भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने ऐलान किया है कि 13 जुलाई को दोपहर 2.30 बजे चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3 Launching) की लांचिंग की जाएगी।
Chandrayaan-3 Launching. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने ऐलान किया है कि 13 जुलाई को दोपहर 2.30 बजे चंद्रयान-3 की लांचिंग की जाएगी। इसरो ने कहा कि भारत अपने बहुप्रतिक्षित चंद्रयान-3 की लांचिंग श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से करेगा। चंद्रयान-3 की लांचिंग जीएसएलवी मार्क-3 हैवी लिफ्ट लांच व्हीकल से किया जाएगा।
13 जुलाई 2023 को दोहपर 2.30 बजे चंद्रयान-3 की लांचिंग
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO)द्वारा मिशन मून के चंद्रयान-3 की लांचिंग का ऐलान कर दिया गया है। इसरो के अधिकारियों ने बताया कि 13 जुलाई को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से दोपहर 2.30 बजे चंद्रयान-3 को लांच किया जाएगा। जानकारी के लिए बता दें कि चंद्रयान की लांचिंग के लिए यह भारत का तीसरा प्रयास है। इससे पहले चंद्रयान-2 के दौरान कई खट्टी-मीठे अनुभव हुए थे और पूरा देश उस वक्त का साक्षी बना था। अंतरिक्ष अनुसंधान की बात करें तो यह देश के लिए एक और बड़ी प्रगति है। पिछली बार यानि चंद्रयान-2 के दौरान विक्रम लैंडर की सही लांचिंग नहीं हो पाई थी लेकिन अब पूरे अनुभव के साथ नई शुरूआत की जानी है।
चंद्रयान-3 की लांचिंग पर इसरो अधिकारियों का बयान
इसरो अधिकारियों के मुताबिक इस मिशन की सफलता की पूरी उम्मीद है। चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट-लैंडिंग और रोबोटिक रोवर को नियंत्रित करने का तरीका हमें उम्मीद देता है। अधिकारियों ने कहा कि चंद्रयान-3 मिशन से चंद्रमा के बारे में हमारी समझ को आगे बढ़ाने की उम्मीद है। प्रक्षेपण के लिए जीएसएलवी मार्क 3 हेवी-लिफ्ट लॉन्च वाहन का उपयोग किया जाएगा, जो कि भारत के श्रीहरिकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र में होगा। इस मिशन का बजट 615 करोड़ डॉलर है। अधिकारियों ने कहा कि खतरों को कम करने और सफल मिशन की गारंटी के लिए चंद्रयान-3 को व्यापक परीक्षण और सत्यापन प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ा है।
इस बार किए गए हैं कई सुधार
अधिकारियों के अनुसार इस बार इसरो ने मिशन की सफलता की गारंटी के लिए कई सुधार किए हैं। चंद्रयान-2 की तरह, चंद्रयान-3 भी एक लैंडर रोवर भेजेगा। लेकिन यह ऑर्बिटर नहीं भेजेगा। लैंडर और रोवर को प्रोपल्शन मॉड्यूल द्वारा ले जाया जाएगा। मिशन का रहने योग्य ग्रह पृथ्वी (SHAPE) पेलोड का स्पेक्ट्रो-पोलरिमेट्री भी महत्वपूर्ण होगा क्योंकि यह उपकरण चंद्र कक्षा से पृथ्वी की वर्णक्रमीय और पोलारिमेट्रिक रीडिंग का विश्लेषण करेगा। इससे हमारे वैज्ञानिकों को हमारे ग्रह के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिलेगी।
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