कोरोना की दूसरी लहर का वो पीक समय जब हर तरफ त्राहिमाम मचा था। अस्पतालों में बेड फुल थे। ऑक्सीजन की कमी से हर रोज हजारों लोग दम तोड़ रहे थे। इतना असहाय इतना दर्द और ऐसी त्रासिदी सोच कर भी रोंगटे खड़े जो जाते हैं। कोरोना काल में मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल का नाम खूब सुर्खियों में रहा।
भोपाल। कोरोना की दूसरी लहर का वो पीक समय जब हर तरफ त्राहिमाम मचा था। अस्पतालों में बेड फुल थे। ऑक्सीजन की कमी से हर रोज हजारों लोग दम तोड़ रहे थे। इतना असहाय इतना दर्द और ऐसी त्रासिदी सोच कर भी रोंगटे खड़े जो जाते हैं। कोरोना काल में मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल का नाम खूब सुर्खियों में रहा। बाजारों में भले ही लॉकडाउन लगा था। लेकिन सड़कों पर पसरे सन्नाटे में अस्पतालों से आती सिसकियों को अच्छे से सुना जा सकता है। झीलों के इस शहर में कोरोना ने ऐसा पांव पसारा कि हर कोई घर में सिमट कर रह गया। खूबसूरती की मिसाल भोपाल इस त्रासिदी में फीका ही नजर आया। हालांकि कहते हैं इस बुरे वक्त के बाद अच्छा वक्त आता है और इसी इंतजार में देश की जनता ने भी कोरोना को हराने में पूरा सहयोग दिया। लॉकडाउन का पालन, मास्क और सोशल डिस्टेंस को ही वैक्सीन बनाया। कोरोना में कुछ बिगड़े तो कुछ ने खुद को हिम्मत दी और हम आपके लिए लाए हैं देशभर से चुनचुन कर ऐसे कोरोना वॉरियर्स की कहानी जिन्होंने मौत के आगे घुटने नहीं टेके बल्कि कोरोना को ही खत्म किया।
Asianetnews Hindi की राखी सिंघल ने बात की आशिष कुमार सिंह से। 7 लोगों के परिवार जिसमें पिता और वे खुद कोरोना पॉजिटिव थे। घर में बड़े भाई के दो छोटे बच्चे और एक बूढ़ी मां। ऐसे में घर की पूरी जिम्मेदारी थी बड़े भईया और डर भी था। ये कहानी आपको बताएगी कि परिवार का साथ और विश्वास क्या होता है। इसी कड़ी में सुनिए उनकी कहानी...
पहले सिर्फ सुना था लेकिन जब खुद को हुआ तो लड़खड़ा गया
12 अप्रैल 2021 का दिन था। दोपहर का दिन था। बहुत गर्मी नहीं थी। मौसम ठीक था। मैं यूं ही आंगन में बैठा हुआ था। मां ने पूछा कि कुछ खाएगा तो मैंने ना में सिर हिलाते हुए कहा कि कुछ गले में खराश जैसी है। बस गर्म पानी पीना है। गर्म पानी पीया और मैं अपने कमरे में आकर लेट गया। लेकिन मुझे नींद आ रही थी अजीब सी बेचैनी थी। अब हल्का सा सिर दर्द हो रहा था, और शरीर टूट रहा था। बस बुखार नहीं था तो कोरोना की टेंशन कम थी। एक तो लॉकडाउन में काम काज ठप्प था तो पहले ही हिम्मत नहीं थी एक बड़े भईया थे जिनका साथ था। बस कैसे भी नींद आ जाए इसी उधेड़ बुन में था लेकिन सिर्द दर्द बढ़ता जा रहा था और बुखार भी लगभग आ गया था। पहले सिर्फ सुना था कि कोरोना होता है तो कैसा लगता है मैं कुछ ही देर में उसे अनुभव करने लगा था।
नहीं हो रहा था दवाईंयों का असर
