
Hartalika Teej Significance:हरतालिका तीज एक ऐसा पर्व है जिसे सुहागन महिलाएं देवी पार्वती और भगवान शिव की पूजा-अर्चना के साथ मनाती हैं। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखकर सजधज कर पूरे मन से भक्ति करती हैं। रंग-बिरंगे परिधानों, मेहंदी और गीत-संगीत के बीच छिपी है एक गहरी कथा-पार्वती जी का दृढ़ संकल्प, प्रेम और भक्ति की अनोखी मिसाल। मां पार्वती ने शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी और उनके मिलने के बाद ही हरतालिका तीज की शुरुआत हुई।
हिमालयराज की पुत्री पार्वती जी (शैलपुत्री) का एक ही सपना था-भगवान शिव को पति के रूप में पाना। लेकिन नारद मुनि की सलाह पर उनके पिता ने उनका विवाह भगवान विष्णु से तय कर दिया। इस निर्णय से दुखी पार्वती जी अपनी सहेली से अपनी पीड़ा को साझा की। सहेली (आलिका) ने उन्हें इस विवाह से बचाने के लिए वन में ले जाकर (हरित) छिपा दिया। वहां पार्वती जी ने कठोर तप किया और केवल फल-पत्तों पर जीवित रहीं। उनकी निष्ठा और अटूट भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। बाद में हिमालयराज ने भी अपनी भूल को स्वीकार कर विवाह को आशीर्वाद दिया। इसी से हरितालिका तीज की परंपरा शुरू हुई। इस एक कहानी में प्रेम, भक्ति और दोस्ती की शक्ति झलकती है।
सुहागन महिलाएं पति लंबी उम्र के लिए व्रत करती हैं। वहीं कुंवारी अपने मनपसंद पति को पाने के लिए इस व्रत को करती हैं। इस दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं-सिंदूर, बिंदी, चूड़ी, बिछिया, पायल, काजल, मेहंदी, नथ, मंगलसूत्र, गजरा, इत्र, आलता, कर्णफूल, आभूषण, सुहाग की साड़ी और मांग टीका। यह श्रृंगार देवी पार्वती की आराधना का प्रतीक है। श्रृंगार स्त्री शक्ति, सुंदरता और आत्मविश्वास को भी दिखाता है।
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यह एक ऐसा पर्व है जिसे महिलाएं आज भी उसी परंपरा और श्रद्धा के साथ मनाती हैं, जैसे पहले मनाया जाता था। मंदिरों या घरों में सुहागन महिलाएं एकत्र होकर पूजा-अर्चना करती हैं, लोकगीत गाती हैं, नृत्य करती हैं और आपसी रिश्तों को मजबूत बनाती हैं।
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