Exclusive Interview: प्रो. सीएस उन्नीकृष्णन ने क्यों कहा- 'साइंस पश्चिमी देशों की प्रॉपर्टी नहीं यह ग्लोबल है'

एशियानेट न्यूज डॉयलाग में इस बार हमारे साथ हैं मशहूर भौतिक वैज्ञानिक प्रोफेसर सीएस उन्नीकृष्णन (Prof. C.S Unnikrishnan) जिन्होंने आइंस्टीन की थ्योरी को रिप्लेस किया है। प्रो. सीएस उन्नीकृष्णन ने साइंस की वजह से सोसायटी में बदलाव को लेकर बड़ी बातें कहीं। 
 

Manoj Kumar | / Updated: Jan 08 2023, 07:01 PM IST

Exclusive Interview Prof. C.S Unnikrishnan. प्रोफेसर सीएस उन्नीकृष्णन ने महान वैज्ञानिक आइंस्टीन की थ्योरी को रिप्लेस किया है और कॉसमास थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी का नया सिद्धांत दिया है। प्रो. उन्नीकृष्णन का मानना है कि वैज्ञानिकों ने साइंस पैरामीटर्स पर आइंस्टीन के सापेक्षता का परीक्षण किया और कुछ नए व अजीब फैक्ट्स सामने आए हैं। समूचे ब्रह्मांड में जिस तरह से गुरूत्वाकर्षण काम कर करता है, ठीक इसी तरह से लाइट यानि प्रकाश का सिद्धांत भी काम करता है। साउंड की थ्योरी भी कुछ इसी तरह की होती है। इन्हीं सवालों को लेकर एशियानेट न्यूज की अखिला नंदकुमार ने प्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रो. सीएस उन्नीकृष्णन से एक्सक्लूसिव बातचीत की है। पेश है इसके मुख्य अंश...

क्या है कासमास रिलेटिविटी का सिद्धांत
प्रोफेसर सीएस उन्नीकृष्णन ने कहा कि अल्बर्ट आइंस्टीन का सामान्य सापेक्षता का सिद्धांत सितारों और ग्रहों के गुरुत्वाकर्षण का वर्णन करने में सफल रहा है लेकिन यह सभी पैमानों पर पूरी तरह से लागू नहीं होता है। उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने करीब 15 साल पहले आइंस्टीन के सिद्धांत को रिप्लेस किया है। जिस तरह से पूरे ब्रहांड को गुरूत्वाकर्षण द्वारा कंट्रोल किया जाता है। वही थ्योरी लाइट और साउंड पर भी लागू होती है। दरअसल 1919 में सूर्य द्वारा तारों के प्रकाश के विक्षेपण के मापन से लेकर हाल ही में गुरुत्वाकर्षण तरंगों का पता लगाने तक सामान्य सापेक्षता कई वर्षों के परीक्षण से गुजरी है। हमारी समझ में थोड़ा अंतर तब दिखाई देता है जब हम इसे अत्यंत छोटी दूरियों पर लागू करने का प्रयास करते हैं। जब हम पूरे ब्रह्मांड का वर्णन करने का प्रयास करते हैं तो वहां क्वांटम थ्योरी लागू होती है। 

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पहली बार सिद्धांत दिया तो क्या हुआ
प्रो. उन्नीकृष्णन से जब यह पूछा गया कि उन्होंने एक सिद्धांत के रिप्लेस करके नई थ्योरी दी तो कैसा रिस्पांस मिला। इस पर उन्होंने कहा कि आप किसी भी फिजिक्स के स्टूडेंट से पूछेंगे या ऐसे व्यक्ति से जो डेली रूटीन में फिजिक्स को जीता है तो वह कुछ सिद्धांतों पर डाउट जरूर करेगा। हालांकि यह थ्योरी वर्षों से परंपरा में है और कई चीजों से रिलेटेट भी है लेकिन जब आप किसी चीज को टेस्ट करते हैं तो कुछ नया मिलता है। मुझे भी काफी समय के बाद यह लगा कि इसका टेस्ट किया जाना चाहिए तो हमने वैज्ञानिक तरीकों से इसे टेस्ट किया, तब कुछ नई चीजें सामने आईं।

