आपातकाल में जनता की आवाज बन गए थे दुष्यंत कुमार, अपनी इन रचनाओं से हिला दी थी सरकार की नींव

15 अगस्त, 2022 को भारत अपनी आजादी का अमृत महोत्सव (Aazadi Ka Amrit Mahotsav) मना रहा है। इस महोत्सव की शुरुआत पीएम नरेंद्र मोदी ने 12 मार्च, 2021 को गुजरात के साबरमती आश्रम से की थी। आजादी के अमृत महोत्सव के मौके पर हम बता रहे हैं महान कवि दुष्यंत कुमार के बारे में। 

Asianet News Hindi | Published : Aug 6, 2022 12:46 PM IST / Updated: Aug 07 2022, 02:47 PM IST

India@75: 15 अगस्त, 2022 को भारत अपनी आजादी का अमृत महोत्सव (Aazadi Ka Amrit Mahotsav) मना रहा है। इस महोत्सव की शुरुआत पीएम नरेंद्र मोदी ने 12 मार्च, 2021 को गुजरात के साबरमती आश्रम से की थी। आजादी का अमृत महोत्सव अगले साल यानी 15 अगस्त, 2023 तक चलेगा। आजादी के बाद हमारे देश में कई महान कवि और उपन्यासकार हुए, इन्हीं में से एक नाम है क्रांतिकारी कवि दुष्यंत कुमार का। दुष्यंत कुमार की रचनाओं में सत्ता की गलत नीतियों का मुखर विरोध देखने को मिलता था। 

उत्तर प्रदेश के बिजनौर में पैदा हुए थे दुष्यंत कुमार : 
हिंदी गजल की महान शख्सियत दुष्यंत कुमार का जन्म 1 सितंबर, 1933 को उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के राजपुर नवादा गांव में हुआ था। उनका पूरा नाम दुष्यंत कुमार त्यागी था। उनकी शिक्षा इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से हुई। उन्होंने लंबे समय तक आकाशवाणी भोपाल में भी काम किया था। शुरुआती दिनों में वो 'परदेसी' नाम से लिखते थे। हालांकि, बाद में वो अपने असली नाम से ही लिखने लगे। दुष्यंत कुमार साहित्य की कई विधाओं में लिखते थे। दुष्यंत कुमार ने देश पर थोपे गए आपातकाल (Emergency) को लेकर भी अपनी रचनाओं में जनता की आवाज उठाई थी। 

इंदिरा सरकार की नींव हिला दी थी : 
दुष्यंत कुमार ने आपातकाल की पृष्ठभूमि में क्रांतिकारी अंदाज में कई रचनाएं लिखीं। आपातकाल के दौर में वो मध्यप्रदेश के संस्कृति विभाग के अतंर्गत राजभाषा विभाग में काम करते थे। इस दौरान उन्होंने केंद्र की कांग्रेस सरकार के खिलाफ लिखना बंद नहीं किया। 70 के दशक के जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति और छात्र आंदोलन ने इंदिरा गांधी सरकार के तानाशाही रवैए की नींव हिला दी थी। इस क्रांति के पीछे दुष्यंत कुमार की रचनाएं ही थीं। 

दुष्यंत कुमार की प्रमुख रचनाएं : 
दुष्यंत कुमार की प्रमुख कविताओं की बात करें तो इनमें 'कहां तो तय था', 'कैसे मंजर', 'मकसद', 'मुक्तक', 'आज सड़कों पर लिखे हैं', 'मत कहो, आकाश में', 'धूप के पाँव', 'गुच्छे भर', 'अमलतास', 'खंडहर बचे हुए हैं', 'जो शहतीर है', 'ज़िंदगानी का कोई', 'सूर्य का स्वागत', 'एक आशीर्वाद', 'आग जलनी चाहिए', 'मापदंड बदलो', 'कहीं पे धूप की चादर', 'बाढ़ की संभावनाएं', 'इस नदी की धार में' और 'हो गई है पीर पर्वत-सी' प्रमुख हैं। 

इनसे हुए था दुष्यंत कुमार का विवाह : 
दुष्यंत कुमार की पर्सनल लाइफ की बात करें तो उनका विवाह 30 नवंबर, 1949 को सहारनपुर की राजेश्वरी कौशिक से हुआ था। शुरुआती दिनों में दुष्यंत ने कीरतपुर के एक स्कूल से टीचर की नौकरी शुरू की। बाद में दिल्ली आकाशवाणी में हिंदी वार्ता विभाग में बतौर स्क्रिप्ट राइटर काम करने लगे। 1960 में दुष्यंत कुमार का ट्रांसफर भोपाल हो गया। इसके बाद भोपाल ही उनकी कर्मभूमि बन गया। 

42 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह गए : 
दुष्यंत कुमार छायावादी कवि सुमित्रनंदन पंत के काफी ज्यादा प्रभावित थे। यहां तक कि वो उन्हें गुरु द्रोणाचार्य की तरह मानते थे। सुमित्रानंदन पंत से ही प्रभावित होकर उन्होंने अपने नाम के आगे ‘परदेसी’ जोड़ लिया था। यहां तक कि विवाह के समय निमंत्रण पत्र पर भी दुष्यंत कुमार त्यागी ‘परदेशी’ नाम छपवाया गया था। बता दें कि 42 साल की उम्र में 30 दिसंबर, 1975 की रात हार्टअटैक के चलते उनका निधन हो गया था। 

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