सेना की ईस्टर्न कमांड ने खोया अपना 'रियल हीरो', IED की पहचान कराने में रही थी खास भूमिका

आर्मी डॉग्स के रिटायरमेंट के बाद मारने की एक वजह यह भी है कि वे आर्मी के बेस की पूरी जानकारी और अन्य गोपनीय जानकारियां भी रखते हैं। ऐसे में यदि बाहरी लोगों को इन डॉग्स को सौंपा जाता है तो सेना की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा हो सकता है।

Asianet News Hindi | Published : Sep 14, 2019 5:29 AM IST

नई दिल्ली. केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने आर्मी कैडर ईस्टर्न कमांड के डॉग डच (Dutch) के निधन पर ट्वीट कर दुख जताया है। 9 साल के इस डॉग ने बुधवार (11 सितंबर) के दिन अपनी अंतिम सांस ली और इसके बाद दुनिया को अलविदा कह दिया था। उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के विकास का केंद्र सरकार में जिम्मा संभाल रहे मंत्री सिंह ने अपने ट्विटर पर लिखा, '11 सितंबर को दुनिया को अलविदा कह जाने वाले 9 साल के डच डॉग के प्रति आर्मी ईस्टर्न कैडर शोक और संवदेना व्यक्त करती है। वह पूर्वी कमांड की ओर से पदक से सम्मानित डॉग था, जिसने कई सीआई/सीटी ऑपरेशनों में आईईडी की पहचान करने में खास भूमिका निभाई थी। राष्ट्र की सेवा करने वाले एक असली हीरो को सैल्यूट।'

 

सम्मानपूर्वक विदाई

आर्मी के डॉग्स (कुत्ते) सैनिकों की तरह ही देश की सेवा में अपना अहम योगदान देते हैं। मृत्यु उपरांत इन डॉग्स को किसी सैनिक की तरह ही सम्मानपूर्वक विदाई दी जाती है। खास बात यह है कि इन डॉग्स को आर्मी में तब तक जिंदा रखा जाता है, जब तक ये काम करते रहते हैं। जब कोई डॉग एक महीने से अधिक समय तक बीमार रहता है या किसी कारणवश ड्यूटी नहीं कर पाता है तो उसे जहर देकर (एनिमल यूथेनेशिया) मार दिया जाता है।

जहर देने का यह है कारण

आर्मी डॉग्स के रिटायरमेंट के बाद मारने की एक वजह यह भी है कि वे आर्मी के बेस की पूरी जानकारी और अन्य गोपनीय जानकारियां भी रखते हैं। ऐसे में यदि बाहरी लोगों को इन डॉग्स को सौंपा जाता है तो सेना की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा हो सकता है। वहीं, अगर इन कुत्तों को एनिमल वेलफेयर सोसाइटी जैसी जगहों पर भेजा जाता है तो उनका लालन-पालन ठीक ढंग से नहीं हो पाता, क्योंकि सेना उन्हें खास सुविधाएं मुहैया कराती है, जो कि उनके द्वारा मुहैया कराना बस की बात नहीं है।

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