Fact Finding Committee की रिपोर्ट: बंगाल में चुनाव बाद हिंसा को भड़काने के लिए माफिया, गुंडों का हुआ इस्तेमाल

राज्य में चुनाव बाद हिंसा की घटनाओं के पीड़ितों को न्याय के लिए सिविल सोसाइटी आर्गेनाइजेशन ने फैक्ट फाइंडिंग कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी ने गृह मंत्रालय को एक अंतरिम रिपोर्ट सौंपी है। 
 

Asianet News Hindi | Published : Jun 29, 2021 10:23 AM IST / Updated: Feb 05 2022, 03:24 PM IST

कोलकाता। पश्चिम बंगाल में चुनाव बाद हुई हिंसा पर अंतरिम रिपोर्ट आ गई है। फैक्ट फाइंडिंग कमेटी ने चुनाव बाद हिंसा की वारदातों से राज्य में दहशत का माहौल होने की बात कही है। कमेटी ने सुझाव दिया है कि कानून का राज स्थापित करने के लिए सरकार को प्रयास करने चाहिए। अधिकारियों को सरकारों के प्रति वफादार होने की बजाय अपनी ड्यूटी करनी चाहिए ताकि हर पीड़ित को न्याय मिल सके। बंगाल की सीमा को संवेदनशील बताते हुए देश विरोधियों की घुसपैठ के मामलों को रोकने के लिए एनआईए जांच की भी बात कही गई है। 

सिविल सोसाइटी आर्गेनाइजेशन ने की थी फैक्ट फाइंडिंग कमेटी गठित

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राज्य में चुनाव बाद हिंसा की घटनाओं के पीड़ितों को न्याय के लिए सिविल सोसाइटी आर्गेनाइजेशन ने फैक्ट फाइंडिंग कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी ने गृह मंत्रालय को एक अंतरिम रिपोर्ट सौंपी है। 

कौन कौन थे शामिल कमेटी में ?

सिक्किम हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस प्रमोद कोहली की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया था। इसमें सदस्य के तौर पर केरल के पूर्व मुख्य सचिव आनंद बोस, झारखंड की पूर्व डीजीपी निर्मल कौर, आईसीएसआई के पूर्व अध्यक्ष निसार अहमद और कर्नाटक के पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव एम मदन गोपाल को शामिल किया गया था। 

फैक्ट फाइंडिंग कमेटी ने क्या पाया ?

1.राज्य में चुनाव के बाद हिंसा पूर्व नियोजित थी। यह पहले से तय था कि परिणाम आने के बाद हिंसा को अंजाम देना है। योजना के अनुसार जिस दिन परिणाम आए, 2 मई 2021 की रात से हिंसा भड़क गई। अधिकतर साजिश पहले से रची गई थी, कुछ जगह देखादेखी हिंसा को अंजाम दिया गया।

2. सबसे चैंकाने वाली बात यह है कि ज्यादातर मामलों में हिंसा का नेतृत्व पेशेवर गिरोह, माफिया डॉन और आपराधिक गिरोह कर रहे थे। इनका नाम भी पुलिस रजिस्टर में है। जांच में आगे खुलासा हुआ कि चुनाव से पहले ही उन्हें आतंक फैलाने के लिए राजनीतिक समर्थन दिया गया था।

3. इस तरह की घटनाओं ने गांव-गांव में तबाही मचा दी। इस हिंसा का एकमात्र उद्देश्य मनुष्य को हानि पहुंचाना था। हिंसा ने लोगों की संपत्ति, घरों और व्यवसायों को नुकसान पहुंचाया है। लोगों को आर्थिक नुकसान हुआ है।

4. ज्यादातर मामलों में रिपोर्ट नहीं लिखी गई या पीड़ित ने रिपोर्ट नहीं लिखाया। पीड़ित प्रतिशोध या पुलिस में विश्वास की कमी के डर से रिपोर्ट करने से डरते हैं। जिन पीड़ितों ने पुलिस को सूचित करने की हिम्मत की, उन्हें या तो दोषियों के साथ मामला सुलझाने के लिए मजबूर किया गया या उन्हें मामला दर्ज करने से रोका गया।

5. आधार कार्ड, राशन कार्ड जबरन छीनने, किसी विशेष राजनीतिक दल का समर्थन न करने पर जबरन वसूली, रंगदारी या रंगदारी के मामले सामने आए हैं।

6. रिपोर्ट के अनुसार अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, महिलाओं, बच्चों और समाज के अन्य कमजोर वर्गों के लोगों को एक से अधिक बार निशाना बनाया गया है।

7. रिपोर्ट में कहा गया है कि हताहतों की सही संख्या, गंभीर रूप से घायल, संपत्ति के नुकसान की सीमा अभी तक पूरी तरह से ज्ञात नहीं है। लेकिन लोगों का एक वर्ग, विशेष रूप से वे जो इस तरह की हिंसा पैदा कर रहे हैं, राजनीतिक शक्ति और लाभ का आनंद ले रहे हैं।
 

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