UCC ने दावा किया कि उनके पास गैस आपदा से निपटने के लिए इमरजेंसी प्लान था, जबकि हादसे के बाद लोग सड़कों पर इधर-उधर बेतहासा अपनी जान बचाने के लिए भाग रहे थे।
1984 में यह दिसंबर महीने की दूसरी रात थी। रात 9:30 बजे एक नियमित संचालन के दौरान, भारी मात्रा में पानी एमआईसी टैंक में प्रवेश कर गया, जिसकी वजह से खतरनाक रिएक्शन शुरू हो गई। इससे टैंक का तापमान और दबाव बढ़ गया जिससे डिस्क टूट गई और जहरीली गैस रात साढ़े 12 बजे तक भोपाल की हवा में मिल चुकी थी। प्लांट के सीनियर कर्मचारियों को हादसे का अंदेशा इससे लगभग एक घंटे पहले ही हो गया था। इसके बावजूद हादसे के एक घंटे बाद एमरजेंसी अलार्म बजाया गया। अलार्म बजने से पहले ही जहरीली गैस पूरे शहर में फैल चुकी थी और लोग अपनी जान बचाने के लिए सड़कों पर भाग रहे थे। अस्पतालों में गैस पीड़ितों की भरमार थी, पर डॉक्टरों को पता ही नहीं था कि इलाज कैसे करना है। सभी हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने UCIL के डॉक्टर से इस बारे में बातचीत की, पर उनका कहना था कि यह गैस भी आंसू गैस की ही तरह और इससे लोगों को ज्यादा खतरा नहीं है। गैर सरकारी आकड़ों के अनुसार इस हादसे में 16,000 से ज्यादा लोग मारे गए थे।
भारत सरकार ने UCC पर कानूनी याचिका दायर करते हुए क्षतिपूर्ति के रूप में 3 बिलियन डॉलर की मांग की, पर UCC का मानना था कि इस हादसे के लिए भारत सरकार भी उतनी ही जिम्मेदार है क्योंकि प्लांट से होने वाले खतरे के बारे में भारत सरकार को भी पूरी जानकारी थी। इसके अलावा UCC ने दावा किया कि उनके पास गैस आपदा से निपटने के लिए इमरजेंसी प्लान था, जबकि हादसे के बाद लोग सड़कों पर इधर-उधर बेतहासा अपनी जान बचाने के लिए भाग रहे थे। हॉस्पिटल में भी डॉक्टरों के पास भी इन मरीजों का इलाज करने का कोई तरीका नहीं था।
UCC का कहना था कि कंपनी में उसकी सिर्फ 50.9 प्रतिशत हिस्सदारी थी और कंपनी पूरी तरह से सिर्फ भारतीय लोग चला रहे थे। UCC के अनुसार उनका आखिरी अमेरिकन कर्मचारी हादसे से 2 साल पहले ही प्लांट छोड़ चुका था। उन्होंने दावा किया कि फैक्ट्री की रोजमर्रा की गतिविधियों से उनका कोई लेना-देना नहीं था। इस वजह से गैस त्रासदी के लिए UCC को जिम्मेदार ठहराना उचित नहीं है। हादसे की जांच के बाद UCC के सारे दावे झूठे साबित हुए और जांच में यह पाया गया कि UCC का फैक्ट्री के कामों में पूरा नियंत्रण था और फैक्ट्री से जुड़े सभी बड़े निर्णय UCC से पूछकर ही लिए जाते थे।
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कौन हैं अभिनव खरे
अभिनव खरे एशियानेट न्यूज नेटवर्क के सीईओ हैं, वह डेली शो 'डीप डाइव विथ अभिनव खरे' के होस्ट भी हैं। इस शो में वह अपने दर्शकों से सीधे रूबरू होते हैं। वह किताबें पढ़ने के शौकीन हैं। उनके पास किताबों और गैजेट्स का एक बड़ा कलेक्शन है। बहुत कम उम्र में दुनिया भर के सौ से भी ज्यादा शहरों की यात्रा कर चुके अभिनव टेक्नोलॉजी की गहरी समझ रखते है। वह टेक इंटरप्रेन्योर हैं लेकिन प्राचीन भारत की नीतियों, टेक्नोलॉजी, अर्थव्यवस्था और फिलॉसफी जैसे विषयों में चर्चा और शोध को लेकर उत्साहित रहते हैं। उन्हें प्राचीन भारत और उसकी नीतियों पर चर्चा करना पसंद है इसलिए वह एशियानेट पर भगवद् गीता के उपदेशों को लेकर एक सक्सेजफुल डेली शो कर चुके हैं।
अंग्रेजी, हिंदी, बांग्ला, कन्नड़ और तेलुगू भाषाओं में प्रासारित एशियानेट न्यूज नेटवर्क के सीईओ अभिनव ने अपनी पढ़ाई विदेश में की हैं। उन्होंने स्विटजरलैंड के शहर ज्यूरिख सिटी की यूनिवर्सिटी ETH से मास्टर ऑफ साइंस में इंजीनियरिंग की है। इसके अलावा लंदन बिजनेस स्कूल से फाइनेंस में एमबीए (MBA) भी किया है।