महाराष्ट्र के चंद्रपुर से अनोखा मामला सामने आया है। जहां एक कुत्ते के बच्चे का नामकरण धूमधाम से किया गया। पूरे गांव के लोगों ने पैसा जुटाकर भोज कराया और वैदिक मंत्रों के हिसाब से नाम रखा गया। पूरे गांव ने की रस्में और गाए गीत गाए।
चंद्रपुर (महाराष्ट्र). फिल्मों और रियल लाइफ में हमने अक्सर देखा है कि इंसानों और कुत्तों का रिश्ता बेहद खास होता है। दोनों एक-दूसरे की की खातिर अपनी जान की बाजी लगा देते हैं। लेकिन महाराष्ट्र के चंद्रपुर से एक अलग ही मामला देखने को मिला। जिसे शायद ही आपने सुना और देखा होगा। यहां जब एक फीमेल डॉग ने बच्चों को जन्म दिया तो पूरे गांव में जश्न मनाया गया। इतना ही नहीं बच्चों के नामकरण की विधि भी हिंदू रीति-रिवाज और महाराष्ट्रियन परंपरा के अनुसार की गई।
कुतिया ने बच्चे को दिया जन्म, खुशी ऐसी की किसी महिला को हुई संतान
दरअसल, यह अनोखा मामला चंद्रपुर जिले के ब्रम्हपुरी तहसील के किन्हीं गांव का है। जहां कुछ दिन पहले एक पालतू कुतिया ने बच्चों को जन्म दिया था। ग्रामीणों ने यह जश्न ऐसे मनाया जैसे उनके परिवार में किसी के घर संतान पैदा हुई है। गांववालों में खुशी का ठिकाना नहीं रहा। इतना ही नहीं गांव की महिलाओं ने कुतिया और उसके बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी ली। इसके बाद हाल ही में गांव के रविंद्र प्रधान और मनोज सहारे ने अपने खर्चे पर कुत्तों के बच्चों का नामकरण पूरे धूमधाम से किया।
हनुमान मंदिर के परिसर में धूमधाम से किया नामकरण
गांव के प्रधान ने कुत्ते के बच्चों के नामकरण कार्यक्रम करने के लिए पहले एक बैठक की। इसके बाद गांव के हनुमान मंदिर के परिसर में नामकरण समारोह करने का फैसला किया गया। जिस में पूरे गांव के लोगों को भोज के लिए न्योता दिया गया। सजावट से लेकर गाजे-बाजे की व्यवस्था भी की गई। महिलाओं ने जहां लोकगीत गाए तो युवाओं ने डीजे पर डांस किया। वहीं पंडितों को बुलाकार हवन और पूजा पाठ भी कराया गया। महाराष्ट्रियन संस्कृति के मुताबिक महिलाओं ने कुत्ते के बच्चे का नाम "मोती और खंडोबा" रखा गया।
गांव में हर परिवार के सदस्य की तरह रहती है ये डॉगी
गांव के लोगों ने बताया कि पिछले पांच सालों से उनके गांव में एक लावारिस कुतिया आई थी। यह कुतिया सभी के घर में आने-जाने लगी। लोग भी उसे रोजाना सुबह-शाम खाना देने लगे। धीरे-धीरे वह लोगों के परिवार के सदस्य की तरह बन गई। त्यौहारों के वक्त लोग उसे पकवान खिलाते। देखते ही देखते उसके सीधे स्वभाव के कारण वो गांव में सबकी प्यारी हो गई। छोटे-छोटे बच्चे उसके पास खेलते रहते, किसी को काट नहीं। इतना ही नहीं वह दूसरे कुत्तों से उनकी रक्षा भी करती। इसी लगाव की वजह से ग्रामीणों और प्रधान ने उसके बच्चों के नामकरण करने का फैसला किया।