इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 में आपातकाल लगाया था, जिसने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को एक तानाशाही में बदल दिया। 21 महीने के आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी ने अपने राजनीतिक विरोधियों और पत्रकारों को जेल में डाल दिया। प्रेस पर सेंसरशिप लगा दी। संविधान द्वारा दिए गए मूलभूत अधिकारों को निलंबित कर दिया गया।
नई दिल्ली. इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को आपातकाल लगाया था, जिसने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को एक तानाशाही में बदल दिया। 21 महीने के आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी ने अपने राजनीतिक विरोधियों और पत्रकारों को जेल में डाल दिया। प्रेस पर सेंसरशिप लगा दी। संविधान द्वारा दिए गए मूलभूत अधिकारों को खत्म कर दिया गया। नागरिकों से कोर्ट जाने का अधिकार भी छीन लिया गया। राजनेताओं, नौकरशाहों और पुलिस अधिकारियों ने कानून को अपने हाथों में ले लिया। कई तरह से अत्याचार किए गए। जैसा कि बड़े पैमाने पर नसबंदी का आदेश दिया गया था।
शाह आयोग के बाद पता चला कौन हैं खलनायक?
आपातकाल के खत्म होने के बाद अत्याचार की जांच के लिए शाह आयोग का गठन किया गया, जिसने आपातकाल के कई खलनायकों की पहचान की। इसने इंदिरा सरकार में रक्षा मंत्री बंसीलाल, सूचना और प्रसारण मंत्री रहे वी सी शुक्ला पहचान की गई। इंदिरा गांधी के अतिरिक्त निजी सचिव आरके धवन, दिल्ली के उपराज्यपाल कृष्ण चंद, उनके सचिव नवीन चावला, पुलिस के डीआईजी पीएस भिंडर और पुलिस अधीक्षक, सीआईडी, दिल्ली पुलिस केएस बाजवा की आयोग ने कड़ी आलोचना की।
बंसीलाल पर पद का दुरुपयोग करने का आरोप लगा
आयोग ने कहा, बंसीलाल ने मुख्य रूप से अपने पद का विशुद्ध रूप से व्यक्तिगत कारणों से अपने अधिकार और पद का दुरुपयोग किया। भिंडर के बारे में कहा गया कि उसका आचरण किसी भी प्रशासन के निष्पक्षता के नाम पर एक गंभीर धब्बा है। भिंडर ने मजिस्ट्रेट पर फायरिंग के आदेशों पर हस्ताक्षर करने और तारीख करने का दबाव डाला।
आर के धवन पर भी लगे संगीन आरोप
आर के धवन चाहते थे गिरफ्तारी के बिना किसी आधार के ही मजिस्ट्रेट मीसा अरेस्ट वॉरंट पर हस्ताक्षर करें। मीसा कानून साल 1971 में लागू किया गया था लेकिन इसका इस्तेमाल आपातकाल के दौरान कांग्रेस विरोधियों, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेल में डालने के लिए किया गया।
इंदिरा की सत्ता वापसी के बाद बन गए खलनायकों के करियर
1980 में इंदिरा गांधी की सत्ता में वापसी के बाद आपातकाल के सभी खलनायकों का करियर बन गया। हालांकि कृष्ण चंद एक अपवाद थे। यद्यपि उन्होंने लेफ्टिनेंट गवर्नर के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान कई काम किए। लेकिन आयोग ने जब उन्हें दोषी ठहराया तब वह बहुत दुखी हुए। 9 जुलाई 1978 की रात को वह अपने दक्षिण दिल्ली निवास से बाहर घूमने निकले और आत्महत्या कर ली।
बंसीलाल: आपातकाल के बाद वापस चमके। राजीव गांधी सरकार में रेल मंत्री बने और 1980 और 1990 के दशक में हरियाणा के सीएम के रूप में पद संभाला। यहां तक कि उनके नाम पर एक नहर भी है। मार्च 2006 में उनका निधन हो गया।
वी सी शुक्ला: वह एक बार फिर राजीव गांधी सरकार में मंत्री बने। मई 2013 में उनका निधन हो गया।
आर के धवन: 1980 में सत्ता में वापसी के बाद वह फिर से इंदिरा के साथ थे। बाद में वे राज्यसभा के सदस्य और पी वी नरसिम्हा राव सरकार में मंत्री बने।
नवीन चावला: मनमोहन सिंह सरकार में उन्हें 2005 में चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किया।
पी एस भिंडर: इंदिरा गांधी के सत्ता में लौटने पर वह दिल्ली के पुलिस आयुक्त बने और DGP के रूप में रिटायर हुए।
जयराम पडिक्कल: पुलिस कस्टडी में पी पी राजन नाम के छात्र की प्रताड़ना से मौत हुई थी, उसमें यह मुख्य आरोपी थी। बाद में यह डीजीपी बन गए। 1997 में उनका निधन हो गया।
न्यायमूर्ति एच आर खन्ना जैसे नायकों को आपातकाल के दौरान हैबियस कॉर्पस मामले में कीमत चुकानी पड़ी। लेकिन बाद में इंदिरा गांधी ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के पद के लिए उनका समर्थन किया।