रबीन्द्रनाथ टैगोर को इस नाम से बुलाते थे अल्बर्ट आइंस्टीन, भारत के अलावा लिखा एक और देश का राष्ट्रगान

भारत 2022 में अपनी आजादी का अमृत महोत्सव (Aazadi Ka Amrit Mahotsav) सेलिब्रेट कर रहा है। 15 अगस्त, 2022 को भारत की स्वतंत्रता के 75 साल पूरे हो रहे हैं। बता दें इस महोत्सव की शुरुआत पीएम नरेंद्र मोदी ने 12 मार्च, 2021 को गुजरात के साबरमती आश्रम से की थी। इस मौके पर हम बता रहे हैं देश की महान हस्तियों के बारे में, जिन्होंने भारत का नाम रोशन किया। 

कोलकाता। भारत इस साल अपनी आजादी का अमृत महोत्सव (Aazadi Ka Amrit Mahotsav) सेलिब्रेट कर रहा है। 15 अगस्त, 2022 को भारत की स्वतंत्रता के 75 साल पूरे हो रहे हैं। बता दें इस महोत्सव की शुरुआत पीएम नरेंद्र मोदी ने 12 मार्च, 2021 को गुजरात के साबरमती आश्रम से की थी। आजादी से पहले भी भारत में ऐसे कई लोग पैदा हुए जिन्होंने देश का नाम पूरी दुनिया में रोशन किया। इन्हीं में से एक हैं गुरुदेव यानी रबीन्द्रनाथ टैगोर। रबीन्द्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) भारत के महान साहित्यकारों में से एक हैं। वो बंगाली कवि होने के साथ ही साथ एक विद्वान, उपन्यासकार, नाटककार, मानवतावादी और दार्शनिक भी थे। उन्हें भारत के राष्ट्रगान 'जन-गण-मन' को लिखने का श्रेय जाता है। 7 मई, 1861 को कलकत्ता में पैदा हुए रबीन्द्रनाथ टैगोर को उनकी महान रचना 'गीतांजलि' के लिए 1913 में साहित्य का नोबल पुरस्कार दिया गया था। वे नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय भी हैं। महात्मा गांधी ने उन्हें 'गुरुदेव' की उपाधि से नवाजा था। 

8 साल की उम्र में शुरू कर दिया था लेखन : 
बचपन से ही रबीन्द्रनाथ टैगोर की रुचि साहित्य की ओर थी। उन्होंने महज 8 साल की उम्र में ही कहानी-कविताएं लिखना प्रारंभ कर दी थीं। 1877 में सिर्फ 16 साल की उम्र में उनकी पहली लघुकथा प्रकाशित हो गई थी। उन्होंने अपने जिंदगी में कई कविताएं, लघुकथाएं, यात्रा वृतांत, उपन्यास, निबंध, गीत और नाटक लिखे हैं। टैगोर की प्रमुख रचनाओं की बात करें तो इनमें गीतांजलि, चोखेरबाली, कणिका, क्षणिका, पूरबी प्रवाहिन, पोस्ट मास्टर, काबुलीवाला, पुनश्च, गीतिमाल्य, महुआ, कश्मकश, वनवाणी, और वीथिका शेषलेखा हैं। 

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टैगोर की रचनाओं पर बनीं ये फिल्में : 
फिल्म प्रोड्यूसर और साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता सत्यजीत रे ने रबीन्द्रनाथ टैगोर की शॉर्ट स्टोरीज और उपन्यासों पर बेस्ड कुछ फिल्में भी बनाई हैं। इनमें चोखेरबाली,  मिलन, काबुलीवाला, उपहार, नौका डूबी, घरे बाइरे, लेकिन, चारुलता और चार अध्याय जैसी फिल्में शामिल हैं। 

1901 में की शांति निकेतन की स्थापना : 
रबीन्द्रनाथ टैगोर ने 1901 में शांति निकेतन की स्थापना की थी। कहा जाता है कि एक बार उनका यह संस्थान तंगहाली से गुजर रहा था। ऐसे समय में रबीन्द्रनाथ टैगोर देशभर में घूम-घूमकर नाटकों का मंचन किया और उससे पैसे जुटाए थे। जब ये बात गांधीजी को पता चली तो उन्होंने शांति निकेतन को बुरे दौर से उबारने के लिए उस वक्त 60 हजार रुपए दिए थे।  

इसलिए लौटा दी थी नाइटहुड की उपाधि : 
ब्रिटेन के जॉर्ज पंचम ने रबीन्द्रनाथ को 1915 में  'नाइटहुड' (Knighthood) की उपाधि से नवाजा था। ये वो दौर था, जब 'नाइटहुड' की उपाधि पाने वाले शख्स के नाम के पहले 'सर' लगाया जाता था। हालांकि, अमृतसर के जलियांवाला बाग में 13 अप्रैल, 1919 को हुए भीषण नरसंहार के विरोध में टैगोर ने अंग्रेजों को यह उपाधि लौटा दी थी। 

भारत के अलावा लिखा इस देश का राष्ट्रगान : 
रबीन्द्रनाथ टैगोर पहले ऐसे शख्स थे, जिन्होने दो देशों का राष्ट्रगान लिखा है। भारत का राष्ट्र-गान ‘जन गण मन’ के अलावा उन्होंने बांग्लादेश का राष्ट्र गान ‘आमार सोनार बांग्ला’ भी लिखा है। टैगोर अपने जीवन मे तीन बार अल्बर्ट आइंस्टीन जैसे महान वैज्ञानिक से भी मिले। वो टैगोर को रब्बी टैगोर कह कर बुलाते थे। रबीन्द्रनाथ टैगोर भारत के बहुमूल्य रत्नों में से एक हैं।  

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