Deep Dive with Abhinav Khare: लापरवाही और अनदेखी की नींव पर बना था जहरीला प्लांट

1966 में UCIL और भारत सरकार के बीच एक समझौता हुआ, जिसके तहत भारत में सेविन का उत्पादन शुरू किया जाना था और प्लांट मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में बनना था। 

Abhinav Khare | Published : Nov 5, 2019 1:41 PM IST / Updated: Nov 18 2019, 03:51 PM IST

20वीं सदी की शुरुआत में फसलों में लगने वाले कीड़े सभी देशों के लिए बड़ी समस्या थे। खासकर भारत जैसे देश में जहां की अर्थव्यवस्था पूरी तरह कृषि पर ही आधारित थी। फसलों में लगने वाले कीड़े उत्पादन को बुरी तरह प्रभावित कर रहे थे। संयुक्त राज्य, मध्य अमेरिका, मैक्सिको और दक्षिणी अमेरिका में इन कीड़ों ने खाद्य फसलें पूरी तरह नष्ट कर दी थी। अमेरिका में बैटरी और लैम्प बनाने वाली चार कंपनिया इकट्ठी हुई और इन्होंने मिलकर UCC या यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन की नींव रखी। UCC का उद्देश्य ऐसे कीटनाशक का निर्माण करना था जो फसलों को खराब करने वाले अधिकतर कीड़ों को मार सके और फसलों को कोई नुकसान न पहुंचाए।

Deep Dive with Abhinav Khare

इसके लिए कंपनी ने पहले सेविन नाम का एक कीटनाशक बनाया, यह कीटनाशक फॉस्जीन गैस और मोनोमेथिलमाइन से मिलकर बना था। इस रिएक्शन से मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) नामक कंपाउंड का निर्माण हुआ। यह इतना जहरीला था कि पानी कि एक दो बूंदें मिलाने पर भी यह खतरनाक रिएक्शन करता था। UCC ने चूहों पर इस कंपाउंड का परीक्षण किया पर परिणाम इतने विनाशकारी थे कि इन्हें कभी भी पब्लिश नहीं किया गया।  MIC को विस्फोट होने से बचाने के लिए हर समय 0 केल्विन से कम तापमान पर स्टोर करना पड़ता था।      

Abhinav Khare
UCC 1924 में भारत आई और कोलकाता में बैटरी असेंबल करने का प्लांट खोला। 1983 तक पूरे भारत में कंपनी के केमिकल प्लांट मौजूद थे। उस समय भारत के कुल केमिकल उत्पादन का 50 फीसदी से अधिक हिस्सा UCC बनाती थी, जबकि किसी भी विदेशी कंपनी के लिए अधिकतम 40 फीसदी भागीदारी का नियम था। तकनीकी दिखावे की वजह से UCC को यह छूट मिली थी। 1966 में UCIL और भारत सरकार के बीच एक समझौता हुआ, जिसके तहत भारत में सेविन का उत्पादन शुरू किया जाना था और प्लांट मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में बनना था। इस लाइसेंस के अनुसार प्लांट में हर साल 5000 टन सेविन बनाया जा सकता था।  एडुआर्डो मुनोज़ को इस प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी दी गई थी। 

एडुआर्डो मुनोज़ ने इस प्रोजेक्ट को लेकर कई सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि MIC की इतनी बड़ी मात्रा इलाके में तबाही ला सकती है और इसे एक बार में बनाने की बजाय धीरे-धीरे स्थापित करना चाहिए। मुनोज़ ने प्लांट की लोकेशन को लेकर भी सवाल खड़े किए। उनाक कहना था कि रहवासी इलाके के इतने पास प्लांच नहीं होना चाहिए, पर UCIL काली ग्राउंड के 60 हेक्टेयर के प्लाट में यह फैक्ट्री बनाने पर अड़ गई। इस इलाके में आमतौर पर आसपास की झुग्गियों और रेलवे स्टेशन की तरफ हवा बहती है, ये सभी घनी जन्संख्या वाले इलाके हैं। यह कारण अपने आप में प्लांट को रिजेक्ट करने के लिए काफी था, पर UCC ने कभी यह जिक्र ही नहीं किया कि वह इन सभी गैसों का इस्तेमाल करेगी। 1979 तक प्लांट की शुरुआत हो चुकी थी और 1980 में MIC की पहली खेप का उत्पादन भी हुआ। इस समय UCC के CEO वारेन एंडरसन इसी प्लांट के चलते भोपाल आए थे। आगे क्या हुआ यह जानने के लिए बने रहें Deep Dive with Abhinav Khare के साथ।

कौन हैं अभिनव खरे

अभिनव खरे एशियानेट न्यूज नेटवर्क के सीईओ हैं, वह डेली शो 'डीप डाइव विथ अभिनव खरे' के होस्ट भी हैं। इस शो में वह अपने दर्शकों से सीधे रूबरू होते हैं। वह किताबें पढ़ने के शौकीन हैं। उनके पास किताबों और गैजेट्स का एक बड़ा कलेक्शन है। बहुत कम उम्र में दुनिया भर के सौ से भी ज्यादा शहरों की यात्रा कर चुके अभिनव टेक्नोलॉजी की गहरी समझ रखते है। वह टेक इंटरप्रेन्योर हैं लेकिन प्राचीन भारत की नीतियों, टेक्नोलॉजी, अर्थव्यवस्था और फिलॉसफी जैसे विषयों में चर्चा और शोध को लेकर उत्साहित रहते हैं। उन्हें प्राचीन भारत और उसकी नीतियों पर चर्चा करना पसंद है इसलिए वह एशियानेट पर भगवद् गीता के उपदेशों को लेकर एक सक्सेजफुल डेली शो कर चुके हैं।
अंग्रेजी, हिंदी, बांग्ला, कन्नड़ और तेलुगू भाषाओं में प्रासारित एशियानेट न्यूज नेटवर्क के सीईओ अभिनव ने अपनी पढ़ाई विदेश में की हैं। उन्होंने स्विटजरलैंड के शहर ज्यूरिख सिटी की यूनिवर्सिटी ETH से मास्टर ऑफ साइंस में इंजीनियरिंग की है। इसके अलावा लंदन बिजनेस स्कूल से फाइनेंस में एमबीए (MBA) भी किया है।

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