
नई दिल्ली: दिल्ली ब्लास्ट के पीछे छुपा ‘व्हाइट-कॉलर’ टेरर नेटवर्क अब खुलकर सामने आया है। जम्मू-कश्मीर पुलिस और हरियाणा पुलिस की संयुक्त कार्रवाई में 10 नवंबर को ऑपरेशन चलाकर आठ लोगों को गिरफ्तार किया गया। जांच की दिशा अल फलाह यूनिवर्सिटी तक पहुंची, जहां 2,900 किलो विस्फोटक बरामद किया गया।
हरियाणा के मेवात के धार्मिक उपदेशक मौलवी इश्तियाक को फरीदाबाद में उनके किराए के घर से 2,500 किलो विस्फोटक बरामद होने के बाद हिरासत में लिया गया। पूछताछ के दौरान उन्होंने बताया कि दिल्ली हमलावर डॉक्टर उमर और उनके साथी डॉ. मुज़म्मिल गनई ने उनसे इस साल की शुरुआत में संपर्क किया था। मौलवी ने दावा किया कि उन्हें अपने घर पर “फर्टिलाइज़र” रखने के लिए कहा गया था और इसके बदले में 2,500 रुपये महीने की स्टोरेज फीस तय हुई। मौलवी का कहना था कि उन्हें हालात की गंभीरता की कोई चिंता नहीं थी, बल्कि उनकी चिंता गनई और उमर के पिछले छह महीने के बकाया किराए को लेकर थी।
जांच में सामने आया कि अल फलाह यूनिवर्सिटी इस ‘व्हाइट-कॉलर’ टेरर मॉड्यूल का सेंटर बन चुकी थी। यूनिवर्सिटी से पकड़े गए मुख्य सदस्य डॉ. मुज़म्मिल गनई की निशानदेही पर ही मौलवी के घर से भारी मात्रा में विस्फोटक बरामद किया गया। पुलिस ने बताया कि मौलवी ने बकाया किराया वसूलने के लिए नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी, श्रीनगर पुलिस और केंद्रीय एजेंसियों से संपर्क किया। पूछताछ के दौरान गनई ने मौलवी की कहानी को सपोर्ट किया, जिससे मामले की जांच और आगे बढ़ी।
कुछ ही घंटों बाद, दिल्ली के लाल किले के पास एक धीमी गति से चल रही हुंडई i20 में धमाका हुआ। इसमें 15 लोग मारे गए। जांच में DNA टेस्ट से पता चला कि i20 को डॉक्टर उमर चला रहे थे। यह घटनाक्रम इस ‘व्हाइट-कॉलर’ नेटवर्क की गंभीरता को स्पष्ट करता है।
जम्मू-कश्मीर और हरियाणा पुलिस की कार्रवाई से यह स्पष्ट हो गया कि ‘व्हाइट-कॉलर’ नेटवर्क केवल हिंसक योजनाओं तक सीमित नहीं था, बल्कि इसके पीछे पैसे और किराया विवाद जैसी रोजमर्रा की चीज़ें भी थीं।