गजब नजारा: यहां कुलियों ने मनाया रेल इंजन का 88वां बर्थडे, केक भी काटा और बधाई भी दी..जानिए क्या है ऐसी खासियत

उज्जैन-आगर के बीच 1970 से पहले नैरोगेज ट्रेन का संचालन किया जाता था। तब भाप का इंजन उज्जैन और आगर के बीच चला करता था। लेकिन 70 के दशक में नैरोगेज लाइन बंद होने के बाद से यह इंजन बेकार खड़ा है। रेलवे ने इस इंजन को स्टेशन परिसर के बाहर यादगार के रूप में खड़ा कर दिया है। 

Asianet News Hindi | Published : Jan 4, 2022 1:02 PM IST / Updated: Jan 04 2022, 06:37 PM IST


उज्जैन (मध्य प्रदेश). अभी तक आपने कई जन्मदिन की पार्टियां देखी होंगी, जहां लोग इंसानों के बर्थडे का सेलिब्रेशन करते हैं। क्या किसी ने रेलवे इंजन का जन्मदिन मनते हुए देखा है। तो आइए हम आपको बता देते हैं। मध्य प्रदेश के उज्जैन से रेलवे स्टेशन पर  कुलियों ने भाप के इंजन का बर्थडे बड़ी ही धूमधाम से मनाया। केक भी काटा और एक दूसरे को मिठाई खिलाकर बधाई भी दी।

1970 से पहले चलता था ये खास इंजन
दरअसल, उज्जैन-आगर के बीच 1970 से पहले नैरोगेज ट्रेन का संचालन किया जाता था। तब भाप का इंजन उज्जैन और आगर के बीच चला करता था। लेकिन 70 के दशक में नैरोगेज लाइन बंद होने के बाद से यह इंजन बेकार खड़ा है। रेलवे ने इस इंजन को स्टेशन परिसर के बाहर यादगार के रूप में खड़ा कर दिया है। तब से हर साल यहां के कुली और रेलवे विभाग के कर्मचारी जनवरी में इंजन की वर्षगांठ मनाते हैं। सोमवार को इंजन को फूल-मालाओं से सजाया गया और इसक खास अंदाज में जन्मदिन मनाया गया।

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इस इंजन से जुड़ी हैं कुलियों की यादें
उज्जैन के शफी बाबा के अुनसार, उन्होंने इस ट्रेन में चाय बेची थी और इस इंजन से उनकी और उनके कुली भाईयों की कई यादें जुड़ी हुई हैं। इस कारण वह लगातार इस इंजन का जन्मदिन मनाते हैं। इस अनोखे नजारे को देखने के लिए हर वर्ष बड़ी संख्या में लोग इकट्ठे होते हैं, लेकिन कोरोना के चलते इस बार किसी को आमंत्रित नहीं किया गया।

जानिए इस इंजन की खूबियां
बता दें कि भाप वाले इस इंजन  Z-B टाइप का इंजन, 1 लाख 61 हजार 276 रुपए की लागत में बनकर तैयार हुआ था।  जिसका नंबर 77 है, कुल 20 साल सर्विस में रहा, वॉटर कैपेसिटी 1300 गैलन, कोयला क्षमता 2.25 टन व कुल वजन 27.5 टन है। इसे डब्ल्यू.जी. बैगनालिट्टो द्वारा यह बनाया गया था। इसमें नैरोगेज ट्रेन में पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू व इंदिरा गांधी ने भी सफर किया था, तो कभी स्वयं जीवाजीराव सिंधिया ने सफर किया था। 

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