कूनो नेशनल पार्क को जानिए: 750 स्क्वायर किमी में फैले 123 प्रजातियों के पेड़ों के बीच दहाड़ेंगे 8 अफ्रीकी चीते

शनिवार, 17 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नेअपने जन्मदिन पर मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में अफ्रीका से लाए गए 8 चीतों का स्वागत किया। इस खबर में जानिए इस खास इवेंट का साक्षी बने कूनो नेशनल पार्क से जुड़ी हर डिटेल...

इस खबर में जानिए कूनो नेशनल पार्क कैसे पहुंचे, कहां रुकें और पार्क के इतिहास समेत हर छोटी-बड़ी जानकारी। 

एंटरटेनमेंट डेस्क. 1948 में भारत में आखिरी चीता मार डाला गया था और 1952 में भारत सरकार ने आधिकारिक रूप से मान लिया था कि भारत में कोई चीता नहीं बचा है। लंबी प्रक्रिया के बाद अब अफ्रीका से चीतों को लाकर भारत में बसाया जा रहा है। कुछ हफ्तों बाद मप्र स्थित कूनो नेशनल पार्क चीतों का नया घर बनेगा। जी हां, 70 साल बाद देश की धरती पर एक बार फिर से चीते दौड़ते नजर आएंगे। शनिवार, 17 सितंबर को पीएम नरेंद्र मोदी अपने 72वें जन्मदिन पर अफ्रीका के नामिबिया से लाए गए 8 चीतों का मप्र स्थित कूनो नेशनल पार्क में स्वागत किया। गौरतलब है कि इन 8 चीतों में 5 मादा और 3 नर चीते शामिल हैं। बहरहाल, बड़ा सवाल यह है कि इन चीतों को पूरे देश के नामी-गिरामी नेशनल पार्क को छोड़कर मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में क्यों लाया गया है। इस खबर में हम आपको इस सवाल का जवाब देने के साथ-साथ बताएंगे कूनो नेशनल पार्क से जुड़ी हर छोटी से बड़ी जानकारी....

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पार्क का इतिहास
कूनो नेशनल पार्क का अपना एक समृद्ध इतिहास है। इस अभयारण्य के अंदर सदियों पुराने किलों के खंडहर मौजूद हैं। पालपुर किले के पांच सौ साल पुराने खंडहरों से कूनो नदी दिखाई देती है। चंद्रवंशी राजा बाल बहादुर सिंह ने वर्ष 1666 में यह गद्दी हासिल की थी। पार्क के अंदर दो अन्य किले हैं - आमेट किला और मैटोनी किला, जो अब पूरी तरह से झाड़ियों और जंगली पेड़ों से ढक चुके हैं। कूनो कभी ग्वालियर के महाराजाओं का शिकारगाह हुआ करता था।

कब बना कूनो नेशनल पार्क?
विंध्यांचल पर्वत श्रृंखला पर  श्योपुर और मुरैना जिले में बसे कूनो-पालपुर वन्यजीव अभयारण्य की स्थापना 1981 में हुई थी। 2018 में सरकार ने इसे इसे नेशनल पार्क का दर्जा दिया था। अपनी स्थापना के समय इस वन्यजीव अभ्यारण्य का क्षेत्रफल 344.68 वर्ग किलोमीटर था। बाद में इसमें और इलाके जोड़े गए। अब यह करीब 900 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है।

यहां कौन से जानवर पाए जाते हैं?
इस अभ्यारण्य में चीतल, सांभर, नीलगाय, जंगली सुअर, चिंकारा, चौसिंघा, ब्लैक बक, ग्रे लंगूर, लाल मुंह वाले बंदर, शाही, भालू, सियार, लकड़बग्घे, ग्रे भेड़िये, गोल्डेन सियार, बिल्लियां, मंगूज समेत कई प्रजातियों के जानवर पाए जाते हैं। 

पेड़ों की कितनी प्रजातियां हैं?
इस नेशनल पार्क में पेड़ की 123 प्रजातियां और झाड़ियों की 71 प्रजातियां पाई जाती हैं। इसके अलावा बांस और घास की 34 प्रजातियां और बेलों और विदेशी वनस्पति की 32 प्रजातियां भी यहां मौजूद हैं।

कहां से मिला नाम?
इस अभयारण्य का नाम कूनो नदी से लिया गया है जो इस नेशनल पार्क के माध्यम से दक्षिण से उत्तर की ओर बहती है। 180 किमी लंबी यही नदी इस जंगल की जीवन रेखा भी है।

क्या है खास?
श्योपुर के उत्तरी जिले में विंध्य रेंज के केंद्र में स्थित इस नेशनल पार्क में घास के मैदानों का वर्चस्व है। कमाल की बात यह है कि ये घास के मैदान अफ्रीकी सवाना और वहां के जंगलों के समान हैं। कूनो में अधिकांश घास के मैदान कान्हा और बांधवगढ़ की तुलना में बड़े हैं।

पार्क में कितने हैं गेट?
पार्क में एंट्रेंस के लिए 3 गेट मौजूद हैं। पहला गेट टिकटोली गेट हैं जो ससाइपुरा गांव से नजदीक पड़ता है। दूसरा अहेरा गेट है जो गोहरी गांव के पास है और तीसरा पीपल बावडी गेट है जो आगरा गावं से करीब हैं।

