एक दूसरे के प्यार में डूबीं सहेलियों ने रचाई शादी, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मान्यता देने से किया इंकार

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने समलैंगिक विवाह के एक मामले में शादी को मान्यता देने से इंकार कर दिया है। कोर्ट ने सरकार के उन तर्कों को सही माना, जिनमें धर्म, संस्कृति और कानून का हवाला दिया गया है।  

प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High court) ने एक समलैंगिक जोड़े () की शादी को मान्यता देने से इंकार कर दिया है। जस्टिस शेखर कुमार यादव ने यह फैसला एक युवती की मां द्वारा दायर याचिका की सुनवाई के दौरान दिया। महिला ने अपनी बेटी की कस्टडी मांगी थी। महिला का आरोप था कि उनकी बेटी को एक अन्य युवती ने जबरन बंधक बनाकर रखा है।

लड़कियों ने कहा- वयस्क हैं, सहमति पत्र भी दिखाया 
कोर्ट के निर्देश पर अतिरिक्त सरकारी वकील ने बेटी और बंधक बनाने की आरोपी युवती को कोर्ट में पेश किया। लेकिन कोर्ट में दोनों ने कहा कि वे दोनों वयस्क हैं और एक दूसरे से प्यार करती हैं। दोनों ने खुद के शादी करने का भी दावा किया। दोनों लड़कियों ने कोर्ट के सामने विवाह से जुड़ा एक सहमति पत्र भी पेश किया। इसमें एक लड़की की उम्र 23 और दूसरी की 22 साल बताई गई है। दोनों ने अदालत को बताया कि वे वयस्क हैं और एक-दूसरे से बहुत प्यार करती हैं। उन्होंने आपसी सहमति से शादी करने की बात कोर्ट में स्वीकार की। 
 
मौलिक अधिकारों का हवाला देकर मांगी शादी की मान्यता
युवतियों ने उनकी शादी को मान्यता देने की गुहार लगाई। उन्होंने कहा कि इसके जरिये वे समाज के सामने कानूनी रूप से जीवन जी सकेंगी। इसके लिए दोनों ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले को भी आधार बनाया, जिसमें दो वयस्कों को आपसी सहमति से साथ रहने की आजादी दी गई थी। युवतियों ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम समान लिंग विवाह का स्पष्ट रूप से विरोध नहीं करता है। इसलिए उनकी शादी को मान्यता दी जानी चाहिए। युवतियों ने दावा किया कि यदि उन्हें समान लिंग विवाह का अधिकार नहीं दिया गया तो यह उनके मौलिक अधिकारों का हनन होगा। उन्होंने कोर्ट से कहा कि दुनियाभर के 25 देशों में समान लिंग विवाह को मान्यता दी गई है। 

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सरकार ने कहा- भारत संस्कृति, धर्म और कानून से चलने वाला देश 
लेकिन उनके दावे पर सरकार ने कहा कि भारत एक ऐसा देश है जो भारतीय संस्कृति, धर्म और कानून के अनुसार चलता है। यहां विवाह को एक अनुबंध नहीं, बल्कि एक पवित्र संस्कार माना जाता है। भारत में विवाह के समय, हिंदू पुरुष और महिलाएं भगवान और अग्नि के गवाह के रूप में शपथ लेते हैं कि वे जीवन भर एक-दूसरे के सुख-दुख में शामिल रहेंगे। पुरुष और महिला की अनुपस्थिति में भारतीय परिवेश में विवाह को स्वीकार नहीं किया जा सकता था, क्योंकि यह भारतीय परिवार की अवधारणा से परे है।

हिंदू विवाह अधिनियम में भी समान लिंग विवाह मान्य नहीं 
कोर्ट में बताया गया कि हिंदू विवाह अधिनियम 1955, विशेष विवाह अधिनियम 1954 और विदेशी विवाह अधिनियम 1969 समान लिंग विवाह को मान्यता नहीं देते हैं। वास्तव में, यह इंगित किया गया है कि मुसलमानों, बौद्धों, जैनियों, सिखों आदि में भी समान लिंग विवाह को मान्यता नहीं दी गई थी। सनातन विधि में वर्णित 16 प्रकार के संस्कारों के हिसाब से एक पुरुष और एक महिला के अभाव में संस्कार पूरे नहीं हो सकते। 

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