क्या सलाखों के पीछे से सरकार चला सकते हैं अरविंद केजरीवाल? क्या कहता है कानून

Published : Mar 22, 2024, 08:51 AM ISTUpdated : Mar 22, 2024, 09:08 AM IST
Arvind Kejriwal

सार

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को 21 मार्च को दिल्ली शराब नीति मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने गिरफ्तार कर लिया था। मामले में जांच एजेंसी के नौ समन में केजरीवाल के शामिल नहीं होने के बाद यह गिरफ्तारी हुई।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को 21 मार्च को दिल्ली शराब नीति मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने गिरफ्तार कर लिया था। मामले में जांच एजेंसी के नौ समन में केजरीवाल के शामिल नहीं होने के बाद यह गिरफ्तारी हुई।गिरफ्तारी से कुछ घंटे पहले हाई कोर्ट ने केजरीवाल को गिरफ्तारी से सुरक्षा देने से इनकार कर दिया था। अरविंद केजरीवाल दो महीने से भी कम समय में ईडी द्वारा गिरफ्तार किए जाने वाले दूसरे विपक्षी मुख्यमंत्री बन गए हैं। उनसे पहले झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भ्रष्टाचार के एक मामले में जनवरी, 2024 में ईडी ने गिरफ्तार किया था। हालांकि, सोरेन की जगह उनकी पार्टी के सहयोगी चंपई सोरेन को झारखंड का नया सीएम बनाया गया। 

नवंबर में ईडी द्वारा केजरीवाल को समन जारी करने के बाद से आम आदमी पार्टी (AAP) के नेताओं ने कहा है कि वह इस्तीफा नहीं देंगे और इसके बजाय सलाखों के पीछे से सरकार चलाएंगे। लेकिन क्या एक गिरफ्तार मुख्यमंत्री सलाखों के पीछे से कार्यालय चला सकता है?

अरविंद केजरीवाल के लिए खड़ी हो सकती है मुश्किलें

जेल में रहते हुए किसी भी सरकारी काम को चलाना वैसे तो अव्यावहारिक है, लेकिन ऐसा कोई कानून नहीं है जो किसी मुख्यमंत्री को ऐसा करने से रोकता हो। कानून के अनुसार कोई भी मुख्यमंत्री को तभी अयोग्य ठहराया जा सकता है या पद से हटाया जा सकता है, जब वह किसी मामले में दोषी ठहराया जाता है। इस तरह से अरविंद केजरीवाल के मामले में अभी तक उन्हें दोषी नहीं ठहराया गया है तो वो जब तक दोषी नहीं ठहराए जाते हैं तब तक वो जेल में रहते हुए मुख्यमंत्री के तौर पर काम कर सकते हैं।  

लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में कुछ अपराधों के लिए अयोग्यता के प्रावधान हैं, लेकिन पद संभालने वाले किसी भी व्यक्ति की सजा अनिवार्य है। मुख्यमंत्री केवल दो स्थितियों में शीर्ष पद खो सकता है - विधानसभा में बहुमत का समर्थन खोने पर या सत्ता में सरकार के खिलाफ एक सफल अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से जिसका नेतृत्व मुख्यमंत्री करता है।फिर भी केजरीवाल के लिए सलाखों के पीछे से सरकार चलाना आसान नहीं होगा। उनके दो पूर्व कैबिनेट सहयोगी मनीष सिसोदिया और सत्येन्द्र जैन पहले से ही सलाखों के पीछे हैं। उन्होंने ने भी गिरफ्तारी के बाद इस्तीफा दे दिया था। हालांकि, इस मामले में केजरीवाल के पास अपने मंत्रिमंडल में कोई विभाग नहीं है।

इन मामलों के तहत केजरीवाल को देना पड़ सकता है इस्तीफा

मुख्यमंत्रियों की गिरफ्तारी के कई मामले सामने आये हैं। कुछ मामलों में मुख्यमंत्री ने गिरफ्तारी के तुरंत बाद या उससे पहले इस्तीफा दे दिया। इसी साल 31 जनवरी को गिरफ्तार किये गये हेमंत सोरेन का मामला इसका ताजा उदाहरण है। सोरेन ने ईडी द्वारा गिरफ्तारी से पहले इस्तीफा दे दिया था, उनकी जगह चंपई सोरेन ने ले ली। झारखंड सरकार जिसमें हेमंत सोरेन की झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस पार्टी शामिल थी, जो बच गई।

1997 में बिहार के तत्कालीन सीएम लालू प्रसाद यादव को चारा घोटाले में भ्रष्टाचार का दोषी ठहराया गया था और जेल की सजा सुनाई गई थी। उन्होंने पद से इस्तीफा दे दिया और अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री नियुक्त किया।

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