हरितालिका तीज पर महिलाएं क्यों करती हैं 16 श्रृंगार, जानें देवी पार्वती के अटूट व्रत का रहस्य

Published : Aug 24, 2025, 04:37 PM IST
 Haritalika Teej

सार

Hartalika Teej में देवी पार्वती की तपस्या और भक्ति की कथा है। सुहागन महिलाएं पति लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत रखती हैं और 16 श्रृंगार के साथ पूजा करती हैं। यह पर्व आज भी पारंपरिक व आधुनिक रूप में हर्षोल्लास से मनाया जाता है। 

Hartalika Teej Significance:हरतालिका तीज एक ऐसा पर्व है जिसे सुहागन महिलाएं देवी पार्वती और भगवान शिव की पूजा-अर्चना के साथ मनाती हैं। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखकर सजधज कर पूरे मन से भक्ति करती हैं। रंग-बिरंगे परिधानों, मेहंदी और गीत-संगीत के बीच छिपी है एक गहरी कथा-पार्वती जी का दृढ़ संकल्प, प्रेम और भक्ति की अनोखी मिसाल। मां पार्वती ने शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी और उनके मिलने के बाद ही हरतालिका तीज की शुरुआत हुई।

हरतालिका तीज की कथा

हिमालयराज की पुत्री पार्वती जी (शैलपुत्री) का एक ही सपना था-भगवान शिव को पति के रूप में पाना। लेकिन नारद मुनि की सलाह पर उनके पिता ने उनका विवाह भगवान विष्णु से तय कर दिया। इस निर्णय से दुखी पार्वती जी अपनी सहेली से अपनी पीड़ा को साझा की। सहेली (आलिका) ने उन्हें इस विवाह से बचाने के लिए वन में ले जाकर (हरित) छिपा दिया। वहां पार्वती जी ने कठोर तप किया और केवल फल-पत्तों पर जीवित रहीं। उनकी निष्ठा और अटूट भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। बाद में हिमालयराज ने भी अपनी भूल को स्वीकार कर विवाह को आशीर्वाद दिया। इसी से हरितालिका तीज की परंपरा शुरू हुई। इस एक कहानी में प्रेम, भक्ति और दोस्ती की शक्ति झलकती है।

16 श्रृंगार का महत्व

सुहागन महिलाएं पति लंबी उम्र के लिए व्रत करती हैं। वहीं कुंवारी अपने मनपसंद पति को पाने के लिए इस व्रत को करती हैं। इस दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं-सिंदूर, बिंदी, चूड़ी, बिछिया, पायल, काजल, मेहंदी, नथ, मंगलसूत्र, गजरा, इत्र, आलता, कर्णफूल, आभूषण, सुहाग की साड़ी और मांग टीका। यह श्रृंगार देवी पार्वती की आराधना का प्रतीक है। श्रृंगार स्त्री शक्ति, सुंदरता और आत्मविश्वास को भी दिखाता है।

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आधुनिक समय में हरितालिका तीज

यह एक ऐसा पर्व है जिसे महिलाएं आज भी उसी परंपरा और श्रद्धा के साथ मनाती हैं, जैसे पहले मनाया जाता था। मंदिरों या घरों में सुहागन महिलाएं एकत्र होकर पूजा-अर्चना करती हैं, लोकगीत गाती हैं, नृत्य करती हैं और आपसी रिश्तों को मजबूत बनाती हैं।

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