कोर्ट ने केरल सरकार को दिया आदेश, सबरीमाला मंदिर प्रशासन के लिए बनाए अलग कानून

उच्चतम न्यायालय ने केरल सरकार को सबरीमला मंदिर के प्रशासन के लिये एक विशेष कानून तैयार करने का निर्देश दिया है। पीठ ने राज्य सरकार से कहा कि अगले साल जनवरी के तीसरे सप्ताह तक उसके समक्ष कानून का मसौदा पेश करने का आदेश दिया है। 

नई दिल्ली. उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को केरल सरकार से कहा कि ऐतिहासिक सबरीमला मंदिर के प्रशासन के लिये एक विशेष कानून तैयार किया जाये। न्यायमूर्ति एन वी रमण की अध्यक्षता वाली पीठ ने राज्य सरकार से कहा कि अगले साल जनवरी के तीसरे सप्ताह तक उसके समक्ष कानून का मसौदा पेश किया जाये जिसमे सबरीमला मंदिर आने वाले तीर्थयात्रियों के कल्याण के पहलुओं को भी शामिल हों।

एक तिहाई महिलाएं करेंगी प्रतिनिधित्व

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राज्य सरकार की ओर से पेश वकील ने कहा कि उसने त्रावणकोर देवस्वओम बोर्ड को शासित करने वाले कानून में संशोधन तैयार किये हैं जिसके तहत मंदिरों और उनके प्रशासन के मुद्दे आयेंगे। उन्होंने कहा कि कानून के प्रस्तावित मसौदे में मंदिर की सलाहकार समिति में महिलाओं का एक तिहाई प्रतिनिधित्व होगा।

50 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाएं होंगी शामिल 

इस पहलू ने न्यायालय में ही शीर्ष अदालत के सितंबर, 2018 के फैसले को लेकर बहस छिड़ गयी। इस फैसले के अंतर्गत सबरीमला मंदिर मे सभी आयु वर्ग की महिलाओं और लड़कियों को प्रवेश की अनुमति दी गयी थी। राज्य सरकार ने कहा कि फिलहाल तो उसका प्रस्ताव मंदिर की सलाहकार समिति में सिर्फ उन महिलाओं को ही प्रतिनिधत्व दिया जायेगा जिनकी आयु 50 वर्ष से अधिक है।

इस पर पीठ के एक सदस्य न्यायाधीश ने संविधान पीठ के 28 सितंबर, 2018 के फैसले का जिक्र किया और कहा कि सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने संबंधी निर्देश अभी प्रभावी हैं।शीर्ष अदालत 2011 में दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें सबरीमला मंदिर के प्रशासन का मुद्दा उठाया गया था।

सरकार अलग से कानून बनाने पर कर रही विचार 

राज्य सरकार ने इस साल अगस्त में न्यायालय से कहा था कि वह सबरीमला मंदिर के प्रशासन के लिये अलग से कानून बनाने पर विचार कर रही है। सबरीमला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश संबंधी फैसले पर पुनर्विचार के लिये दायर याचिकाओं को मुस्लिम और पारसी समुदाय की महिलओं के साथ होने वाले कथित पक्षपात से संबंधित मुद्दों के साथ पिछले सप्ताह तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 3:2 के बहुमत से सात सदस्यीय संविधान पीठ को सौंप दिया था।

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