भारत में कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर चल रही है। महामारी को नियंत्रित करने के लिए अपनाई गई रणनीतियों पर सवाल उठाते हुए भारत सरकार से कई सवाल पूछे गए हैं। हालांकि, इस कठिन परिस्थिति में जिस तरह से सरकार ने इस उथल-पुथल को संभाला है, उसमें क्या सरकार को अक्षम पाया गया है। क्या ऐसी विकट परिस्थिति से निपटने के लिए अपने पास उपलब्ध संसाधनों को जुटाना गया है, आइए इन मुद््दों को लेकर उठ रहे सवालों के जवाब को पता लगाया जाए।
अखिलेश मिश्र
भारत में कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर चल रही है। महामारी को नियंत्रित करने के लिए अपनाई गई रणनीतियों पर सवाल उठाते हुए भारत सरकार से कई सवाल पूछे गए हैं। हालांकि, इस कठिन परिस्थिति में जिस तरह से सरकार ने इस उथल-पुथल को संभाला है, उसमें क्या सरकार को अक्षम पाया गया है। क्या ऐसी विकट परिस्थिति से निपटने के लिए अपने पास उपलब्ध संसाधनों को जुटाना गया है, आइए इन मुद््दों को लेकर उठ रहे सवालों के जवाब को पता लगाया जाए।
क्या भारत दूसरी लहर का अनुमान लगाने में विफल रहा?
इस सवाल को जवाब जानने के लिए सबसे पहले कुछ तथ्यों को समझना होगा। 1 जनवरी 2021 और 10 मार्च 2021 के बीच, भारत में एक दिन में औसतन 20,000 नए मामले सामने आ रहे थे। लेकिन कुछ ही समय बाद यह संख्या घटकर केवल 10,000 रह गई थी। लगभग हर दूसरे देश ने अक्टूबर और दिसंबर 2020 के बीच दूसरी लहर का सामना किया था जबकि भारत पहली पीक के बाद बच गया था। इसके बाद देश के कई विशेषज्ञों ने सरकार को फटकार लगाते हुए इस वर्ष के शुरूआत में ही कई लेख लिखे कि भारत में दूसरी लहर क्यों नहीं होगी, भारत को शेष प्रतिबंधों को छोड़ देना चाहिए। मांग होने लगी कि स्कूल और कॉलेज फिर से खोलें, सबकुछ सामान्य किया जाए। अंतरराष्ट्रीय मीडिया में, बीबीसी ने 15 फरवरी 2021 को एक लेख चलाया, जिसका शीर्षक था, क्या भारत में महामारी का अंत हो रहा है?। न्यूयॉर्क टाइम्स, वॉल स्ट्रीट जर्नल और कई अन्य समान रूप से भ्रमित थे और भारत के दूसरी लहर से बचने के बारे में कुछ रिपोर्टिंग कर रहे थे। लेकिन पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारत सरकार आत्मसंतुष्ट नहीं थी। जनवरी और फरवरी के बीच, जब संख्या सबसे कम थी तब भी केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को टेस्ट, कोविड प्रोटोकाल का सबसे अधिक पालन करने को कहती रही। साथ ही राज्यों को स्वास्थ्य का बुनायादी ढांचे को बेहतर बनाने के लिए सलाह जारी किए गए। 17 मार्च को पीएम मोदी ने मुख्यमंत्रियों के साथ एक विस्तृत बैठक की। बैठक में उन्होंने स्पष्ट रूप से निरंतर सतर्कता बरतने, सामाजिक दूरी और मास्क जनादेश को सख्ती से लागू करने और स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ करने की सलाह दी थी। अप्रैल में भी प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में ऐसी कई बैठकें हुई थीं। फिर भी क्या हुआ। कई राज्य प्रशासन ढीले हो गए। विशेष रूप से वे राज्य जहां दूसरी लहर उत्पन्न हुई। महाराष्ट्र, केरल, दिल्ली, छत्तीसगढ़, पंजाब और कर्नाटक- ने दूसरी लहर के प्रारंभ में कोई ध्यान नहीं दिया और जब तक कार्रवाई करना शुरू किए तबतक दूसरी लहर जोरों पर थी और कुछ नहीं किया जा सकता था।
लेकिन महामारी के बीच चुनाव क्यों कराएं?