पहले की थ्योरी गलत नहीं अपूर्ण है
प्रो. उन्नीकृष्ण से पूछा गया कि उन्हें कब पता चला कि आइंस्टीन या अन्य वैज्ञानिकों की थ्योरी से आगे बढ़ना चाहिए। इस सवाल के जवाब में प्रो. उन्नीकृष्णन ने कहा कि यह जितने भी सिद्धांत दिए गए वे 1930 से पहले के हैं। उस वक्त तक जितनी नॉलेज, परिकल्पना थी, उसी के अनुसार सिद्धांत बनाए गए लेकिन आज की फिजिक्स बदल चुकी है। पहले हम यही जानते थे कि एक ब्रह्मांड है और बाकी तारे हैं लेकिन आज हम जानते हैं कि ब्रहांड में कितने ग्रह हैं, कासमास कैसे काम करता है, लाइट और साउंड का क्या रोल है। कैसे गुरूत्वाकर्षण पूरे ब्रह्मांड को कंट्रोल करता है। कॉसमास के बारे में ज्यादातर जानकारियां 1930 के बाद ही सामने आईं, इसलिए हमें नए सिद्धांत की जरूरत पड़ी। मैं यह नहीं कहता कि पुराने सिद्धांत, पुरानी थ्योरी गलत है लेकिन यह कहा जा सकता है वह अपूर्ण है।

फिजिक्स की फंडामेंटल थ्योरी में बदलाव
प्रोफेसर सीएस उन्नीकृष्णन ने कहा कि हमारी जो थ्योरी है, वही पूरी तरह से फिजिक्स के फंडामेंटल थ्योरी को बदलने वाला है। पद्मनाभन का सिद्धांत पहले के सिद्धांत को ही आगे बढ़ाता है और हम जो कह रहे हैं वह पुराने सिद्धांत को पूरी तरह से रिप्लेस करता है। आइंस्टीन की थ्योरी एक तरह से गणित के सिद्धांतों की तरह है जबकि हमारी थ्योरी यानि कासमास थ्योरी ऑफ रिलेटिवी ग्रैविटी के प्रभाव की तरह है। जैसे ग्रैविटी पूरे ब्रहांड को कंट्रोल करता है उसी तरह से प्रपोशन ऑफ लाइट भी काम करता है। यह आने वाले समय में नए फैक्ट्स को सामने रखेगा।

कैसा है इंडियन एजुकेशन सिस्टम
इस सवाल के जवाब में प्रो. सीएस उन्नीकृष्णन ने कहा कि हमारा एजुकेशन सिस्टम काफी अच्छा है। हमारे देश में कई तरह के धार्मिक रीति-रिवाज हैं, अंधविश्वास हैं, इन सबके बावजूद हम साइंस में लगातार प्रगति कर रहे हैं। जहां तक हमारे यूनिवर्सिटी लेवल की पढ़ाई की बात है और साइंस की बात है तो हम मानकर चलते हैं कि विज्ञान पश्चिमी देशों की देन है, इसलिए हम सवाल करने से घबराते हैं। लेकिन जब तक हम सवाल नहीं करेंगे, तब तक उन्हीं सिद्धांतों तक सीमित रहेंगे जो हमें पढ़ाया जाता है। लेकिन आप देखें तो प्राचीन समय में भी हम विज्ञान में बहुत आगे थे। केरल इंस्टीट्यूट ऑफ मैथमेटिक्स एंड एस्ट्रोनॉमी आज की नहीं 15वीं सदी की है। हमें यह विश्वास करना होगा और अपने विश्वास को पाने के नए सिद्धांत गढ़ने होंगे तभी पूरी तरह से आगे बढ़ पाएंगे।

इंडियन साइंस कम्युनिटी का रोल
प्रो. सीएस उन्नीकृष्णन ने कहा कि हमने जब नई थ्योरी के बारे में बात की तो भारतीय साइंस कम्युनिटी का रिस्पांस बेहद सुस्त रहा। कारण यह है कि हम साइंस को वेस्ट की प्रॉपर्टी मानते हैं जबकि यह ग्लोबल है। आप जानते हैं कि ब्रह्मांड है, यूनिवर्स है, ग्रैविटी है जिसे देखा और समझा जा सकता है तो यह कैसे संभव है कि यह किसी खास एरिया की प्रॉपर्टी हो जाए। हमने इंडियन साइंस कम्युनिटी से यही कहा कि हमारी बात को सुनें और कोई डाउट है तो डिबेट करें। भले ही आज साइंस कम्युनिटी हमारी बात नहीं सुन रही है लेकिन मैं फोर्स करूंगा कि वे हमें सुनें।

सरकारों का रोल कैसा रहा
इस सवाल के जवाब में प्रो. सीएस उन्नीकृष्णन ने कहा कि हमारी सरकार की नीतियां शुरू से ही साइंस को बढ़ावा देने की रही हैं। चाहे वे पहले प्रधानमंत्री नेहरू हों या फिर बाद के प्रधानमंत्री सभी ने अच्छी नीतियां बनाई हैं। मौजूदा सरकार भी अच्छा काम कर रही है। हमें साइंस को लेकर प्राइमरी एजुकेशन को बढ़ावा देने की जरूरत है ताकि साइंस का ज्यादा से ज्यादा लाभ सोसायटी को मिल सके।

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