आदिवासी महिलाओं ने बनाया यूनिक साबुन, अमेरिका से आ रहे ऑर्डर, लेकिन 100-200 रु. में नहीं मिलेगा यह

Published : Aug 13, 2021, 06:44 PM IST
आदिवासी महिलाओं ने बनाया यूनिक साबुन, अमेरिका से आ रहे ऑर्डर, लेकिन 100-200 रु. में नहीं मिलेगा यह

सार

कई तरह की समस्याओं का सामना करने के बाद इन महिलाओं ने साबुन बनाने में सफलता पाई और अब इनके साबुन की डिमांड इंडिया से बाहर अमेरिका में भी हो रही है। 

खंडवा. मध्यप्रदेश के खंडवा जिले की कुछ आदिवासी महिलाओं ने ऐसी साबुन बनाई है जिसके लिए अमेरिका से ऑर्डर आ रहा है।  ये महिलाएं बकरी के दूध और जड़ी-बूटियों से ये साबुन बनाती हैं। ये महिलाएं दिन में अपने खेतों में काम करती हैं और रात में जड़ी-बूटियों से साबुन बनाने की ट्रेनिंग लेती हैं।

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कई तरह की समस्याओं का सामना करने के बाद इन महिलाओं ने साबुन बनाने में सफलता पाई और अब इनके साबुन की डिमांड इंडिया से बाहर अमेरिका में भी हो रही है। इस साबुन की कीमत 250 रुपए से लेकर 350 रुपए तक है। ये महिलाएं पंधाना विधानसभा के उदयपुर गांव की रहने वाली हैं। ये एक आदिवासी बाहुल्य गांव है। और इन महिलाओं का नाम रेखाबाई बराडे, ताराबाई भास्कले और काली बाई कैलाश है।  

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तीन साल पहले इन महिलाओं ने ये काम शुरू किया था। पुणे के ली नामक एक युवक इस छोटे से प्लांट को मैनेज करता है। पहले इन महिलाओं को गाय के गोबर से साबुन बनाने की ट्रेनिंग दी गई। लेकिन उसमें सफलता नहीं मिलने के बाद बकरी के दूध और जड़ी-बूटियों से इसे बनाना शुरू किया कई बार प्लान फेल हुआ लेकिन एक बार सफलता मिली। अब इस प्रोडेक्ट को बड़े महानगरों में सप्लाई किया जा रहा है क्योंकि इसकी मांग बढ़ती जा रही है। यहां काम करने वाली महिलाओं ने बताया कि अब उनकी आर्थिक स्थिति में भी सुधार हुआ है। हम गांव की दूसरी महिलाओं को भी इसमें जोड़ना चाहते हैं लेकिन अभी पर्याप्त संसाधन नहीं हैं।  

साबुन के कई फ्लेवर
ये साबुन कई फ्लेवरों में मिल रही हैं। साबुन को बनाने में सुगंधित तेल और फ्लेवर के लिए दार्जिलिंग की चायपत्ती, आम तरबूज आदि चीजें मिलाई जाती हैं जिस कारण से ये साबुन महंगी हो जाती है। इस ईको फ्रेंडली साबुन की पैकिंग जूट की थैलियों में की जाती है। 

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