बुखार बच्चे और वयस्कों को कमजोर बना देता है। माता-पिता हमेशा अक्सर अपने बच्चों को लेकर यही सोचते हैं कि क्या उनके टेंपरेचर को लेकर चिंता करनी चाहिए। तो चलिए बताते हैं बॉडी का तापमान कितना होना चाहिए और किस स्थिति में डॉक्टर से दिखाने की जरूरत है।
हेल्थ डेस्क. मौसम का बदलना, वैक्सीनेशन या फिर संक्रमण का होना किसी भी स्थिति में बॉडी का टेंपरेचर बदलता है। ज्यादा तापमान होने की स्थिति को बुखार कहते हैं। ज्यादा बुखार होने पर वयस्क काम नहीं कर पाते हैं और वहीं, बच्चे सुस्त पड़ जाते हैं। उनका स्कूल मिस होने लगता है। अक्सर माता-पिता इस बात को लेकर परेशान रहते हैं कि उनके बच्चे का टेंपरेचर अचानक बढ़ जाता है। क्या ऐसा होना नॉर्मल है या फिर चिंता करने की जरूरत है। आइए सबसे पहले समझते हैं कि बुखार है क्या।
बुखार क्या होता है
बुखार को शरीर के तापमान में अस्थायी बढ़ोतरी के रूप में परिभाषित किया गया है। नॉर्मल टेंपरेचर से अगर ये बढ़ जाए और शरीर को छूने पर गर्म होने का एहसास हो तो इस स्थिति को बुखार कहा जाता है। यह शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली यानी इम्युन सिस्टम के रिएक्शन का हिस्सा है। यह आमतौर पर किसी संक्रमण का परिणाम होता है।
कितना होना चाहिए शरीर का तापमान
भारत में मानव शरीर का तापमान 98.4 डिग्री फ़ारेनहाइट (अमेरिका जैसे कई देशों में 98.6 डिग्री फ़ारेनहाइट) आंका गया है। हालांकि यह टेंपरचेर कई लोगों में अलग-अलग होता है। लेकिन 96-99 के बीच टेंपरेचर नॉर्मल माना जाता है। इतना ही नहीं दिन के वक्त शरीर का तापमान थोड़ा बढ़ा रहता है। रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र के अनुसार, बुखार तब होता है जब शरीर का तापमान 100.4 डिग्री फ़ारेनहाइट के बराबर या उससे अधिक होता है। यह नियम आम तौर पर वयस्कों और बच्चों दोनों पर लागू होता है।
बच्चों के बुखार को लेकर कब करनी चाहिए चिंता
मेयो क्लीनिक के अनुसार यदि बच्चे का तापमान 103 डिग्री से अधिक हो और दवा से भी कम नहीं हो रहा हो तो तुरंत डॉक्टर के पास जाना चाहिए। 3 महीने से कम उम्र के बच्चे को अगर 100 डिग्री से ज्यादा टेंपरेचर हो तो भी चिंता करने की जरूरत होती है। यदि आपके बच्चे का बुखार टीकाकरण के 48 घंटे बाद भी कम नहीं होता है। तो फिर डॉक्टर से इसे लेकर सलाह लें। बच्चे ने अगर खाना-पीना छोड़ दिया हो और पेशाब नहीं कर रहा हो तो इस स्थिति में भी मदद की जरूरत पड़ती है।
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