हरियाणा में विधानसभा चुनाव में बड़ी-बड़ी पार्टियां प्रचार-प्रसार में लगी हैं। हरियाणा में 90 सीटों पर चुनाव होने हैं जिसके लिए करीब 1,168 उम्मीदवार मैदान में हैं। बीजेपी, कांग्रेस, इनेलो और जेजेपी पार्टियां मैदान में हैं। इसके अलावा हरियाणा में एक विधानसभा सीट पर हमेशा निर्दलीय नेता का कब्जा रहा है।
चंडीगढ़. हरियाणा में विधानसभा चुनाव में बड़ी-बड़ी पार्टियां प्रचार-प्रसार में लगी हैं। हरियाणा में 90 सीटों पर चुनाव होने हैं जिसके लिए करीब 1,168 उम्मीदवार मैदान में हैं। बीजेपी, कांग्रेस, इनेलो और जेजेपी पार्टियां मैदान में हैं। इसके अलावा हरियाणा में एक विधानसभा सीट पर हमेशा निर्दलीय नेता का कब्जा रहा है।
हरियाणा के पुंदरी शहर में जनता 'पार्टी नहीं आदमी चाहिए' का नारा लगाती है। कैथल जिले के इस छोटे से शहर में बड़ी-बड़ी राजनीतिक पार्टियों को छोड़ निर्दलीय उम्मीदवारों का शासन रहा है। पुंदरी को बासमती चावल की खेती का गढ़ कहा जाता है।
सत्तारूढ़ पार्टी करती है भेदभाव
इस निर्वाचन क्षेत्र से लोगों ने बड़े-बड़े राजनीतिक दलों को छोड़ जनता के बीच से अपने नताओं को चुनकर सरकारें बनाई हैं। यहां के वोटर्स का कहना है कि अक्सर सरकार उनके क्षेत्र पर ध्यान नहीं देती या भेदभाव करती हैं क्योंकि वे एक ऐसे उम्मीदवार को चुनते थे जो सत्तारूढ़ पार्टी से नहीं होता है।
साल 1952 में बनाए गए पुंडरी विधानसभा क्षेत्र में ब्राह्मण और रोर समुदायों का वर्चस्व आज भी कायम है। इस सीट के पहले विधायक कांग्रेस के गोपीचंद थे।
निर्दलीय उम्मीदवारों को मौका देने लगी जनता-
फिर साल 1996 से निर्दलीय उम्मीदवार चुनने कराने की परंपरा शुरू हुई। 23 साल के अंतराल में पांच चुनाव हुए। 1996 में, निर्दलीय उम्मीदवार नरेंद्र शर्मा ने कांग्रेस के ईश्वर सिंह को हरा दिया। 2000 में, ईश्वर सिंह के बेटे तेजवीर ने निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ा, जिन्होंने नरेंद्र शर्मा को हराया। निर्दलीय उम्मीदवारों ने तीसरा और चौथा स्थान हासिल किया। वहीं भाजपा पांचवें और कांग्रेस छठे स्थान पर रही।
2005 में, स्वतंत्र दिनेश कौशिक ने नरेंद्र शर्मा को हराया, जो तब इंडियन नेशनल लोकदल (INLD) से चुनाव लड़े थे। कांग्रेस उम्मीदवार भाग सिंह तीसरे स्थान पर रहे, जबकि भाजपा के रणधीर सिंह गोलन चौथे स्थान पर रहे। 2009 में, स्वतंत्र सुल्तान सिंह जादोला ने दिनेश कौशिक को हराया, जिन्होंने तब कांग्रेस से चुनाव लड़ा था। 2014 में, दिनेश कौशिक ने फिर से निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। उन्होंने भाजपा के रणधीर सिंह गोलन को हराया था।
राष्ट्रीय पार्टी और निर्दलीय के बीच कांटे की टक्कर
2019 के विधानसभा में भी पुंदेरी सीट पर राष्ट्रीय पार्टी और निर्दलीय के बीच कांटे की टक्कर है। कई निर्दलीय उम्मीदवार राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों को चुनौती दे रहे हैं और दावा कर रहे हैं कि वे जीतेंगे। इनमें से कई निर्दलीय भाजपा में थे जिन्हें पार्टी से टिकट मिलने की उम्मीद थी। टिकट न मिलने पर ये अब निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनावी अखाड़े में कूद गए हैं। हालांकि इनमें से कुछ सत्तारूढ़ पार्टी के लिए समस्याएं पैदा कर सकते हैं।
निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीते विधायक दिनेश कौशिक जल्द ही भाजपा में शामिल हो गए थे और पार्टी से टिकट की उम्मीद कर रहे थे लेकिन मना किए जाने पर, वह अब फिर से निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा ने इस बार पुंदरी से वेदपाल एडवोकेट को अपना उम्मीदवार बनाया है। लंबे समय से भाजपा से जुड़े और कई बार पार्टी से चुनाव लड़ चुके रणधीर सिंह गोलन को इस बार टिकट देने से मना कर दिया गया। वह भी निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं।