India-Pakistan Partition Tragedy: भारत के बंटवारे का दर्द लिए कई पीढ़ियां गुजर चुकी हैं। बंटवारे के आसपास जन्मे बच्चे अब उम्र के आखिरी पड़ाव पर पहुंच रहे हैं। इस उम्र में उनको जब बिछड़े हुए अपने मिल रहे हैं तो उनकी खुशियां देखते बन रही हैं। उनके चेहरों की यह खुशी दुनिया की सबसे कीमती दौलत मिलने से भी न आए। करतारपुर साहिब बुधवार को ऐसी ही बेहद खास क्षणों का गवाह बना...
इस्लामाबाद। करतारपुर का गुरुद्वारा दरबार साहिब एक बार फिर बिछड़े दो भाई-बहनों के मुलाकात का साक्षी बना। कई दशक पहले भारत-पाकिस्तान बंटवारे के समय बिछड़े भाई-बहन जब 75 साल बाद मिले तो आंखें खुशी के आंसूओं से सराबोर थीं। उनकी खुशी देख, आसपास के लोगों की आंखें भी नम हो गई। जालंधर के रहने वाले अमरजीत सिंह, सिख परिवार में पले-बढ़े होने के नाते सिख धर्म को मानते हैं। जबकि उनकी मां अपनी एक बेटी के साथ पाकिस्तान के फैसलाबाद में रह गई। बचपन की यादें को संजोए जब दोनों भाई-बहन मिले तो उनकी आंखों में अपनों से मिलने की खुशी के साथ ही पूरे परिवार द्वारा भोगी गई त्रासदी का गम भी झलक रहा था। दोनों ने काफी देर तक अपनी यादें साझा की।
भाई व्हीलचेयर पर, बहन कमर दर्द से परेशान लेकिन...
जालंधर के रहने वाले सिख अमरजीत सिंह काफी उम्रदराज हो चुके हैं। वह व्हीलचेयर पर हैं। कुछ दिनों पहले ही उनको अपनी एक और बहन के बारे में पता चला कि वह पाकिस्तान में जीवित है। बंटवारे के वक्त भाई-बहन बिछड़ गए थे। अमरजीत अपनी एक और बहन के साथ भारत आ गए थे जबकि उनकी मां एक बेटी के साथ पाकिस्तान में ही रह गई थीं। मां-बेटी पाकिस्तान में किसी तरह अपनी यादों के सहारे जीवन गुजर बसर कर रहे थे तो अमरजीत और उनकी बहन को एक सिख परिवार ने अपना लिया था। बुधवार को पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के करतारपुर में गुरुद्वारा दरबार साहिब में व्हीलचेयर से बंधे अमरजीत सिंह की अपनी बहन कुलसुम अख्तर से मुलाकात हुई तो दोनों भावनाओं में बह गए। उनके भावनात्मक जुड़ाव को देख सभी की आंखें नम हो गईं।
गले लगकर रोने लगे दोनों
अमरजीत सिंह जैसे ही अटारी-वाघा बार्ड से पाकिस्तान पहुंचे 65 वर्षीय कुलसुम, भाई को देखकर अपनी भावनाओं पर नियंत्रण नहीं रख सकीं। दोनों एक दूसरे को गले लगाकर रोते रहे। वह अपने बेटे शहजाद अहमद और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ अपने भाई से मिलने के लिए फैसलाबाद में अपने गृहनगर से आई थीं।
क्या है पूरा किस्सा?
पाकिस्तान मीडिया के अनुसार, कुलसुम के माता-पिता 1947 में पाकिस्तान चले गए थे। भारत में ही कुलसुम के एक भाई व एक बहन रह गए थे। कुलसुम ने कहा कि वह पाकिस्तान में पैदा हुई थीं और अपनी मां से अपने खोए हुए भाई और बहन के बारे में सुनती थीं। कुलसुम ने कहा कि जब भी उसे अपने लापता बच्चों की याद आती थी तो उसकी मां रोती थी।
नाउम्मीद थी कुलसुम, अमरजीत भी गम को ढो रहे थे
कुलसुम ने बताया कि उनकी मां को उम्मीद नहीं थी कि वह कभी अपने बिछड़े बच्चों से मिल पाएगी। हालांकि, कुछ साल पहले एक उम्मीद जगी जब भारत से एक परिचित पाकिस्तान पहुंचे। कुलसुम जिनकी उम्र करीब 65 साल के आसपास है, ने बताया कि उस समय उनकी मां ने दोनों बच्चों के बारे में बताया था। गांव की जानकारी भी दी थी। वह बताती हैं कि मां के बताए अनुसार पाकिस्तान पहुंचे सरदार दारा सिंह ने भारत लौटने के बाद पंजाब के पडावां गांव गए। वहां पता लगाया तो जानकारी हुई कि उनका बेटा तो जीवित है लेकिन बेटी अब इस दुनिया में नहीं है। कुलसुम के भाई को 1947 के बंटवारे के बाद एक सिख परिवार ने गोद ले लिया था और वह अमरजीत सिंह हो गए थे। जब भाई की जानकारी मिल गई तो कुलसुम ने उनसे संपर्क किया। पहले नंबर पता लगाया फिर व्हाट्सअप संदेश भेजकर पूरी जानकारी दी।
फिर दोनों भाई-बहन ने मिलने का फैसला किया
बुजुर्ग कुलसुम अपने परिजन के साथ करतारपुर साहिब पहुंची। वह पीठ के गंभीर दर्द से परेशान हैं। लेकिन इसके बाद भी वह फैसलाबाद से यहां पहुंची। जबकि भाई अमरजीत सिंह व्हीलचेयर पर ही पहुंचे। पहली बार अमरजीत सिंह को यह भी पता चला कि वह मुसलमान हैं और उनके असली माता-पिता पाकिस्तान में हैं। अमरजीत को कुलसुम ने बाकी के परिवार के सदस्यों के बारे में बताया। बताया कि उनके अलावा तीन और भाई हैं जिसमें एक जर्मनी में रह रहे थे, अब नहीं हैं। अब दोनों भाई-बहन अपने अपने परिवारों से एक-दूसरे को मिलाने के लिए दोनों देशों की यात्रा करना चाहते हैं।
पहले भी एक बिछड़ा परिवार मिल चुका है करतारपुर साहिब में
यह कोई पहली बार नहीं है कि कोई बिछड़ा परिवार यहां मिला है। बंटवारे के दौरान बिछड़ा एक और परिवार करतारपुर साहिब कॉरिडोर में मिल चुका है। मई में एक सिख परिवार में जन्मी एक महिला जिसे एक मुस्लिम दंपति ने गोद लिया था और पाला था,करतारपुर में भारत के अपने भाइयों से मिली थीं।
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