भाई की जान बचाने बहन ने दांव पर लगाई जिंदगी, बोली- मैंने उसे गोद में खिलाया है, मरने नहीं दूंगी

 जाह्नवी के छोटे भाई जयेंद्र पाठक की तबीयत अचानक बिगड़ गई। मालूम चला कि जयेंद्र का लिवर 90% डैमेज हो चुका है। यानी उनके बचने की उम्मीद न के बराबर थी। 

Asianet News Hindi | Published : Jul 21, 2019 11:41 AM IST / Updated: Jul 21 2019, 05:12 PM IST

भोपाल. भाई बहन के पवित्र त्योहार रक्षबंधन से ठीक एक महीने पहले एक बहन ने अपने भाई की जिंदगी बचाने के लिए शरीर का एक अंग दान कर दिया। यह कहानी भोपाल के आकृति ईको सिटी में रहने वालीं 41 साल की जाह्नवी दुबे की है। बीते दिनों, जाह्नवी के छोटे भाई जयेंद्र पाठक की तबीयत अचानक बिगड़ गई। मालूम चला कि जयेंद्र का लिवर 90% डैमेज हो चुका है। यानी उनके बचने की उम्मीद न के बराबर थी। उसके बाद जाह्नवी के पति प्रवीण दुबे ने डॉक्टरों से सलाह ली। इसके बाद डॉक्टरों ने जयेंद्र को फौरन दिल्ली के मेदांता हॉस्पिटल ले जाने की सलाह दी, ताकि लिवर ट्रांसप्लांट हो सके। डॉक्टर की सलाह पर जयेंद्र को जबलपुर से फौरन एयर एंबुलेंस से दिल्ली ले जाया गया। यहां ऑपरेशन के जरिए जाह्नवी का लीवर ट्रांसप्लांट कर जयेंद्र की जान बचाई गई। इस पूरे वाकये को जाह्नवी के पति प्रवीण दुबे ने अपनी फेसबुक वॉल पर शेयर किया। जानते हैं जाह्नवी के त्याग की कहानी, उनके पति की जुबानी....


लोग राखी का त्योहार मनाते हैं मगर मेरी पत्नी तो राखी को जी गई.....

हैपेटाइटिस की बीमारी में उसके छोटे भाई का लिवर देर से बीमारी डायग्नोज होने के कारण पूरी तरह खराब हो गया था। बीते शनिवार जब जबलपुर हॉस्पिटल ने हाथ पूरी तरह खड़े कर दिए। 90%उम्मीद ख़त्म, तो परिवार के बाकी लोगों ने रोना शुरू कर दिया लेकिन जान्हवी ने उस बचे हुए 10% के विकल्प पर फोकस किया। ये 10% जटिल और बेहद कठिन था लेकिन असंभव नहीं... वो था, एयर एम्बुलेंस के ज़रिए कुछ घंटों में गुड़गांव के मेदांता ले जाना और उतनी ही स्पीड से लिवर ट्रांसप्लांट करना... उसने एयर एम्बुलेंस बुक करने को कहा और खुद लिवर डोनेट का निर्णय लिया..जाह्नवी पूरे रास्ते एक ही बात कह रही थी- मैंने अपने भाई को गोद में खिलाया है, उसे किसी कीमत पर जाने नहीं दूंगी। मैं उसे लिवर दूंगी। कुछ घंटो में ही वो उसे लेकर मेदांता पहुंची और अपना लिवर देकर भाई को यमराज के पंजों से छुड़ा लाई.... भोपाल से बाय रोड जबलपुर जाना, जबलपुर एयर एम्बुलेंस बुलाना और मेदांता पहुंच कर 24 घंटे के अंदर ट्रांसप्लांट भी करा लेना, वाकई बहुत जीवट का काम था... एम्बुलेंस में अटेंडेंट ज्यादा जा नहीं सकते थे और रूटीन की फ्लाइट भी मुझे नहीं मिली... मैं बेटे के साथ ट्रेन से जब दिल्ली पहुंचा तो ये ओटी में जा चुकी थी... लगभग 14 घंटे के जटिल ऑपरेशन की परमिशन भी डॉक्टर ने मुझसे फोन पर ली और ये बताया भी कुछ भी हो सकता है.. डोनर, रिसीवर दोनों की जान को ख़तरा हो सकता है लेकिन मैं जानता था कि पवित्र उद्देश्य में ईश्वर सदैव सहायक होते हैं, लिहाज़ा मैं चिंतित तो था लेकिन भयभीत नहीं था... तुम वाकई क़माल हो बेटू, शुद्ध अंत:करण वाली निस्वार्थ और चरम तक ईमानदार... रिश्तों और अपने पेशे दोनों के प्रति... मुझे याद पड़ता है कि बेहद समृद्ध आर्थिक पृष्ठभूमि में पली बढ़ी लेकिन मेरे साथ कितने अर्थाभाव को मुस्कुराहट के साथ झेल गई. कभी मेरे ईमान को भी डगमगाने नहीं दिया. यूं तो मैं भी सीधी रीढ़ की हड्डी वाला व्यक्ति हूं लेकिन तुमने भी मुझे लगातार प्रेरित किया कि अभाव झेले जा सकते हैं लेकिन कभी किसी से गैर वाज़िब मदद के लिए न हाथ फैलाना और न ही ऐसी किसी पेशकश को क़बूल करना. सरकार से मांगने पर संभवतः एयर एम्बुलेंस मिल सकती थी या कोई आर्थिक सहायता हो सकती थी लेकिन उसने ऐसे किसी प्रस्ताव पर सोचना तो दूर बल्कि लोगों को सूचना तक देने से मना किया.. ये ठीक है कि मुझे बेहतर संस्कार परिवार से मिले लेकिन उसे लगातार तराशा तुमने.. तुम्हारी बहादुरी, समर्पण और जीवट को सलाम है... चरम तक प्यार तो मैं यूं भी तुम्हें करता था लेकिन अब तुम्हारा स्थान मेरे मन में आदर के सर्वोच्च दर्जे पर रहेगा.. ऐसे दौर में जब कुछ लोग सगे भाई को एक पैकेट दूध देने में नाक भौं सिकोड़ते हों, ऐसे में अपने शरीर का अंग काटकर देना, तुम्हारी तरह कोई विरला ही कर सकता है.. ईश्वर के प्रसाद के तौर पर तुम मेरे जीवन में आई हो... दीर्घायु रहो, ऐसे ही समर्पण के साथ अपने हर टास्क को पूरा करने का हौसला तुम्हें प्रभु से मिलता रहे... जल्दी पूरी तरह से स्वस्थ्य होकर आओ घर...मेरे ध्यान की दुनिया की समंदर सी शहज़ादी....
 

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