दिल को छू लेने वाली खबर:3 साल के मासूम की मौत, लेकिन उसकी आंखें देखेंगी दुनिया..पेरेंट्स ने लिया शानदार फैसला

Published : Jan 02, 2022, 03:52 PM ISTUpdated : Jan 02, 2022, 03:56 PM IST
दिल को छू लेने वाली खबर:3 साल के मासूम की मौत, लेकिन उसकी आंखें देखेंगी दुनिया..पेरेंट्स ने लिया शानदार फैसला

सार

विभाकर नारायण और उनकी पत्नी रश्मि ने दिल पर पत्थर रखकर कहा कि सचमुच अपनों को खोने के बाद उसकी आंखें डोनेट करना बहुत ही मुश्किल था। लेकिन हमने ऐसे कई लोगों को देखा है, जो बचपन से देख नहीं सकते हैं, उनको अपने जीवन में बहुत परेशानी होती है। इसलिए हमने सोचा कि क्यों ना हमारे बच्चे की आंखें अगर किसी को मिल जाएं तो उसकी जिंदगी सवर जाएगी।

इंदौर (मध्य प्रदेश). सही कहते हैं कि बच्चे भगवान का रुप होते हैं। क्योंकि उनकी मुस्कुराहट अंधेरे में भी उजाला कर देती है। ऐसी एक दिल को छू लेने वाली कहानी मध्य प्रदेश के इंदौर से सामने आई है। जहां एक 3 साल का अयांश नारायण मरकर भी मुस्कान बिखेर गया। क्योंकि मासूम के पेरेंट्स ने उसकी आंखें डोनेट की हैं। जो अब उसकी आंखें किसी और की दुनिया को रोशन करेंगी।

3 साल के बच्चे की हो चुकी थीं दो सर्जरी
दरअसल, यह मार्मिक कहानी इंदौर के निपानिया की है। जहां के रहने वाले विभाकर नारायण और उनकी पत्नी रश्मि दोनों बैंक में जॉब करते हैं। उनके बच्चे अयांश को बचपन से ही हार्ट की बीमारी थी। वह अपने बेटे की बेंगलुरु में दो सर्जरी कर चुके थे। लेकिन शनिवार को अचानक उसकी तबीयत खराब हो गई।  उसे सांस लेने में परेशानी होने लगी तो परिजन बॉम्बे हॉस्पिटल ले गए। इसके बाद मासूम की कुछ देर बाद अस्पताल में सांसे थम गईं।

माता-पिता ने दिल पर पत्थर रख लिया जिंदादिल फैसला
अयांश परिवार का इकलौता बेटा था। मासूम की मौत के बाद उसके माता-पिता ने अपने बच्चे की आंखें को डोनेट करने का फैसला किया। वह चाहते थे कि उनका बेटा अब इस दुनिया में नहीं रहा, लेकिन उसकी आंखें किसी और के जरिए दुनिया को रोशन करें। बच्चे के माता-पिता ने इसके बाद  मुस्कान ग्रुप के सेवादार जितेंद्र बागानी व संदीपन आर्य से संपर्क किया। फिर उनके जरिए बॉम्बे हॉस्पिटल के डॉ. अमित जोशी व एमके इंटरनेशनल आई बैंक के गोपाल सिरोके ने बातचीत करके बच्चे की आंखें डोनेट करने की पूरी प्रक्रिया की।

मासूम की आंखें दूसरे के जरिए देखेंगी दुनिया
विभाकर नारायण और उनकी पत्नी रश्मि ने दिल पर पत्थर रखकर कहा कि सचमुच अपनों को खोने के बाद उसकी आंखें डोनेट करना बहुत ही मुश्किल था। लेकिन  हमने ऐसे कई लोगों को देखा है, जो बचपन से देख नहीं सकते हैं, उनको अपनी जीवन में बहुत परेशानी होती है। इसलिए हमने सोचा कि क्यों ना हमारे बच्चे की आंखें अगर किसी को मिल जाएं तो उनकी जिंदगी सवर जाएगी। हम नहीं चाहते थे कि जिस तरह हम बेटी को खो चुके हैं कोई ओर अपने बच्चों को खोए।

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