलन में पॉलिप्स होना, इनफ्लेमेटरी बाउल डिजीज, क्रॉन, अल्सरेटिव कोलाइटिस जैसी बीमारियों से ग्रस्त होना भी इसके कारण हैं। साथ ही कम फाइबर, ज्यादा रेड मीट, प्रोसेस्ड फूड और एक्टिव लाइफस्टाइल न होना भी इसकी वजह हैं।
और पढ़ें - पेट की चर्बी से हो रहा कैंसर? ये नई स्टडी महिलाएं जरूर पढ़ें
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, इस सिंपल टेस्ट से अंगूठे के निशान मात्र में कोलन कैंसर या कोलन संबंधी जोखिम का अनुमान लग सकता है। आमतौर पर यह टेस्ट स्टूल (मल) का माइक्रोब्लड टेस्ट होता है, जिसे FOBT (Fecal Occult Blood Test) या FIT (Fecal Immunochemical Test) कहा जाता है। यह टेस्ट मल में छिपे खून को डिटेक्ट करता है। यदि मल में कोई रक्त मौजूद हो, तो यह पॉलिप्स या कैंसर की संभावना की चेतावनी हो सकती है। यह टेस्ट साधारण, सस्ता और गैर-इनवेसिव (शरीर में छेद नहीं करने वाला) होता है। समय रहते इसका उपयोग कर कैंसर को शुरुआती चरण में पकड़ा जा सकता है, जिससे ट्रीटमेंट सफल होने की संभावना बढ़ जाती है। डॉक्टर अक्सर सलाह देते हैं कि 50 वर्ष की आयु के बाद सभी को यह टेस्ट हर साल या हर 2 साल में कराना चाहिए।