गरीबी में बीता बचपन लेकिन नहीं लड़खड़ाए पांव, कभी स्कूल भी न जाने वाली दुर्गाबाई को मिला Padma Shri पुरस्कार

दुर्गाबाई दो भाइयों और तीन बहनों में एक थीं। घर की माली हालात ठीक नहीं तो स्कूल जाने का मौका भी नहीं मिला। लेकिन इसे दुर्गाबाई ने कभी अपनी मजबूरी नहीं बनने दी। आदिवासी भोंडी भित्ति चित्र के जरिए उन्होंने अपनी अलग ही पहचान बनाई।

डिंडोरी (मध्यप्रदेश) : चाह बड़ी हो तो उड़ान के लिए आसमान भी छोटा पड़ जाता है..कुछ ऐसी ही कहानी है मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के डिंडोरी के एक छोटे से गांव से आने वाली दुर्गाबाई की। 6 साल से चित्रकारी करने वाली दुर्गाबाई (Durgabai) ने कभी स्कूल की दहलीज भी नहीं पार की लेकिन अपनी कला के दम पर ऐसे मुकाम पर पहुंच गई हैं, जहां पहुंचने का सपना लगभग हर भारतीय का होता है। दुर्गाबाई को उनकी कला के लिए पद्मश्री (Padma Shri) के लिए चुना गया है।

गरीबी से घबराई नहीं, बनाया अलग मुकाम
दुर्गाबाई का जन्म साल 1974 में डिंडोरी (Dindori) जिले के ग्राम बुरबासपुर के एक गरीब परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम चमरू सिंह परस्ते था। दुर्गाबाई दो भाइयों और तीन बहनों में एक थीं। घर की माली हालात ठीक नहीं तो स्कूल जाने का मौका भी नहीं मिला। लेकिन इसे दुर्गाबाई ने कभी अपनी मजबूरी नहीं बनने दी। आगे बढ़ने के लिए उन्होंने चित्रकारी को अपना पैशन बनाया। आदिवासी भोंडी भित्ति चित्र के जरिए उन्होंने अपनी अलग ही पहचान बनाई। इसी कला ने उन्हें पद्म श्री पुरस्कार तक पहुंचा दिया। मंगलवार को जैसे ही पद्म श्री पुरस्कार की घोषणा हुई तो दुर्गाबाई और उनके परिवार की खुशी का ठिकाना नहीं रहा।

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6 साल की उम्र से चित्रकारी
दुर्गाबाई 6 साल की उम्र में ही चित्रकारी शुरू कर दी गई थी। साल 1996 में वे भोपाल (Bhopal) आ गईं। यहीं से उनके सपनो को पंख लगा। वो डॉ. भीमराव अंबेडकर के जीवन पर किताब भी लिख चुकी हैं, जो 11 भाषाओं में पब्लिश भी हुई है। उनका ससुराल डिंडोरी जिले के ग्राम संतूरी में है। उनके पति सुभाष सिंह भी उनके साथ जनजाति संग्रहालय भोपाल की तरफ से नर्मदा को लेकर चलाए जा रहे कार्यक्रम उनकी मदद करते हैं। उन्हें संग्रहालय की तरफ से काफी मदद भी मिलती है। दुर्गाबाई नर्मदा को लेकर चित्रकारी के जरिए काम को बढ़ाने में लगी हैं।

चित्रकारी से बताती हैं कहानी 
दुर्गा बाई की चित्रकारी की सर्वाधिक आकर्षक विशेषता कथा कहने की उनकी क्षमता है। उनके चित्र अधिकांशत: गोंड प्रधान समुदाय के देवकुल से लिए गए हैं। दुर्गा बाई की लोक कथाओं में काफी रुचि है और इसके लिए वह अपनी दादी का आभार जताती  हैं। दुर्गा बाई जब छह साल की थीं तभी से उन्‍होंने अपनी माता के बगल में बैठकर डिगना की कला सीखी जो शादी-विवाहों और उत्‍सवों के मौकों पर घरों की दीवारों और फर्शों पर चित्रित किए जाने वाली परंपरागत डिजाइन है।

ये पुरस्कार भी बढ़ा चुके हैं मान
दुर्गाबाई की कला के चर्चे हर तरफ होते हैं। उन्हें रानी दुर्गावती राष्ट्रीय सम्मान से भी नवाजा गया है। उन्हें यह पुरस्कार जबलपुर में मिल चुका है। मुंबई में विक्रम अवॉर्ड, दिल्ली में बेबी अवॉर्ड और महिला अवॉर्ड भी दुर्गाबाई को मिल चुके हैं। इसके अलावा कई राज्य स्तरीय पुरस्कार भी उनकी कला की शोभा को बढ़ा चुके हैं।

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