भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में शरद पवार से पूछताछ, जानिए वो सवाल जिनके एनसीपी चीफ को देने पड़े जवाब

इससे पहले NCP चीफ ने कहा था कि उनके पास कुछ ऐसे सबूत हैं जो इस मामले की जांच में और प्रकाश डाल सकते हैं। इसके बाद कमीशन ने उन्हें बतौर विटनेस बुलाया। जिसके बाद उन्होंने 11 अप्रैल 2022 को एफिडेविट फाइल किया था।
 

Asianet News Hindi | Published : May 5, 2022 8:32 AM IST / Updated: May 05 2022, 04:10 PM IST

मुंबई : भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले (Bhima Koregaon Violence Case) में गुरुवार को एनसीपी चीफ शरद पवार (Sharad Pawar) से पूछताछ हुई। जांच आयोग ने पूछताछ के बाद उनका बयान दर्ज किया। आयोग ने पवार से पहले सवाल के रूप में पूछा कि अगर कोई शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन कर रहा है और उसमें कुछ आसामाजिक तत्व आ जाए और वे गड़बड़ी करने लगे तो यह किसकी जिम्मेदारी होगी? जिसका जवाब देते हुए शरद पवार ने कहा कि अगर ऐसा होता है तो पुलिस की जिम्मेदारी है कि वह लॉ एंड ऑर्डर को मेंटेन करे ताकि किसी भी तरीके से शांति भंग न की जा सके।

सवाल नंबर-2
जांच कमिशन ने एक अन्य सवाल के जवाब में पूछा कि तीन जनवरी 2018 में जब प्रकाश अंबेडकर ने महाराष्ट्र बंद का आह्वान किया था तब दंगे होने से सरकारी और निजी संपत्ति को काफी नुकसान हुआ, ऐसे में कौन जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। इसका जवाब देते हुए पवार ने कहा कि मैं किसी भी विशेष घटना पर अपनी राय नहीं दे सकता, क्योंकि यह मामला भी कोर्ट में  न्यायाधीन है। 

सवाल नंबर-3
जांच टीम के सदस्यों ने अगले सवाल में एनसीपी चीफ से पूछा कि क्या जांच आयोग को भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में जांच या सुझाव के लिए मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray), पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) और प्रकाश अंबेडकर (Prakash Yashwant Ambedkar) को बुलाया जाना चाहिए? जिसका जवाब देते हुए शरद पवार ने कहा कि आयोग अपनी जांच के लिए पूरी तरह स्वतंत्र है। अगर जांच टीम को लगता है कि भविष्य में इस तरह के दंगे जैसी स्थिति रोकने में सुझाव मिल सकता है तो किसी को भी समन जारी कर सकता है। यह उसका अधिकार है। 

क्या है भीमा-कोरेगांव हिंसा
दरअसल, एक जनवरी 2018 को भीमा-कोरेगांव की 1818 की लड़ाई की 200वीं बरसी के मौके पर एक कार्यक्रम का आयोजन हुआ था। यह आयोजन पुणे से करीब 40 किलोमीटर दूर भीमा-कोरेगांव में अनुसूचित जाति समुदाय के लोगों की तरफ के हुआ था। जिसका कुछ दक्षिणपंथी संगठनों ने जमकर विरोध किया। बाद में इस विरोध ने हिंसा का रुप ले लिया और इसमें एक शख्स की मौत हो गई थी और कई लोग गंभीर रूप से घायल हुए थे, जबकि सरकारी और निजी संपति को काफी नुकसान पहुंचा था। इस हिंसा की आंच पूरे महाराष्ट्र में फैली। तब राज्य में बीजेपी-शिवसेना की सरकार थी।

शरद पवार से पूछताछ क्यों
जब हिंसा फैली तब शरद पवार ने दावा किया था कि हिंसा में कथित हिंदू संगठनों का हाथ है। बाद में जब कोलकाता के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जेएन पटेल और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्य सचिव सुमित मलिक की सदस्यता में इस हिंसा की जांच के लिए आयोग का गठन हुआ तो सागर शिंदे नाम के सामाजिक कार्यकर्ता ने शरद पवार के बयान के लिए उनसे पूछताछ की अर्जी दी। जिसके बाद आयोग ने उन्हें बुलाया। हालांकि पवार ने पहले हलफनामा दाखिल कर वक्त मांगा फिर उन्होंने एक और हलफनामा पेश किया था। उसमें उन्होंने बताया कि हिंसा के पीछे कौन था, इसके बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है। लेकिन उन्होंने कई सुझाव भी दिए।

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