समय पर चुनाव कराना एक संवैधानिक आवश्यकता है। विधानसभाओं को हर छह महीने में एक बार मिलना अनिवार्य है। इन पांच राज्यों - केरल, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम और पुडुचेरी की विधानसभाओं को निलंबित करके केंद्रीय शासन में रखने के लिए संविधान में संशोधन करना एक अलोकतांत्रिक प्रक्रिया होता। दुनिया भर में महामारी के दौरान चुनाव हुए हैं। भारत में भी बिना किसी हलचल के नवंबर 2020 में बिहार चुनाव हुए। असली सवाल यह है कि क्या बड़ी चुनावी रैलियों को टाला जा सकता था? भाजपा ने बिहार चुनाव से पहले भारत के चुनाव आयोग को यह सटीक प्रस्ताव दिया था - कि शारीरिक रैलियों को बंद कर दिया जाए और केवल वर्चुअल प्रचार किया जाए। हर दूसरे राजनीतिक दल ने इस कदम का कड़ा विरोध किया था। उनकी दलील थी कि भाजपा का संगठन बेहतर है और इस वजह से उसको वर्चुअल दुनिया में फायदा होगा। विपक्षी वर्चुअल प्रचार में बाहर हो जाएगा। सर्वसम्मति के अभाव में, चुनाव आयोग स्पष्ट रूप से एक निर्णय को बाध्य नहीं कर सका और मौजूदा व्यवस्था जारी रही।
सितंबर में जब बिहार चुनाव की घोषणा की गई थी, तब पहली लहर अपने चरम पर थी। उस समय औसत मामले 90,000 से अधिक थे। फिर भी, भाजपा को छोड़कर सभी राजनीतिक दलों ने शारीरिक रैलियों पर जोर दिया। पांच राज्यों के हालिया चुनावों की घोषणा फरवरी में की गई थी जब मामले औसतन लगभग 10,000 थे। इस तरह हर राजनीतिक दल ने चुनाव वाले उन पांच राज्यों में रैलियां आयोजित की। राहुल गांधी द्वारा केरल और तमिलनाडु में बड़े पैमाने पर रोड शो आयोजित किए गए। प्रियंका गांधी ने असम में बड़े पैमाने पर प्रचार किया। ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में अपनी मेगा रैलियां कीं। भाजपा ने वहीं रैलियां कीं जहां वह चुनाव लड़ रही थी। लेकिन महाराष्ट्र या छत्तीसगढ़ या दिल्ली या पंजाब में कोई चुनाव नहीं हुआ जहां मार्च के अंत तक संख्या बढ़ने लगी। इसलिए, यह तर्क कि चुनावी रैलियां अपराधी हैं, डेटा द्वारा साबित नहीं होता।
हरिद्वार में कुंभ से क्या पड़ा प्रभाव ?
कुंभ भारत में बहुत सम्मानित धार्मिक सभा है। इसकी तिथि और समय संतों द्वारा तय किया जाता है न कि सरकारों द्वारा। चूंकि, जनवरी और फरवरी में सीओवीआईडी मामलों में गिरावट आई थी इसलिए प्रस्तावित तारीखों पर सशर्त आयोजन की अनुमति दी गई थी। कुंभ में प्रवेश, परीक्षण, क्वारंटीन और अन्य मेडिकल प्रोटोकॉल के लिए बहुत सख्त प्रोटोकॉल लागू किए गए थे। जब 1 अप्रैल को कुंभ शुरू हुआ तब भारत में 72,000 मामले सामने आ रहे थे। इसमें से अकेले छह राज्यों - महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, केरल, कर्नाटक, दिल्ली और पंजाब ने 76 प्रतिशत से अधिक मामलों में योगदान दिया। इनमें से किसी का भी कुंभ से कोई लेना देना नहीं था। 1 अप्रैल को उत्तराखंड में 293 मामले थे, 8 अप्रैल को 1,100 मामले थे। हालांकि, जैसे ही पूरे देश में महामारी फैल गई, प्रधान मंत्री मोदी ने स्वयं हस्तक्षेप किया और संतों से नियत तारीख से पहले सभा को समाप्त करने का अनुरोध किया और संतों ने बात भी मानी।
भारत की वैक्सीनेशन रणनीति क्या सही है?
भारत ने देश में निर्मित दो वैक्सीन- कोविडशील्ड और कोवैक्सिन को इमजेंसी यूज की मंजूरी दी है। इसमें से कोवैक्सिन पूरी तरह से स्वदेशी है। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा स्वीकृत एक विशेष कार्यक्रम के तहत आईसीएमआर ने बेहद कम समय में भारत बायोटेक की भागीदारी में वैक्सीन को विकसित किया। कोवैक्सिन के खिलाफ एक दुर्भावनापूर्ण अभियान शुरू किया गया। कांग्रेस और कांग्रेस शासित राज्यों के विरोध के बावजूद केंद्र सरकार ने 16 जनवरी 2021 से वैक्सीनेशन प्रारंभ किया। किसको प्राथमिकता वैक्सीनेशन में दी जाए यह मेडिकल एक्सपर्ट्स और डब्ल्यूएचओ की राय के बाद तय किया गया। वैक्सीन देने के लिए सबसे पहले कमजोर लोगों को दिया जाना तय किया गया। इसके तहत सबसे पहले सीनियर सिटीजन्स, फ्रंटलाइन वर्कर्स और हेल्थ वर्कर्स को वैक्सीनेशन कराना निर्धारित किया गया। इसके बाद 45 साल से अधिक उम्र के लोगों के लिए वैक्सीन उपलब्ध कराया गया। अब 1 मई से 18 से ऊपर के सभी पात्र हैं। भारत ने अब तक 182 मिलियन लोगों को टीका लगाया है, जो दुनिया में सबसे तेज गति है। यह केंद्र सरकार के चैनल के माध्यम से 45 से ऊपर के सभी और यहां तक कि 18-44 आयु वर्ग के लोगों के लिए भी मुफ्त उपलब्ध है। दिसंबर 2021 के अंत तक, केंद्र सरकार ने वैक्सीन की लगभग 2.16 बिलियन खुराक की खरीद की है।
एक सवाल पूछा जाता है कि घरेलू आबादी को टीका लगाने से पहले भारत ने टीकों का निर्यात क्यों किया? 11 मई 2021 तक, भारत ने विदेशों में कुल 66.3698 मिलियन वैक्सीन खुराक का निर्यात किया था। वहीं, भारत के भीतर वैक्सीन की लगभग तीन गुना खुराक दी जा चुकी है।
निर्माताओं के लिए कई देशों को टीकों की आपूर्ति करने के लिए संविदात्मक दायित्व थे, खासकर जहां से कच्चे माल की आपूर्ति की जाती थी। इसके अलावा, जरूरत के समय पूरी मानवता के लिए खड़े होना भारत की समय-परीक्षित परंपरा रही है। जैसा कि संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति और फ्रांसीसी राष्ट्रपति दोनों ने हाल ही में पुष्टि की, जब पिछले साल दुनिया को जरूरत थी, भारत ने दवाओं और अन्य आपूर्ति के साथ दुनिया की मदद की। जब भारत को अब मदद की जरूरत है, तो दुनिया सद्भावना का इशारा कर रही है।
लेकिन महामारी के दौरान सेंट्रल विस्टा का निर्माण क्यों?
महामंदी के बाद, संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति रूजवेल्ट से पूछा गया कि वह वाशिंगटन डीसी के पूर्ण सुधार सहित नए बुनियादी ढांचे के निर्माण में इतना निवेश क्यों कर रहे थे, जब पैसा कहीं और इस्तेमाल किया जा सकता था? क्लासिकल गवर्नेंस वाला उनका जवाब था कि इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश इकोनाॅमिक सुधार के एक बेहतर संरचना को बनाता है। इससे अर्ध-कुशल और अकुशल श्रमिकों के लिए रोजगार, निर्माण क्षेत्र में नए अवसर, सेवा क्षेत्र को बढ़ाना, साथ ही इसके आसपास की सेवायोजन व रोजगार की गतिविधियां बढ़ती है जिससे अर्थव्यवस्था भी तेजी से सुधरती है। एक साल के लॉकडाउन और उदास आर्थिक गतिविधियों के बाद, भारत सरकार उत्पादक आर्थिक गतिविधियों पर पैसा खर्च कर रही है, रोजगार पैदा कर रही है, शहरों की ठप पड़ी गतिविधियों को पटरी पर लाने का काम कर रही है। इन सब कामों से एक पिरामिड बनता है जिससे सबसे निचला हिस्सा भी लाभान्वित होगा और सबसे टाॅप पर वाला भी। इससे समाज में तनाव की कमी आएगी। लोगों को रोजगार मिलेगा और कोई दबाव नहीं होगा। सेंट्रल विस्टा परियोजना पहले से ही स्वीकृत परियोजना है और इसे रोकने और आर्थिक गतिविधियों को और कम करने का कोई मतलब नहीं होगा।
क्या मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी को दूर किया गया है?
25 मार्च 2020 को भारत में 10,180 आइसोलेशन बेड थे। आज यह संख्या 1.6 मिलियन से अधिक है। इसी अवधि में आईसीयू बेड 2,168 से बढ़कर 92,000 से अधिक हो गए हैं। सेकेंड वेव से पहले भारत की औसत दैनिक चिकित्सा ऑक्सीजन की आवश्यकता लगभग 700 एमटी थी। कुछ ही दिनों में आवश्यकता बढ़कर लगभग 9,000 मीट्रिक टन हो गई। मांग में लगभग 1,200 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। मैन्युफैक्चरिंग चुनौती बहुत बड़ी थी। लेकिन इससे भी बड़ी चुनौती सिलिंडर, परिवहन और कंप्लीट सप्लाई चेन को तैयार करना था। हालांकि बहुत दर्दनाक दिन रहे हैं, लेकिन सबसे खराब दौर शायद खत्म हो गया है क्योंकि डिलीवरी की आपूर्ति और लॉजिस्टिक्स दोनों जगह-जगह गिरने लगे हैं। रेमडेसिविर जैसी दवाओं का उत्पादन प्रति माह लगभग 4 मिलियन से बढ़ाकर लगभग 10 मिलियन प्रति माह कर दिया गया है। एक्सपटर््स की संस्तुतियों के बाद सरकार ने मेडिकल प्रोफेशनल्स की संख्या बढ़ाने के लिए मेडिकल इंटर्न को पूरे सेफ्टी प्रोटोकॉल और इंटर्नशिप के भुगतान के साथ तैनात करने की अनुमति दी है। प्रधानमंत्री मोदी ने व्यक्तिगत रूप से आपूर्ति हासिल करने और कई शहरों में कोविड आपातकालीन चिकित्सा सुविधाओं की स्थापना के लिए तीनों सेनाओं की मदद ली गई है। सबसे बड़े अस्पतालों में ऑक्सीजन जनरेटिंग प्लांट की स्थापना के लिए पीएम केयर फंड से धन रिलीज करके काम कराया जा रहा है। पहले से स्वीकृत 162 ऑक्सीजन प्लांट के अतिरिक्त 551 नए ऑक्सीजन जनरेटिंग यूनिट को लगाया जाना है। डीआरडीओ 500 मेडिकल ऑक्सीजन प्लांट लगाने के लिए पीएम केयर्स फंड का इस्तेमाल कर रहा है। ऐसे में 1200 नई ऑक्सीजन यूनिट्स जल्द देश में सामने आएंगे। इससे देश के प्रत्येक जिले में शीघ्र ही चिकित्सा ऑक्सीजन प्रोडक्शन करने की सुविधा होगी।
पीएम केयर फंड का उपयोग अत्याधुनिक वेंटिलेटर की खरीद के लिए भी किया गया है। डीआरडीओ ने एसपीओटू सेंसिंग आधारित ऑक्सीजन नियंत्रण प्रणाली विकसित की है, 150,000 से अधिक इस इक्वीपमेंट्स को पीएम केयर से खरीदा गया है। 800 मिलियन भारतीयों को कवर करने वाली मुफ्त भोजन और राशन योजना को और तीन महीने के लिए बढ़ा दिया गया है। डीआरडीओ द्वारा विकसित एक नई एंटी-कोविड ओरल दवाई 2-डीऑक्सी-डी-ग्लूकोज (2-डीजी) को अभी-अभी मंजूरी दी गई है। यह संक्रमण से लड़ने में काफी कारगर साबित हुआ है।
आगे क्या?
भारत पूरी लगन और संकल्प के साथ दूसरी लहर से जूझ रहा है। सात-सात दिनों की डेटा एनालिसिस में सामने आया है कि पहली बार कोविड संक्रमण में गिरावट आया है। चूंकि, मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर को हम खड़ा कर चुके हैं और हर स्थितियों से निपटने के लिए सक्षम भी दिख रहे हैं। यूपी और कर्नाटक में बढ़ रहे मामलों में कड़ाई से नए प्रोटोकॉल लगाए जा रहे हैं। उम्मीद है कि भारत निकट भविष्य में इस कठिन दौर से उबर जाएगा। दूसरी लहर के खिलाफ भारत जिस लड़ाई को लड़ रहा है, उसके निर्विवाद नायक मेडिकल प्रोफेशनल्स और फ्रंटलाइन के कार्यकर्ता हैं। आशा है कि उनका समर्पण और सेवा जल्द ही फल देगी।
[लेखक ब्लूक्राफ्ट डिजिटल फाउंडेशन, नई दिल्ली के सीईओ हैं. MyGov के डायरेक्टर (कंटेंट) रह चुके हैं.]
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