DRDO ने अब भारत में ही तैयार कर ली 'वो' टेक्नोलॉजी, जो मिसाइलों के हमले से Fighter Planes को बचाएगी

DRDO ने अब भारत में ही वो टेक्नोलॉजी (Advanced Chaff Technology) डेवलप की है, जो मिसाइलों के अटैक से लड़ाकू विमानों की रक्षा करेगा। अभी इस टेक्नोलॉजी को खरीदने के लिए अरबों डॉलर खर्च करने पड़ते थे। यानी आत्मनिर्भर भारत की दिशा में यह एक जबर्दस्त पहल है। इससे भारत की मुद्रा बचेगी।

जोधपुर, राजस्थान. जोधपुर की रक्षा प्रयोगशाला व अनुसंधान संगठन (DRDO) ने भारतीय विमानों, खासकर लड़ाकू विमानों को मिसाइलों के अटैक से बचाने चैफ टेक्नोलॉजी को डेवलप किया है। DRDO इसका प्रॉडक्शन भी करेगा। चैफ टेक्नोलॉजी एक विशेष मेटल फाइबर से विकसित की गई है। इसके यूज से रडार बेस्ड मिसाइल विमान को ट्रैक नहीं कर पाएगी। अभी इस टेक्नोलॉजी के लिए भारत दूसरे देशों पर निर्भर है। जोधपुर स्थित DRDO की रक्षा प्रयोगशाला ने देश की वायुसेना की सालाना एक लाख कार्टिज(Cartridge) की खपत को पूरा करने के लिए चैफ प्रॉडक्शन प्लांट लगा दिया है। यहां नेवी के लिए भी प्रॉडक्शन होगा। अभी इस टेक्नोलॉजी को खरीदने के लिए अरबों डॉलर खर्च करने पड़ते थे। यानी आत्मनिर्भर भारत की दिशा में यह एक जबर्दस्त पहल है। इससे भारत की मुद्रा बचेगी।


एयरफोर्स सीधे देगा ऑर्डर
इंडियन एयरफोर्स(IAF) Cartridge खरीदने सीधे ऑर्डर देगा। चैफ खरीदने पर एयरफोर्स सालाना 100 करोड़ से भी ज्यादा खर्च करता है, अब आधे पैसे ही खर्च होंगे। अभी ये एयरफोर्स के जगुआर विमान में उपयोग में आएगा। DRDO, जोधुपर के डायरेक्टर डॉ. रविन्द्र कुमार ने बताया कि हमने इसे विकसित करने के लिए 4 वर्ष की समय सीमा तय की थी, लेकिन हमारी टीम ने अथक प्रयास से इसे सिर्फ ढाई वर्ष में ही तैयार कर दिया गया। इससे न केवल समय पर देश में विकसित चैफ मिल सकेगा, बल्कि विदेशी मुद्रा की बचत भी होगी। इसके निर्यात की भी भरपूर संभावना है, हालांकि इस बारे में फैसला सरकार करेगी।

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यह है चैफ तकनीक
सही मायने में यह फाइबर है। बाल से भी पतले इस फाइबर की मोटाई महज 25 माइक्रोन होती है। फाइटर प्लेन से इसके छोटे-छोटे टुकड़ों को दागा जाता है। इससे करोड़ों-अरबों टुकड़े आसमान में एक निश्चित ऊंचाई पर जाकर आपस में मिलकर बादलों के समान एक समूह बना लेते हैं। इस समूह से दुश्मन के रडार में फाइटर का आभास होता है। ऐसे में विमान की ओर दागी जाने वाली मिसाइल अपना लक्ष्य भटक कर इस समूह से टकरा जाती है। चैफ को दागने के लिए विमान के पिछले हिस्से में लगाया जाता है। निश्चित दूरी पर विस्फोट होते ही चैफ के पार्टिकल आसमान में बिखर जाते हैं। थोड़ी देर में ये करोड़ों पार्टिकल आपस में मिलकर एक समूह के रूप में छा जाते हैं। जहाज की तरफ बढ़ रही मिसाइल इन्हें अपना लक्ष्य मान दिशा बदल इन पर टूट पड़ती है।

बेहतर रहा रिजल्ट
DRDO, जोधपुर के डायरेक्टर डॉ. रविन्द्र कुमार ने बताया कि इसके अब तक किए गए सारे परीक्षणों के नतीजे संतोषजनक रहे हैं। चैफ टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल के लिए आधा सेकेंड से भी कम का समय मिलता है। हालांकि ऐसे में पायलट को विशेष प्रशिक्षण की जरूरत पड़ेगी। इसके लिए अब हम वर्चुअल सिस्टम तैयार कर रहे हैं, ताकि सीधे विमान पर जाने से पहले पायलट वसूली प्रशिक्षित हो जाए।

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