केंद्र सरकार ने दो जनवरी 2018 में इलेक्टोरल बॉन्ड योजना का नोटिफिकेशन जारी किया था। इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम के अनुसार, चुनावी बांड को भारत के किसी भी नागरिक द्वारा खरीदा जा सकता है। कोई भी व्यक्ति खुद या कई व्यक्तियों के साथ मिलकर बॉन्ड खरीद सकता है। चुनावी बॉन्ड केवल उन्हीं राजनीतिक दलों को मिल सकता है जो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत हैं।
Centre affidavit on Electoral bond: केंद्र सरकार ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में चुनावी बॉन्ड स्कीम्स को लेकर उठ रहे सवालों पर अपना जवाब दाखिल किया है। केंद्र सरकार ने कोर्ट को बताया कि राजनीतिक फंडिंग के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड बिल्कुल ही पारदर्शी तरीका है। इससे काला धन या बेहिसाब धन प्राप्त करना किसी भी राजनीतिक दल के लिए संभव नहीं है। नकद चंदे के विकल्प के रूप में इलेक्टोरल बॉन्ड को पेश करना सरकार का फैसला सही है और इससे काला धन का फ्लो रूकेगा।
सुप्रीम कोर्ट इलेक्टोरल बॉन्ड पर कर रहा है सुनवाई
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स,भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और अन्य याचिकाकर्ताओं की ओर से एक जनहित याचिका दायर की गई है। जनहित याचिका में कहा गया है कि इलेक्टोरल बॉन्ड चुनावी फंड के रूप में स्वीकार करना देशहित में सही नहीं है। दायर याचिका में कहा गया था कि इलेक्टोरल बॉन्ड से राजनीतिक दलों के पास अवैध व विदेशी फंड आ रहे हैं। यह पूरी तरह से अपारदर्शी है और इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल रहा जिससे लोकतंत्र कमजोर हो रहा। याचिका में इलेक्टोरल बॉन्ड पर रोक लगाने की मांग की गई थी। बीते दिनों एक अंतरिम आवेदन करके इलेक्टोरल बॉन्ड को तत्काल बंद करने की मांग की गई थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाने से इनकार करने के साथ सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार को तलब किया था। केंद्र सरकार से सुप्रीम कोर्ट ने जवाब दाखिल करने को कहा था। केंद्र सरकार की ओर से तुषार मेहता ने सुनवाई कर रही जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस बी वी नागरत्ना की बेंच में जवाब दाखिल किया।
तत्कालीन सीजेआई रमना ने तत्काल सुनवाई पर दी थी सहमति
एनजीओ की ओर से पेश हुए भूषण ने 5 अप्रैल को तत्कालीन सीजेआई एन वी रमना के समक्ष इस मामले का उल्लेख करते हुए कहा था कि यह मुद्दा गंभीर है और इस पर तत्काल सुनवाई की जरूरत है। इस पर तत्कालीन सीजेआई एनवी रमना ने मामले को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने की सहमति जताई थी। लेकिन यह मामला सूचीबद्ध नहीं हो सका था। बीते 4 अक्टूबर को एक बार फिर प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट से तत्काल इस मामले को सूचीबद्ध करने की मांग की थी साथ ही कहा कि अगर सुनवाई में देरी हो रही है तो सुनवाई तक इलेक्टोरल बॉन्ड पर रोक लगा दी जाए।
शुक्रवार को केंद्र सरकार ने दाखिल किया जवाब
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर सुनवाई की है। शीर्ष अदालत ने तय किया कि छह दिसंबर को वह सुनवाई के दौरान यह फैसला लेगी कि इन याचिकाओं को बड़े बेंच के पास भेजा जाए या नहीं। इस मामले की सुनवाई के दौरान एपेक्स कोर्ट ने अटार्नी जनरल व सॉलिसिटर जनरल से भी राय मांगी है।
उधर, सुनवाई के दौरान पेश हुए याचिकाकर्ता के दौरान पेश हुए प्रशांत भूषण ने कहा कि यह परस्पर जुड़ा हुआ मुद्दा है, इससे लोकतंत्र को प्रभावित किया जा सकता है। इस मामले की तत्काल प्रभाव से सुनवाई की जानी चाहिए क्योंकि हर राज्य के चुनाव के पहले चुनावी बॉन्ड जारी किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि शेल कंपनियों के माध्यम से अवैध धन राजनीतिक दलों के पास इलेक्टोरल बॉन्ड के रूप में जा रहा है। अवैध धन का फ्लो इससे तेज हो रहा है। इस पर रोक लगनी चाहिए। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए कपिल सिब्बल ने कहा कि इस मुद्दे पर एक बड़ी पीठ को सुनवाई करनी चाहिए। बता दें कि पिछले साल 20 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना पर रोक से इनकार कर दिया था। लेकिन केंद्र सरकार व चुनाव आयोग से इस पर जवाब मांगा था।
2018 में इलेक्टोरल बॉन्ड का नोटिफिकेशन हुआ
केंद्र सरकार ने दो जनवरी 2018 में इलेक्टोरल बॉन्ड योजना का नोटिफिकेशन जारी किया था। इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम के अनुसार, चुनावी बांड को भारत के किसी भी नागरिक द्वारा खरीदा जा सकता है। वह व्यक्ति भी खरीद सकता है जो भारत में इनकारपोरेटेड हो या यहां रहता हो। कोई भी व्यक्ति खुद या कई व्यक्तियों के साथ मिलकर बॉन्ड खरीद सकता है। चुनावी बॉन्ड केवल उन्हीं राजनीतिक दलों को मिल सकता है जो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत हैं। यह दल पिछले आम चुनाव में लोक सभा या राज्य की विधान सभा के मतदान में कम से कम एक प्रतिशत मत प्राप्त किए हैं। चुनावी बॉन्ड को कोई भी वही पात्र राजनीतिक दल अपने अधिकृत बैंक खातों के माध्यम से ही कैश करा सकते हैं।
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