Budget 2022 : स्वास्थ्य सेवाओं का खर्च कम है, लेकिन यह लगातार बढ़ रहा है। यही वजह है कि शिशु मृत्यु दर के मामले में हमारा देश काफी बदलाव ला चुका है। 1955 तक जहां प्रति हजार 181 बच्चों की मृत्यु हो जाती थी, वहीं अब देश में यह आंकड़ा 32 पर सिमट चुका है। देश में अस्पतालों में प्रसवों की संख्या भी बढ़ी है। इसलिए माना जा रहा है कि स्वास्थ्य के प्रति लोगों में जागरूकता आई है।
नई दिल्ली। मंगलवार को पेश हुए देश के बजट (Union budget 2022) में स्वास्थ्य (Health) और शिक्षा पर काफी फोकस किया गया है। स्वास्थ्य का बजट पिछले साल से 16 फीसदी बढ़ाया गया है, इसके बावजूद देश में अभी स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की जरूरत नजर आ रही है। दरअसल, भारत में स्वास्थ्य का खर्च अभी जीडीपी का एक फीसदी ही है। इस मामले में हम पाकिस्तान से भी पीछे हैं। पाकिस्तान का स्वास्थ्य पर खर्च जीडीपी का 1.1 फीसदी है। इंडोनेशिया (1.4%) और फिलीपींस (1.7%) भी इस मामले में हमसे आगे हैं। ब्रिटेन में यह 8.1 फीसदी और अमेरिका में 8.5 फीसदी है। यानी स्वास्थ्य सेवाओं के खर्च के लिहाज से हम अभी बांग्लादेश (0.5%) जैसे देश से ही आगे हैं। पड़ोसी देश चीन में यह जीडीपी का 3 फीसदी है।
भारत में शिशु मृत्यु दर घटी, लेकिन इसमें भी हम काफी पीछे
स्वास्थ्य सेवाओं का खर्च कम है, लेकिन यह लगातार बढ़ रहा है। यही वजह है कि शिशु मृत्यु दर के मामले में हमारा देश काफी बदलाव ला चुका है। 1955 तक जहां प्रति हजार 181 बच्चों की मृत्यु हो जाती थी, वहीं अब देश में यह आंकड़ा 32 पर सिमट चुका है। देश में अस्पतालों में प्रसवों की संख्या भी बढ़ी है। इसलिए माना जा रहा है कि स्वास्थ्य के प्रति लोगों में जागरूकता आई है। पाकिस्तान में अभी भी प्रति हजार 61 बच्चों की मौत हो रही है। हालांकि ब्रिटेन और अमेरिका इस मामले में बहुत सक्षम हो चुके हैं। ब्रिटेन में प्रति एक हजार जन्म के अनुपात में महज 4 मौतें होती हैं, जबकि अमेरिका में यह आंकड़ा 5 पर सिमट चुका है।
स्वास्थ्य के लिए 86,200.65 करोड़ का बजट
मंगलवार को पेश हुए बजट में स्वास्थ्य के लिए 86,500.65 करोड़ रुपए की घोषणा की गई है। पिछले 2021-22 के बजट में 73,931 करोड़ का बजट हेल्थ सेक्टर के लिए रखा गया था। यानी इस बार बजट में 12,269 करोड़ रुपए की वृद्धि की गई है। हालांकि इस बार टीकाकरण का बजट घटाया गया है। पिछले बजट में यह 74,820 करोड़ रुपए था, जिसे इस बार 41 हजार करोड़ रखा गया है। दरअसल, देश में 75 प्रतिशत लोगों को टीके की दोनों डोज लग चुकी हैं। इसी के चलते टीकाकरण के बजट में कमी की गई है।
देश में इतनी सुधरीं स्वास्थ्य सेवाएं
- 1947 में जहां औसत उम्र महज 32 वर्ष थी, वह 2018 में 69.09 वर्ष हो गई।
- 1950-51 के दौरान देश में मेडिकल कॉलेजों की संख्या 28 थी, जो अब 596 हो गई है। 2014 के बाद से इसमें 54फीसदी की वृद्धि हुई है।
- पिछले 7 वर्षों के दौरान, एमबीबीएस सीटों में 79.6% (51,348 सीटों से 92,222 सीटों तक) और पीजी सीटों की संख्या में 80.7% (31,185 सीटों से 56374 सीटों तक) की वृद्धि हुई है।
- 2014 से पहले कुल मेडिकल सीटों की संख्या 82,500 के आसपास थी। और पिछले 7 साल में 66,000 सीटें बढ़ी हैं। यानी इनमें लगभग 80% की वृद्धि हुई है।
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