'नई दिल्ली की राजनीतिक हवा बदली, गठबंधन दल समर्थन के बदले कर सकते है भारी मांग', कुछ ऐसा रहा विदेशी मीडिया का रिएक्शन

नरेंद्र मोदी ने रविवार (9 जून) को लगातार तीसरी बार भारत के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। उनके साथ 72 और मंत्रियों ने भी शपथ ली। इनमें भाजपा के गठबंधन सहयोगियों के चेहरे शामिल थे।

PM Modi Oath Ceremony: नरेंद्र मोदी ने रविवार (9 जून) को लगातार तीसरी बार भारत के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। उनके साथ 72 और मंत्रियों ने भी शपथ ली। इनमें भाजपा के गठबंधन सहयोगियों के चेहरे शामिल थे, जिनका समर्थन सरकार बनाने में महत्वपूर्ण रहा है। 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद यह पहली बार होगा जब मोदी अपने सहयोगियों के साथ सत्ता साझा करेंगे। वहीं कल राष्ट्रपति भवन में हुए शपथ समारोह पर विदेशी मीडिया ने भी नजरें जमाई रखी। उन्होंने ने भी पीएम मोदी के शपथ ग्रहण समारोह पर अपनी प्रतिक्रिया दी।

अमेरिका की प्रतिष्ठित अखबार दी न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा कि नई सरकार के शपथ लेते ही नई दिल्ली की राजनीतिक हवा बदली हुई दिखाई दी।संसदीय बहुमत से वंचित होने के बाद पीएम मोदी ने गठबंधन सहयोगियों के विविध समूह की ओर रुख किया,  जो अब प्रासंगिकता और सुर्खियों का आनंद ले रहे हैं। वहीं लंदन के BBC ने अपने ही अंदाज में लिखा कि कोई भी विश्लेषक मोदी 3.0 और चुनाव परिणामों पर विचार नहीं कर रहा था। सत्तारूढ़ गठबंधन ने एग्जिट पोल की भविष्यवाणी की तुलना में कम अंतर से जीत हासिल की एक ऐसे चुनाव में जिसमें भारत के विरोध का पुनरुत्थान देखा गया।

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विदेश के अन्य मीडिया हाउस की प्रतिक्रिया

Middle East की सबसे बड़ी न्यूज मीडिया एजेंसी अल जज़ीरा ने पीएम मोदी के शपथ समारोह पर कहा कि बहुमत की कमी गठबंधन सरकार में नीति निश्चितता सुनिश्चित करने की भाजपा की क्षमता का परीक्षण करेगी। इस गठबंधन में  दो दिग्गजों नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू से चुनौती मिल सकती है। इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि दोनों नेता के विपक्ष में कई दोस्त है, जो उन्हें लुभाने में लगे रहेंगे। 

ब्लूमबर्ग ने शपथ समारोह पर कहा कि इस भव्य समारोह में विदेशी राष्ट्राध्यक्षों, बिजनेस टाइकून और बॉलीवुड सितारों सहित 8,000 मेहमानों ने भाग लिया। ये पहली बार है जब पीएम मोदी अपने नेतृत्व का विस्तार करते हुए सत्ता साझा कर रहे हैं। फ्रांस की AFP समाचार एजेंसी ने आयोजन पर कहा कि नए मंत्रिमंडल का विवरण अभी तक ज्ञात नहीं है। हालांकि, इसमें बड़े गठबंधन दल  अपने समर्थन के बदले में भारी रियायतों की मांग कर सकते हैं।

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