बिस्तर पर लेटे लेटे सुबह से शाम हो गई थी। सोच रहा था भईया आएंगे तो उन्हें बताऊंगा दरअसल भइया अपने काम की वजह से घर से थोड़ा दूरी पर रहते हैं रोज सुबह जाते हैं और रात तक वापस आ जाते हैं। मैंने सोचा जब तक भइया आते हैं तब तक एक पैरासीटामोल खा लेता हूं। पैरासीटामोल खाई और फिर से लेट गया। मां चाय के लिए बुलाने आई लेकिन बिना दरवाजा खोले उनको ना बोल दिया। डर था कि कोरोना हुआ तो कहीं मां को ना छू जाए। पैरासीटामोल खाई तो बुखार थोड़ी देर में कम हो गया। लेकिन असर ज्यादा देर तक नहीं रहा। अब हालत बिगड़ती जा रही थी। दिमाग मैं एक ही बात चल रही थी कि ये कोरोना ही है क्यों कि नोर्मल फ्लू होता तो हालत ऐसी ना होती। लड़खड़ाते हुए भईया को कॉल किया और सारी बात बता दीं। वो भी सुनकर स्तब्ध थे। लेकिन संभलते हुए उन्होंने कहा कि अपने कमरे में रहना और टेंशन मत ले मैं आाता हूं।
जिससे भी मदद मांगी वो कोरोना पॉजिटिव था
भइया और मैं परेशान थे। अभी तक मैंने कोरोना जांच नहीं कराई थी लेकिन लक्षणों से लग रहा थी कि कोरोना ही है। भइया ने अपने दोस्त से मदद मांगी लेकिन वहां पता चला कि उनके घर में कोरोना से किसी की मौत हो गई थी और कई लोग पॉजिटिव थे। हालांकि उन्होंने अपनी सलाह देते हुए हिम्मत से काम लेने को कहा। मौत और कोरोना से बढ़ते आंकड़ों और ऑक्सीजन के लिए बिलखते लोगों को देख मेरी हिम्मत टूट रही थी। वे सारे सीन जो मैं सोशल मीडिया या न्यूज चैनल पर देखता था मेरे सामने घूमने लगे थे।
किसी भी नंबर पर नहीं लग रहा था कॉल
मैंने अपने वाट्सअप को टटोला तो उसमें मुझे एक मैसेज दिखा जिसमें कोरोना को दौरान मदद की दलीलें दी गई थीं। मैंने भी जल्दी से फोन उठाया और लगाना शुरू कर दिया। कई बार फोन किया। कई जगह फोन किया लेकिन कई नंबर बिजी आ रहे थे तो कहीं लगा ही नहीं या फिर किसी ने उठाया नहीं उठाया भी तो किसी ने कोई बात नहीं की। घर के बाकी लोग भी मेरी हालत समझ चुके थे। पिता जी मेरे कमरे के बाहर ही बैठ गए और मां दूर से मुझे ही देखती रही। पहली बार लगा कि मेरे परिवार के बिना मैं कुछ भी नहीं। मां अपने आंसू मुझसे छिपा रही थी ताकि मैं हिम्मत ना हारूं
भइया और उनके दोस्त ने दी हिम्मत
भइया भी परेशान हो गए थे। उन्होंने कुछ कहा नहीं लेकिन वो भी डर गए थे। उन्होंने अपने पत्रकार साथी को फोन किया जो उनका बचपन का दोस्त था। फोन किया लेकिन दोस्त ने ये कहकर फोन काट दिया कि डॉक्टर के पास हूं। दरअसल उनके भी भाई दस बारह दिन से वेंटिलेटर पर थे। लेकिन भइया को सब्र नहीं हो रहा था जब तक दोस्त ने डॉक्टर से बात खत्म की इतनी देर में कई फोन कर दिये। दोस्त ने भी जरूर समझकर फटाफट से डॉक्टर से बात खत्म की और भइया का फोन उठाया। फोन उठाते ही भइया ने कहा कि लग रहा है कि छोटे को कोरोना हो गया है। दोस्त ने भइया को फोन रख तुरंत मुझे फोन किया और बोले घबराना मत हम सब हैं तेरे साथ। उन्होंने मुझे हिम्मत दी हौसला बढ़ाया।
जब असहाय हो हाथ जोड़ खड़े थे भइया और पापा
