केंद्र सरकार ने एक देश एक चुनाव (One Nation, One Election) पर चर्चा के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया है।
नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने एक देश एक चुनाव (One Nation, One Election) को लेकर बड़ी पहल की है। सरकार ने इस मुद्दे पर चर्चा के लिए एक कमेटी का गठन किया है। इसकी अध्यक्षता पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद करेंगे। यह कमेटी सभी दलों और स्टेकहोल्डर्स के साथ चर्चा करेगी। कमेटी के सदस्यों के नामों की घोषणा जल्द ही नोटिफिकेशन के माध्यम से की जाएगी।
गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने 18-22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र बुलाया है। सूत्रों से ऐसी जानकारी मिली है कि इस दौरान सरकार संसद में 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' विधेयक पेश कर सकती है। 11 अगस्त को संसद के मानसून सत्र का समापन हुआ था। इससे पहले 30 जून 2017 की आधी रात को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने जीएसटी लागू करने के लिए लोकसभा और राज्यसभा की विशेष संयुक्त बैठक बुलाई थी। हालांकि, इस बार यह पांच दिनों का पूर्ण सत्र होगा।
क्या है एक राष्ट्र, एक चुनाव मामला?
'एक राष्ट्र, एक चुनाव' का मतलब है कि देश में सभी चुनाव एक साथ होने चाहिए। वर्तमान में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव अलग-अलग वक्त पर होते हैं। लोकसभा और विधानसभा दोनों के सदस्यों का कार्यकाल पांच साल का है। लोकसभा और विधानसभा के चुनाव अलग-अलग वक्त होने से हर साल देश के अलग-अलग राज्यों में चुनाव होते रहते हैं। चुनाव होने पर संबंधित राज्य में आचार संहिता लागू होती है।
नरेंद्र मोदी सरकार का कहना है कि अलग-अलग समय चुनाव होने से सरकार को काम करने में परेशानी होती है। सरकार का मानना है कि लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ होने चाहिए ताकि सरकारों को काम करने का अच्छा मौका मिले। अगर एक देश, एक चुनाव को लेकर कानून बनता है तो पूरे देश में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ हो सकते हैं। संभव है कि मतदान एक ही समय के आसपास हो।
विपक्ष को मंजूर नहीं एक राष्ट्र, एक चुनाव
विपक्ष द्वारा एक राष्ट्र, एक चुनाव का विरोध किया जा रहा है। कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने पूछा है कि सरकार को इतनी जल्दबाजी क्यों है? सरकार की नीयत साफ नहीं है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने एक राष्ट्र, एक चुनाव को लेकर लाए जाने वाले बिल संबंधी सवाल पर कहा कि हम लड़ाई जारी रखेंगे।
क्या है एक राष्ट्र, एक चुनाव की चुनौतियां?
भारत जैसे बड़े देश में एक समय में सभी चुनाव कराना चुनौतिपूर्ण होगा। देश में लोकसभा और विधानसभा के साथ ही नगरपालिका और पंचायत स्तर के चुनाव होते हैं। लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराने पर सुरक्षा बलों की उपलब्धता की चुनौती होगी। इसके साथ ही ये सवाल भी उठ रहे हैं।
1- कई राज्यों में विपक्षी दलों की सरकारें हैं। अगर एक देश, एक चुनाव को लेकर फैसला होता है तो सवाल उठेगा कि क्या राज्यों में चल रही सरकारें गिर जाएंगी और वहां चुनाव कराए जाएंगे?
2- क्या विपक्षी दल इस बात के लिए तैयार होंगे कि राज्य में चल रही उनकी सरकार गिर जाए?
3- विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एक साथ कराए जाते हैं और अगर किसी राज्य में पांच साल से पहले ही सरकार गिर जाती है तो वहां किस तरह चुनाव होंगे?
4- अगर बीच में चुनाव हुए तो सरकार पांच साल के लिए बनेगी या बचे हुए कार्यकाल के लिए?
5- अगर केंद्र सरकार पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई और बीच में गिर गई तो चुनाव किस तरह होंगे?
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