चार सौ साल पहले इस भाई-बहन ने संग में ली थी समाधि, ये है वजह

मुस्लिम आक्रमणकारी उन्हें बुरी मंशा से देखने लगे। इससे पहले ही भाई-बहन ने समाधि ले ली थी। तभी से यहां ऐसी सिद्धि हुई कि सर्पदंश से पीड़ित लोग जैसे ही यहां दीपावली की दोज पर पहुंचकर मथ्था टेकते हैं तो जहर उतर जाता है।

Asianet News Hindi | Published : Aug 12, 2019 10:36 AM IST

दतिया. रतनगढ़ मंदिर के बारे में तो सभी ने सुना होगा। लेकिन इस मंदिर की पौराणिक घटना के बारे में बहुत कम लोग ही जानते होंगे। करीब चौ साल पहले जब जिले में तानाशाह अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण किया और सेंवढ़ा से रतनगढ़ आने वाले पानी को बंद कर दिया था। तो राजा रतन सिंह की बेटी मांडुला और उनके भाई कुंवर गंगाराम देव ने इसका विरोध किया था। इतना ही नहीं इसी भीषण जंगल में भाई-बहन ने निर्जन स्थान पर जल समाधि ले ली थी। तभी से माता रतनगढ़ और भाई कुंवर देव इस मंदिर में पूजे जाते हैं। यहां तभी से सर्पदंश से पीड़ित लोगों का जहर भी उतारा जाता है। इस घटना को हम रक्षाबंधन के त्योहार पर बता रहे हैं। रक्षबंधन 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस के दिन है।

खिलजी वंश के शासक ने किया था आक्रमण 

सेंवढ़ा ब्लॉक के सिंध नदी पर स्थित माता रतनगढ़ मंदिर में 83 वर्षीय पंडित धनीराम कटारे पिछली पांच पीढ़ियों से माता की सेवा-पूजा कर रहे हैं। वे बताते हैं कि यहां पहले भींषण जंगल हुआ करता था। शेर-चीते समेत अन्य आदमखोर जानवर घूमते रहते थे। करीब चार सौ साल पहले खिलजी वंश के शासक अलाउद्दीन ने लोगों को मारने की मंशा से सेंवढ़ा से इस ओर जाने वाले पानी की आपूर्ति बंद कर दी। मंदिर में परिसर में बने राजा रतन सिंह के किले पर आक्रमण कर दिया तो रतन सिंह की सुंदर बेटी मांडुला को यह पसंद नहीं आया।

मुस्लिम आक्रमणकारी उन्हें बुरी मंशा से देखने लगे। इससे पहले ही भाई-बहन ने समाधि ले ली थी। तभी से यहां ऐसी सिद्धि हुई कि सर्पदंश से पीड़ित लोग जैसे ही यहां दीपावली की दोज पर पहुंचकर मथ्था टेकते हैं तो जहर उतर जाता है। भाई-बहन के प्रेम की मान्यता है इसलिए यहां अब भी मेला लगता है, जिसमें 25 लाख से ज्यादा लोग आते हैं।

Share this article
click me!