भारत को G7 की बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड पहल के लिए आगे आना होगा

दिल्ली स्थित थिंक-टैंक लॉ एंड सोसाइटी एलायंस और रणनीतिक मामलों के एक पब्लिकेशन द्वारा आयोजित ‘G7 के B3W versus चीन का BRI: डेवलपमेंट फंडिंग या डेब्ट डिप्लोमेसी‘ पर एक वेबिनार में कूटनीतिक-आर्थिक और सामरिक विशेषज्ञों ने चीन के बढ़ते प्रभाव पर चिंता जताई।
 

नई दिल्ली। सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को चीन की आठ साल पुरानी ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ का मुकाबला करने के लिए अपनी योजना विकसित करनी चाहिए। रणनीतिक मामलों के विशेषज्ञ क्लियो पास्कल और शेषाद्री चारी ने सुझाव दिया है कि नई दिल्ली को बीआरआई परियोजना का मुकाबला करने के लिए अपनी योजना विकसित करनी चाहिए या जी7 की बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड (बी3डब्ल्यू) पहल को लागू करने में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए।

बी3डब्ल्यू एक इंफ्रास्ट्रक्चरल साझेदारी

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B3W ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर इनिशिएटिव का उद्देश्य चीन के बीआरआई का विकल्प तैयार करना था। बी3डब्ल्यू एक इंफ्रास्ट्रक्चरल साझेदारी है, जिससे विकासशील देशों में 40 ट्रिलियन डॉलर से अधिक के इंफ्रास्ट्रक्चर की आवश्यकता को पूरा करने की उम्मीद है। 
सामरिक मामलों के विशेषज्ञों का मानना है कि चीन का बीआरआई दुनिया भर के देशों के लिए अत्यधिक आर्थिक जोखिम पैदा करता है लेकिन वे जी7 की बी3डब्ल्यू पहलों में अधिक स्पष्टता लाने की आवश्यकता भी महसूस करते हैं।
दिल्ली स्थित थिंक-टैंक लॉ एंड सोसाइटी एलायंस और रणनीतिक मामलों के एक पब्लिकेशन द्वारा आयोजित ‘जी7 के बी3डब्ल्यू वर्सेस चीन का बीआरआईः डेवलपमेंट फंडिंग या डेब्ट डिप्लोमेसी‘ पर एक वेबिनार में बोलते हुए डिफेंस कैपिटल, चौथम हाउस के एसोसिएट फेलो क्लियो पास्कल ने कहा, ‘चीन के पहल से जुड़े देशों के लिए बीआरआई के तहत स्थानीय अर्थव्यवस्था और भ्रष्टाचार के मामले में जोखिम है। क्योंकि बीआरआई श्रम या पर्यावरण के अलावा पारदर्शिता मानकों की परवाह नहीं करता है। बीआरआई कानून या समाज को भी महत्व नहीं देता है।‘

चीन की नीतियों का विरोध करना सोलोमन द्वीप के प्रमुख को भारी पड़ा, प्रभाव का इस्तेमाल कर इलाज के लिए परेशान हुए

सोलोमन द्वीप समूह का उदाहरण देते हुए पास्कल ने कहा कि इसके प्रमुख डेनियल सुइदानी ने प्रशांत महासागर द्वीप राष्ट्र के लिए चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) की योजनाओं का विरोध किया था और रिश्वत की पेशकश से इनकार कर दिया था। मई 2021 में, सुइदानी को एक ट्यूमर का पता चला था जिसके लिए एक महंगी सर्जरी की आवश्यकता थी। उनके पास अपने इलाज के लिए पैसे नहीं थे और चीन ने प्रशांत महासागर क्षेत्र में अन्य देशों में उनके इलाज से इनकार करने के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया। हालांकि, बाद में भारतीय शिक्षाविद् प्रोफेसर एमडी नालापत की मदद से ताइवान में उनके इलाज की व्यवस्था की गई। 
पास्कल ने कहा कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी उन देशों के आर्थिक, राजनीतिक और न्यायिक ढांचे को संक्रमित करती है जो बीआरआई में शामिल होते हैं और बाद में उन देशों के पूंजी निवेश और आर्थिक स्वतंत्रता पर कब्जा कर लेते हैं।
दूसरी ओर, जी7 की बी3डब्ल्यू पहल में भू-राजनीतिक सामग्री शामिल है लेकिन पहल में शामिल व्यावसायिक पैरवी करने वाले अनिवार्य रूप से इसे भू-अर्थशास्त्र से जोड़ेंगे।

चीन ने पहले ही जी7 देशों पर बढ़त बना ली

फोरम फॉर इंटीग्रेटेड नेशनल सिक्योरिटी के महासचिव शेषाद्रि चारी ने कहा कि बीआरआई और बी3डब्ल्यू अतुलनीय हैं। उन्होंने कहा कि चीन ने पहले ही जी7 देशों पर बढ़त बना ली है, जिनका लक्ष्य केवल कैरेबियन से लेकर इंडो-पैसिफिक तक लोकतांत्रिक देशों में परियोजनाओं पर बी3डब्ल्यू पहल के तहत 40 ट्रिलियन डॉलर तक खर्च करना है।
दूसरी ओर, चीन पहले ही लगभग 160 देशों में 1,600 परियोजनाओं को कवर करते हुए 4.2 ट्रिलियन डॉलर के लिए प्रतिबद्ध है, चाहे वह पूंजीवादी हो या समाजवादी या कम्युनिस्ट।
विशेषज्ञों ने कहा कि बी3डब्ल्यू निजी उद्यमों से अपने धन का स्रोत बनाएगी क्योंकि बुनियादी ढांचा परियोजनाएं भारी मुनाफा लाती हैं।
दूसरी ओर, चीन के बीआरआई को एशियाई विकास बैंक, विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों जैसे अपने स्वयं के स्रोतों से वित्त पोषित किया जाता है।
चारी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि बीआरआई सिर्फ एक आर्थिक, वैश्विक, विकास और बहुपक्षीय परियोजना से कहीं अधिक है।

बी3डब्ल्यू पहल के उद्देश्यों की रूपरेखा तैयार नहीं

विशेषज्ञ ने कहा कि बीआरआई का रणनीतिक दृष्टिकोण अधिक से अधिक परियोजनाओं को अपने हाथ में लेना है ताकि चीन नई विश्व व्यवस्था का नेता बन सके। जी7 राष्ट्रों ने अभी तक अपनी बी3डब्ल्यू पहल के उद्देश्यों की रूपरेखा तैयार नहीं की है।
दोनों विशेषज्ञ इस बात पर सहमत हुए कि वैश्विक शांति और व्यवस्था के लिए चीन द्वारा पेश किए गए खतरों को समझने वाला भारत एकमात्र देश है।
उन्होंने नई दिल्ली को आगे बढ़ने और विकास परियोजनाओं को अपने हाथ में लेने का सुझाव दिया। उन्होंने भारत से इंडो-पैसिफिक डेवलपमेंट इनिशिएटिव का नेतृत्व करने और बिम्सटेक और आसियान संस्थानों को मजबूत करने का भी आग्रह किया।

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