घायलों को बाहर निकालना, उनको सुरक्षित करना या आवश्यक फर्स्ट एड के लिए किसी स्थानीय अस्पताल तक पहुंचाने में देरी नहीं की। अधिकारियों और रेस्क्यू टीमों के पहुंचने के बाद भी लोग निस्वार्थ भाव से बीते 24 घंटे से जुटे हुए हैं।
Coromandel Express Accident: ओडिशा के बालासोर में शुक्रवार की रात हुई भयानक ट्रेन दुर्घटना (Odisha Train Accident) पूरे देश का दिल दहला दिया है। पिछले दो दशक से अधिक समय में हुए सबसे दर्दनाक ट्रेन हादसा का मंजर रूह कंपा देने वाला है। कई सौ मौतों के बीच अभी फाइनल संख्या का सामने आना शेष है। एक हजार से अधिक घायल हैं। लेकिन इस दुर्घटना के बाद मदद को आगे बढ़े हाथ ने एक बार भी भारत की मजबूत साझी संस्कृति और विरासत को पुख्ता किया है।
दरअसल, शुक्रवार की शाम को जैसे ही यह हादसा हुआ, हर ओर चीख पुकार मच गई। सरकारी तंत्र जबतक एक्टिव होता, आसपास के लोग बिना समय गंवाए अपने सीमित संसाधनों और बुलंद हौसलों से मदद को आगे बढ़े। घायलों को बाहर निकालना, उनको सुरक्षित करना या आवश्यक फर्स्ट एड के लिए किसी स्थानीय अस्पताल तक पहुंचाने में देरी नहीं की। अधिकारियों और रेस्क्यू टीमों के पहुंचने के बाद भी लोग निस्वार्थ भाव से बीते 24 घंटे से जुटे हुए हैं। घायल यात्रियों को एंबुलेंस, वाहनों के साथ-साथ ट्रैक्टरों के माध्यम से अस्पतालों तक ले जाने में अधिकारियों की मदद करना हो या जरूरतमंद लोगों के लिए रक्तदान करना, मददगार लोगों की कतार कम नहीं हो रही है।
कम से कम 280 लोगों की मौत, 900 से अधिक घायल
शालीमार-चेन्नई सेंट्रल कोरोमंडल एक्सप्रेस, बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस और एक मालगाड़ी के बीच टक्कर में कम से कम 280 लोग मारे गए। 900 से अधिक घायल हुए। पूरे देश की निगाहें इस भीषण हादसे की पल-पल की जानकारी के लिए लगी हुई है।
जब पहुंचे तो मंजर देख रूह कांप उठी
बालासोर जिले में बहनागा बाजार स्टेशन क्षेत्र के रणजीत गिरी, बिप्रदा बाग, आशा बेहरा और अशोक बेरा जब चीख पुकार सुनकर पहुंचे तो मंजर बेहद भयावह था। यह लोग दुर्घटनास्थल के पास के ही रहने वाले हैं। ये घायलों की सहायता करने वालों में सबसे पहले थे। रणजीत गिरी मीडिया से बातचीत में कहते हैं...मैं शाम 7 बजे के आसपास अपने दोस्तों के साथ पास की एक चाय की दुकान पर था। अचानक, मैंने एक तेज़ आवाज़ सुनी जिसके बाद लोगों के रोने की आवाज़ आई। हम मौके पर पहुंचे और जो देखा उससे हम दंग रह गए। बिना समय गंवाए हमने घायलों को निकालना शुरू किया। हमने पुलिस और रेलवे अधिकारियों को भी सूचित किया। हमने कम से कम 50 घायल यात्रियों को बचाया और यात्रियों को स्थानीय अस्पताल तक पहुंचाने के लिए अपने वाहनों का इस्तेमाल किया। बचे हुए कुछ लोग अपने प्रियजनों की तलाश कर रहे थे, लेकिन अंधेरा होने के कारण हम उनकी मदद नहीं कर सके।
रक्तदान के लिए पहुंच रहे लोग, ताकि खून की कमी न हो
61 वर्षीय निवासी अशोक बेरा अस्पताल में रक्तदान करने गए थे। लेकिन जब डॉक्टर ने उनकी उम्र की वजह से ब्लड लेने से मना किया तो वह अपने बेटों और रिश्तेदारों को बुलाकर ब्लड डोनेट कराने में लगे हुए हैं। उन्होंने बताया कि मैं यहां रक्तदान करने आया था लेकिन मेरी उम्र के कारण अनुमति नहीं दी गई। इसके बाद मैंने अपने बेटों और रिश्तेदारों से अस्पताल पहुंचकर रक्तदान करने को कहा।
बेरा ने हादसे में बचे लोगों से भी बात की और उनके परिवार को फोन कॉल भी अपनी मोबाइल से कराया। ज्यादातर बचे लोगों ने अपने मोबाइल खो दिए और वे अपने परिवारों से बात नहीं कर पा रहे। बेरा अपने फोन से उन्हें अपनी स्थिति के बारे में सूचित करा रहे ताकि कोई परेशान न हो।
कई हजार लोग व सरकारी कर्मचारी मदद के लिए लगे..
भुवनेश्वर के अधिकारियों के अनुसार, घटनास्थल पर 1,200 कर्मचारियों के अलावा 200 एंबुलेंस, 50 बसें और 45 मोबाइल स्वास्थ्य यूनिट्स काम कर रही हैं। शव वाहन या एंबुलेंस कम पड़ रहे तो लोग अपने ट्रैक्टर्स से शवों को मोर्चरी पहुंचा रहे। यह ट्रेन दुर्घटना, उपलब्ध रिकॉर्ड के अनुसार भारत में चौथी सबसे घातक एक्सीडेंट है। बालासोर जिले के बहनगा बाजार स्टेशन के पास, कोलकाता से लगभग 250 किमी दक्षिण और भुवनेश्वर से 170 किमी उत्तर में, तीन ट्रेनों के टकराने से सैकड़ों लोगों की जान चली गई।
बहरहाल, परिस्थितियां चाहें जैसी भी हो, भारत ने अपनी साझी संस्कृति, विविधता में एकता के बल पर हमेशा ही उठकर चलना सीखा है। हालांकि, बालासोर ट्रेन हादसा एक काले अध्याय की तरह हमारे दिलो-दिमाग को हमेशा विचलित करता रहेगा लेकिन मदद को बढ़े हजारों अनजान हाथ, समाज को तोड़ने वाली शक्तियों को आइना भी दिखाते रहेंगे। शायर इकबाल ने ठीक ही कहा…यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रोमा सब मिट गए जहां से। अब तक मगर है बाक़ी नामों-निशां हमारा। कुछ बात है कि हस्ती…
यह भी पढ़ें: