बेटी का हक: पिता की संपत्ति में कब तक, जान लीजिए कुछ नियम

बेटी का पिता की संपत्ति में हक़ शादी के बाद भी बना रहता है। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, शादी की तारीख़ या पिता की मृत्यु की तारीख़ मायने नहीं रखती, बेटी को बेटे के समान अधिकार है।

rohan salodkar | Published : Oct 25, 2024 6:18 AM IST

कहते हैं कि बेटी पराई होती है। शादी के बाद लड़की अपने मायके में सिर्फ़ रिश्तेदार होती है। उसे वहाँ के मामलों में दख़ल नहीं देना चाहिए, ऐसा कहा जाता है। पहले, शादीशुदा महिला को उसके पूर्वजों की संपत्ति भी नहीं दी जाती थी। घर के बेटे ही पिता की संपत्ति में हिस्सा पाते थे। लेकिन 2005 में क़ानून में बदलाव लाया गया। 1965 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम पारित किया गया था। 2005 में इसमें संशोधन किया गया। हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख, संपत्ति के बँटवारे, उत्तराधिकार और उत्तराधिकार से जुड़े क़ानून का पालन करते हैं।

कब मिलता है बेटियों को पिता की संपत्ति में हक

पिता की संपत्ति में बेटियों का भी हिस्सा होता है, यह बात अब सभी जानते हैं। लेकिन शादी के कितने साल बाद तक महिलाओं को यह हक़ मिलता है, इस सवाल का जवाब पता नहीं होता. 2005 से पहले हिंदू उत्तराधिकार क़ानून के तहत, केवल अविवाहित बेटियों को ही हिंदू अविभाजित परिवार का सदस्य माना जाता था। शादी के बाद उन्हें हिंदू अविभाजित परिवार का सदस्य नहीं माना जाता था। शादी के बाद मायके की संपत्ति में उनका कोई हक़ नहीं था। 2005 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में संशोधन के बाद बेटी को संपत्ति की समान उत्तराधिकारी माना गया है।

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शादी के बाद भी बेटे के बराबर बेटी को संपत्ति में हिस्सा मिलता है। इसके लिए कोई साल की सीमा नहीं है। शादी को कितने भी साल हो गए हों, बेटी को संपत्ति में हिस्सा देना होगा। 9 सितंबर, 2005 के बाद पिता की मृत्यु होने पर ही बेटी अपना हिस्सा पा सकती है, ऐसा कहा जाता था। लेकिन हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इस समय सीमा को हटा दिया है। शादी कितने भी साल पहले हुई हो, पिता की मृत्यु किसी भी समय हुई हो, बेटी को संपत्ति मिलती है, ऐसा कोर्ट ने कहा है। 

 

किस संपत्ति पर बेटी का हक़ है 

मायके की संपत्ति को दो भागों में बाँटा जाता है। एक स्व-अर्जित संपत्ति, दूसरी पैतृक संपत्ति। पैतृक संपत्ति यानी पिता से बच्चों को, बच्चों से उनके बच्चों को, इस तरह कई पीढ़ियों से चली आ रही संपत्ति। स्व-अर्जित संपत्ति यानी पिता द्वारा कमाई गई संपत्ति। इस पर बेटे या बेटी का कोई हक़ नहीं होता। इसे पिता जिसे चाहे दे सकता है। पूरा हक़ बेटे को, बेटी को या दोनों को बराबर-बराबर बाँट सकता है। या अपनी इच्छा से किसी और को भी संपत्ति दे सकता है। अगर बिना वसीयत लिखे पिता की मृत्यु हो जाती है, तो उसके प्रथम श्रेणी के लोग संपत्ति पर हक़दार होते हैं। यानी उसकी पत्नी, बेटा और बेटी के साथ अगर उसकी माँ जीवित है तो वह भी संपत्ति में हिस्सा पाती है। लेकिन हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के अनुसार, पत्नी का अपनी सास या पति के पूर्वजों की संपत्ति पर कोई हक़ नहीं होता। पत्नी का केवल अपने पति द्वारा अर्जित संपत्ति पर ही अधिकार होता है। 

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