रात गई, सुबह हुई। भइया की आवाज आई कि छोटे चल हमें अस्पताल जाना है तेरी जांच कराने। मैं पापा और भइया गए थे चिरायु कोविड सेंटर। वहां पहले से ही मेरे ताऊ जी के बेटे मनोज कुमार सिंह मेरा इंतजार कर रहे थे। मनोज भइया की वहीं कोरोना वार्ड में ड्यूटी थी वो वर्दी में थे अपनी ड्यूट कर रहे थे। मुझे देखा तो सीधे डॉक्टर के पास ले गए लेकिन डॉक्टर ने देखने से भी मना कर दिया। भइया ने लाख मिन्नतें की लेकिन धरती के इस भगवान का दिल नहीं पसीजा। लाख मनुहार करने पर डॉक्टर देखने को राजी नहीं हुआ लेकिन कोरोना की दवा एक पर्चे पर लिख दी और मोबाइल से फोटो लेने के लिए कहा। लेकिन इस सबके बीच जरूरी था ये पता करना कि संक्रमण कितना है लेकिन सवाल ये भी था कि जब डॉक्टर देख ही नहीं रहे हैं तो सीटी स्कैन कैसे हो। मनोज भइया ने अपनी जुगाड़ लगाकर मेरा सीटी स्कैन भी करा दिया। और रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी।
अचानक रात 12 बजे बिगड़ी पापा की तबियत
मैं होम आइसोलेशन में था। घर का हर सदस्य मेरी चिंता में घुला जा रहा था। पापा और भइया अस्पताल में मेरे साथ जाते थे। पापा को दवा लाने के लिए बाजार भी जाना पड़ता था। समय पर दवाई, दिन में 4 बार स्टीम, योगा, काढ़ा इस सब का मेरे ऊपर असर हो रहा था और मैं धीरे धीरे अच्छा महसूस करने लगा था। लेकिन अचानक रात 12 बजे पापा की तबियत बिगड़ गई। पापा हर वक्त मेरे साथ थे इसलिए मैं तो ठीक हो गया लेकिन उनकी खराब तबियत ने मुझे तोड़ दिया। उस रात घर पर किसी को नींद नहीं आई। ये पक्का था कि पापा कोरोना किसी और से नहीं बल्कि मुझसे ही हुआ है।
पापा की हिम्मत ने बढ़ाया हम सबका हौसला
पापा सरकारी कर्मचारी हैं तो उनका कोरोना टेस्ट जल्दी हो गया। लेकिन रिपोर्ट 3 दिन में आनी थी और तबियत गिरती जा रही थी। वो वक्त याद करता हूं तो आज भी सहम जाता हूं। वे जो वक्त था वो कभी नहीं आए। खैर पापा को इलाज मिला लेकिन हमने फैसला लिया कि पापा को अस्पताल में नहीं रखेंगे घर पर ही रखेंगे और वहीं उनका इलाज करेंगे। मां और भाभी दिन रात हमारी देखभाल में लगीं रहतीं। पापा का 3 दिन का ट्रीटमेंट दिया उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी। लेकिन पापा की हिम्मत ने हम सबका हौसला बनाया रखा।
कोरोना ने अलग किया, लेकिन जंग हमने जीती
पापा और मैं अब घर के दो बड़े बड़े कमरों में अलग अलग थे। मां भाई भाभी और 2 नन्हें बच्चे हमें बाहर से ही गुदगुदा जाते थे। पूरा दिन बिस्तर पर बैठे बैठे एक ही ख्याल आता था। कि ये कैसा वक्त है कि जब सबसे ज्यादा जरूरत है तो ना हम किसी से मिल सकते हैं ना बात कर सकते है। लेकिन वो हम सबकी हिम्मत और आत्मबल था जिससे हमें कोरोना को हराने की प्रेरणा मिली।
कोरोना के दौरान क्या सीखा ?
तीन चीजें। पहला थोड़ी सी लापरवाही आपकी जान ले सकती है। दूसरा हर सुख और दुख का साथी सिर्फ परिवार है और तीसरा कोरोना में कभी भी किसी को अकेला ना छोड़ें। कैसे भी बातें करते रहें। कोरोना के वक्त बैड पर लेटे नेगिटिव विचार मन में बैठ जाते हैं इसलिए दूरी बनाएं लेकिन दूरियां नहीं। बस ईश्वर से अब सिर्फ एक ही प्रार्थना है कि वो दिन अब ना दिखाए