कैसे पहुंचे इस नेशनल पार्क तक?
अगर आप फ्लाइट के जरिए यहां पहुंचना चाहते हैं तो तीनों गेट के लिए सबसे करीब ग्वालियर एयरपोर्ट है। इसी तरह ग्वालियर, सवाई माधोपुर, कोटा, जयपुर और झांसी से इस नेशनल पार्क तक पहुंचने के लिए सबसे करीबी रेलवे स्टेशन है। बात करें बाय रोड तो शिवपुरी सबसे करीब है। यहां से टटोली गेट और पीपल बावड़ी गेट 73 किलोमीटर व अहिरा गेट 62 किलोमीटर दूर है।

विजिट करने का सही समय
इस नेशनल पार्क को विजिट करने का सबसे सही वक्त नवंबर मध्य से मार्च मध्य तक है।

टूरिस्ट स्पॉट
नेशनल पार्क में टूरिस्ट्स के घूमने के लिए यहां मौजूद  पालपुर, आमेट और मैटोनी किलों के अलावा देव खो, आमझिर, भानवर खो, मराठा खो, दौलतपुरा, देवकुंड, जैन मंदिर और धोरेट मंदिर जैसे कई टूरिस्ट स्पॉट हैं।

ठहरने की व्यवस्था
कूनो नेशनल पार्क में चार रेस्ट हाउस भी मौजूद हैं जिन्हें पार्क में पहुंचकर ही बुक किया जा सकता है। इसके अलावा पार्क के पास में ही एमपी टूरिज्म कूनो रिसोर्ट रेस्ट हाउस भी मौजूद है। 

क्यों पूरे देश में सिर्फ कूनो नेशनल पार्क को क्यों चुना गया
अब बड़ा सवाल यह है कि पूरे देश भर में मौजूद कई नेशनल पार्क में से इन चीतों को बसाने के लिए मप्र का कूनो नेशनल पार्क ही क्यों चुना गया। तो इसका जवाब नीचे दिए गए इन पॉइंट्स से समझिए...
1. कूनों में चीतों को साउथ अफ्रीका के जंगल से मिलता हुआ माहौल और तापमान मिलेगा।
2. पार्क के बीच में कूनो नदी बहती है। आसपास छोटी-छोटी पहाड़ियां हैं जो चीतों के लिए बिल्कुल मुफीद हैं।
3. इंसानी दखलअंदाजी न के बराबर है। यहां मौजूद इंसानी बस्तियों को काफी पहले ही हटाया जा चुका है।
4. पानी के लिए चीतों को दूर तक न जाना पड़े इसके लिए आर्टिफिशयल तालाब और नाले भी बनाए गए हैं।
5. इस एरिया में पहले ही करीब 200 सांभर, चीतल व अन्य जानवर खासतौर पर लाकर बसाए गए हैं। ऐसे में चीते को यहां शिकार का भरपूर मौका मिलेगा। 
6. चीते को ग्रासलैंड यानी थोड़े ऊंचे घास वाले मैदानी इलाकों में रहना पसंद है। जो यहां मौजूद हैं।

नामीबिया और साउथ अफ्रीका के जंगल से मिलता है कूनो का जंगल
'चीतों के लिए मुफीद माहौल कैसा होता है इस बात की स्टडी करने के लिए कूनो से जो डेलीगेशन साउथ अफ्रीका गया था मैं उसका हिस्सा था। हमने जो नामीबिया और साउथ अफ्रीका के जंगल देखे वो कूनो के जंगलों से मिलते-जुलते थे। वहां पर जो पेड़ों की प्रजातियां हैं वहीं सेम यहां पर भी हैं। वहां और यहां के तापमान में भी काफी समानता है।'
अमृतांशु सिंह, सब डिवीजनल ऑफिसर फॉरेस्ट

लंबे समय तक पार्क ने किया सिंहों का इंतजार
कूनो नेशनल पार्क ने लंबे अरसे तक गिर के जंगलों से आने वाले सिंहों का इंतजार किया। सिंह तो नहीं आए पर अब यह पूरी तैयारी चीतों को बसाने के काम में आएंगी। इसी के साथ मप्र बाघ, तेंदुओं, भेड़िए और गिद्धों की सबसे ज्यादा तादाद के बाद देश का इकलौता राज्य बन जाएगा जिसके पास चीतों की सबसे बड़ी तादाद होगी।

जगह-जगह लगाए गए हैं सीसीटीवी कैमरे
चीतों की निगरानी के लिए नेशनल पार्क में जगह-जगह सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। इसके अलावा इनके गले में एक जीपीएस से जुड़ा ट्रैकर बैंड भी लगाया जाएगा। जंगल में इनकी सेहत का ख्याल रखने का भी इंतजाम किया गया है। आते ही इन चीतों को क्ववारंटीन किया जाएगा जिसके बाद इनका पूरा चैकअप किया जाएगा।

ऊपरी तौर पर एक नजर
- 750 स्क्वायर किलोमीटर में फैला है यह पार्क
- 100 किमी दूर स्थित है रणथंबोर नेशनल पार्क से 
- 500 साल पुराने पालपुर किलों के खंडहर हैं पार्क में मौजूद
- 1981 में हुई थी कूनो-पालपुर वन्यजीव अभयारण्य की स्थापना 
- 2018 में सरकार ने इसे घोषित किया नेशनल पार्क
- 123 प्रजातियों के पेड़  और 71 प्रजाती की झाड़ियों पाई जाती हैं यहां 
- 20 से अधिक प्रजातियों के जानवर पाए जाते हैं यहां
- 180 किलो मीटर लंबी कूनो नदी बहती है

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