पूर्व डिप्टी सीएम ईश्वरप्पा की मांग- इस्तीफा दे जांच में सहयोग करें सिद्धारमैया

पूर्व डिप्टी सीएम के.एस. ईश्वरप्पा ने कहा कि लोकतंत्र में कानून का सम्मान करना चाहिए। जब उन पर आरोप लगे थे तो उन्होंने इस्तीफा देकर जांच में सहयोग किया था। उन्हें विश्वास है कि सिद्धारमैया भी इस्तीफा देकर जांच में सहयोग करेंगे।

शिवमोग्गा (अगस्त 18): पूर्व डिप्टी सीएम के.एस. ईश्वरप्पा ने कहा कि लोकतंत्र में कानून का सम्मान करना चाहिए। पत्रकारों से बात करते हुए, उन्होंने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ राज्यपाल द्वारा अभियोजन को मंजूरी देने पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि जब उन पर आरोप लगे थे तो उन्होंने इस्तीफा देकर जांच में सहयोग किया था। उन्हें विश्वास है कि सिद्धारमैया भी इस्तीफा देकर जांच में सहयोग करेंगे।

इससे पहले सीएम सिद्धारमैया, डिप्टी सीएम डी.के. शिवकुमार ने मेरे खिलाफ बड़ा जुलूस क्यों निकाला था? दूसरों पर आरोप लगने पर ठीक, अपने खिलाफ लगने पर गलत, यह रवैया सही नहीं है। लेकिन, मुझे एक संदेह है कि कहीं वे श्रीमती को कहीं शामिल न कर लें। बेचारी वो गौरम्मा जैसी हैं। उन पर ऐसा कोई आरोप न लगे, यही प्रार्थना करता हूँ। सिद्धारमैया कानूनी रूप से लड़ें और क्लीन चिट लेकर बाहर आएं, यही कामना करता हूँ।

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भाजपा के दो फाड़ होने की आशंका: राज्य के भाजपा के 12 प्रमुख नेताओं ने बेंगलुरु में बैठक की है। भाजपा अध्यक्ष को छोड़कर इस तरह की बैठकें हो रही हैं। इस तरह बैठकें होती रहीं तो भाजपा के दो फाड़ होने की आशंका है, ऐसा पूर्व डिप्टी सीएम के.एस. ईश्वरप्पा ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा। प्रेस वार्ता में उन्होंने कहा कि बी.वाई. विजयेंद्र को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त करने के बाद से ही यह अशांति फैली है। बी.वाई. विजयेंद्र का यह एकतरफा फैसला है। हमारे समय में ऐसा नहीं था। सामूहिक नेतृत्व था। लेकिन अब वह नहीं है। परिवारवाद ही मुख्य होता जा रहा है। समझौतावादी राजनीति सामने आ रही है। इसे यहीं रुकना चाहिए।

बैठक करने वाले अनुभवी हैं, पार्टी को खड़ा करने वाले हैं। उन्होंने 17 अगस्त से कुदालसंगम से बल्लारी तक पदयात्रा करने की बात कही है। लेकिन, वे 12 लोग हैं या उससे ज़्यादा, यह पता नहीं है। यह पदयात्रा हुई तो राज्य के सभी तालुकों में दो-दो पार्टी बन जाएँगी, ऐसा उन्होंने चेतावनी दी। विजयेंद्र के अध्यक्ष बनने के बाद राज्य में लोकसभा की 25 सीटें घटकर 17 रह गईं। वहीं विधानसभा में 66 पर सिमट गईं। मोदी के नाम और समर्थन के बावजूद यह स्थिति आई। जेडीएस से गठबंधन के बाद ही इतनी सीटें मिल पाईं। वरना इतनी भी नहीं आतीं। एक ही परिवार के हाथ में सत्ता देने का यही नतीजा है।

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