नहीं रहे सुंदरलाल बहुगुणा: पर्यावरण को बचाने जिंदगीभर गांधीवादी तरीके से लड़ते रहे लड़ाई, कभी जीते-कभी हारे

प्रसिद्ध पर्यावरणविद और चिपको आंदोलन के प्रणेता सुंदरलाल बहुगुणा के निधन की खबर ने प्रकृति प्रेमियों को निराश किया है। बहुगुणा का शुक्रवार को कोरोना से निधन हो गया। उन्हें 8 मई को कोरोना संक्रमण के बाद ऋषिकेश के एम्स में भर्ती कराया गया था। वे निमोनिया के साथ डायबिटीज से भी पीड़ित थे। चिपको आंदोलन के जरिये पर्यावरण संरक्षण का दिया था दुनियाभर को अनूठा संदेश।

Asianet News Hindi | Published : May 21, 2021 10:28 AM IST / Updated: May 21 2021, 04:26 PM IST

ऋषिकेश, उत्तराखंड. पर्यावरण को बचाने 'चिपको आंदोलन' खड़ा करने वाले ख्यात पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा शुक्रवार को हमारे बीच नहीं रहे। 94 वर्षीय बहुगुणा को 8 मई को कोरोना संक्रमण के बाद ऋषिकेश के एम्स में भर्ती कराया गया था। वे निमोनिया के साथ डायबिटीज से भी पीड़ित थे। गुरुवार को डॉक्टरों ने लीवर सहित ब्लड आदि की जांच कराने को कहा था, लेकिन इससे पहले ही शुक्रवार दोपहर करीब 12 बजे उनका निधन हो गया। उनके निधन पर देशभर के पर्यावरणविदों, राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्रों से जुड़े लोगों ने शोक जताया है।

प्रधानमंत्री ने जताया शोक
सुंदरलाल बहुगुणा के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शोक जताया है। मोदी ने कहा- बहुगुणा का निधन हमारे देश के लिए एक बड़ी क्षति है। उन्होंने प्रकृति के साथ सद्भाव के साथ रहने के हमारे सदियों पुराने लोकाचार को प्रकट किया। उनकी सादगी और करुणा की भावना को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। 

ऐसे थे बहुगुणा
9 जनवरी, 1927 को उत्तराखंड के सिलयारा में जन्मे बहुगुणा ने सिर्फ 13 साल की उम्र में अपना राजनीतिक करियर शुरू किया था। 1949 में मीराबेन और ठक्कर बापा से मुलाकात के बाद बहुगुणा ने मंदिरों में दलितों के प्रवेश अधिकार को लेकर भी एक बड़ा आंदोलन किया था। बहुगुणा ने 1956 में शादी के बाद राजनीति जीवन से संन्यास ले लिया और अपनी पत्नी विमला नौटियाल के साथ मिलकर नवजीवन मंडल की स्थापना की। बहुगुणा ने एक पहाड़ी पर अपना आश्रम बनाया था। उन्होंने टिहरी के आसपास शराब माफियाओं के खिलाफ भी आंदोलन चलाया था। 1960 के दशक में वे पर्यावरण संरक्षण को लेकर समर्पित हो गए।

चिपको आंदोलन से हुए मशहूर
बहुगुणा ने गढ़वाल हिमालय में जंगल काटने का विरोध किया था। वे विकास के नाम पर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के कतई पक्षधर नहीं थे। उनके सारे आंदोलन गांधीवादी तरीके से हुए। 1970 में उन्होंने पेड़ों को कटने से बचाने चिपको आंदोलन शुरू किया था। बात 26 मार्च, 1974 की है, जब पेड़ों की कटाई के लिए ठेकेदार पहुंचे। उन्हें देखकर महिलाएं पेड़ों से चिपक गईं। यह आंदोलन दुनियाभर के मीडिया में चर्चा का विषय बन गया था।

और भी कई बड़े आंदोलन किए

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