Padma Award 2023 में शामिल 26 यूनिक लोगों की कहानीः किसी ने 2 रु. में किया इलाज तो किसी को कहते हैं गांधी

नई दिल्ली। गणतंत्र दिवस के अवसर पर पद्म पुरस्कारों की घोषणा की गई। इनमें 26 ऐसे नाम हैं जिन्होंने मेडिकल और कला से लेकर समाज कल्याण तक, हर क्षेत्र में काम किया और अपनी बदौलत बदलाव लाया। किसी ने 2 रु. में इलाज किया तो किसी को लोग गांधी कहते हैं।

Vivek Kumar | Published : Jan 26, 2023 10:23 AM IST / Updated: Jan 26 2023, 04:44 PM IST
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दिलीप महालनाबिस ने ORS के इस्तेमाल को विश्वभर में आगे बढ़ाया। इससे दुनियाभर में 5 करोड़ से अधिक लोगों की जान बचाई गई। ORS के इस्तेमाल से डायरिया, हैजा और निर्जलीकरण से होने वाली मौतों में 93% की कमी हुई।

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रतन चंद्र कर रिटायर सरकारी डॉक्टर हैं। उन्होंने अंडमान के जारवा जनजाति के साथ काम किया है। यह जनजाति उत्तरी सेंटिनल से 48 किमी दूर एक द्वीप पर रहती है। उन्होंने खसरे के दौरान जारवाओं का इलाज किया था। 1999 में फैली खसरे की महामारी ने जारवा जनजाति को विलुप्ती के कगार पर पहुंचा दिया था।

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हीराबाई लोबी ने सिद्दी आदिवासियों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया है। वह अनाथ बच्चों को पालती हैं और उन्हें शिक्षा देती हैं।

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मुनीश्वर चंद्र डावर ने 1971 के युद्ध में भारतीय सेना के डॉक्टर के रूप में काम किया था। वह जबलपुर में गरीब लोगों का इलाज करते हैं। उनकी फीस सिर्फ 20 रुपए है। 2010 तक वह सिर्फ दो रुपए में इलाज करते थे।

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रामकुइवांगबे न्यूमे नागा सामाजिक कार्यकर्ता हैं। उन्होंने हेराका धर्म के संरक्षण में अपना जीवन समर्पित कर दिया है। वह हेराका स्वदेशी संस्कृति को बढ़ावा दे रहे हैं। उन्होंने 10 प्राइमरी स्कूलों की स्थापना की और महिलाओं को शिक्षा के लिए प्रोत्साहित किया।

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वी पी अप्पुकुट्टन पोडुवल गांधीवादी और स्वतंत्रता सेनानी हैं। उन्होंने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया था। वह पिछले 8 दशकों से समाज के कमजोर वर्गों के लिए काम कर रहे हैं। लोग उन्हें गांधी कहते हैं।

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संकुरथ्री चंद्र शेखर सामाजिक कार्यकर्ता हैं। उन्होंने अपना जीवन मुफ्त इलाज करने में समर्पित कर दिया है। वह जरूरतमंद बच्चों को शिक्षा भी देते हैं। उन्होंने 3 लाख से अधिक नेत्र रोगियों का इलाज किया है। इसमें से 90 फीसदी सर्जरी मुफ्त की है।

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नेकराम शर्मा जैविक खेती करते हैं। उन्होंने नौ-अनाज की पारंपरिक फसल प्रणाली को पुनर्जीवित किया है। नौ अनाज एक प्राकृतिक इंटरक्रॉपिंग विधि है। इसमें जमीन के एक टुकड़े पर बिना किसी रसायन के इस्तेमाल के 9 अनाज उगाए जाते हैं। इससे 50 फीसदी कम पानी लगता है और जमीन की उर्वरता बढ़ती है।

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जनम सिंह सोय कोल्हान विश्वविद्यालय से रिटायर हैं। वह चार दशक से ट्राइबल हो भाषा के संरक्षण और संवर्धन के लिए काम कर रहे हैं। उन्होंने हो जनजाति की संस्कृति और जीवन शैली पर 6 पुस्तकें लिखीं हैं।

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धनीराम टोटो ने टोटो (डेंगका) भाषा का संरक्षक किया है। बिना किसी औपचारिक ट्रेनिंग के वह भाषाविद् और टोटो भाषा लिपि के वास्तुकार हैं। इस भाषा में 37 अक्षर हैं। वह टोटो भाषा में उपन्यास लिखने वाले पहले लेखक हैं। टोटो (डेंगका) एक लुप्तप्राय भाषा है।

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बी रामकृष्णा रेड्डी भाषा विज्ञान के प्रोफेसर हैं। उन्होंने कुवी, मंदा और कुई जैसी आदिवासी और दक्षिणी भाषाओं के संरक्षण में अपार योगदान दिया है। उन्होंने मंडा-इंग्लिश डिक्शनरी और कुवि उड़िया-इंग्लिश डिक्शनरी का मसौदा तैयार किया है।

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अजय कुमार मंडावी लकड़ी पर नक्काशी करते हैं। उन्होंने वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों के ऐसे लोग जो भटक गए हैं उन्हें फिर से मुख्यधारा में लाने में बड़ा योगदान दिया है। उन्होंने 350 से अधिक लोगों का जीवन बदला। वह युवाओं को बंदूक छोड़कर लकड़ी सुलेख सीखने के लिए छेनी उठाने को प्रेरित करते हैं। 

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रानी मचैया फोल्क डांसर हैं। उन्होंने नृत्य के माध्यम से कोडवा संस्कृति को बढ़ावा दिया है और उसे संरक्षित किया है। वह महिला कलाकारों को उम्माथैट फोक की ट्रेनिंग भी देती हैं। 

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के सी रनरेमसंगी मिजो लोक गायिका हैं। वह मिजो सांस्कृतिक विरासत को आगे बढ़ा रही हैं। उन्होंने पूरे देश में परफॉर्म किया है। इन्हें 2017 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार मिला था। 

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राइजिंगबोर कुर्कलंग मेघालय के पूर्वी खासी हिल्स के निवासी हैं। वह आदिवासी दुइतारा वाद्य यंत्र के निर्माता और संगीतकार हैं। उन्होंने दुनिया भर में खासी लोक संगीत और वाद्ययंत्रों (सैतार और दुइतारा) को लोकप्रिय बनाना है।

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102 साल के मंगला कांति राय सबसे उम्रदराज सरिंदा वादक है। वह सबसे पुराने लोक संगीतकारों में से एक हैं। कांति राय सरिंदा की मदद से चिड़ियों की आवाज निकालने के लिए प्रसिद्ध हैं। 

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मोआ सुबोंग प्रसिद्ध नागा संगीतकार हैं। उन्होंने बांस से नया और आसानी से बजने वाला वाद्य यंत्र बमहुम बनाया है। उन्होंने एबियोजेनेसिस नामक म्यूजिक बैंड की स्थापना की। यह बैंड पारंपरिक नागा संगीत को आधुनिक रॉक म्यूजिक के साथ मिश्रित करता है।

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डोमर सिंह कुंवर छत्तीसगढ़ी नाट्य नाच कलाकार हैं। उन्होंने सुल्ताना डाकू पर प्ले लिखा था। इसे 13 बोलियों और भाषाओं में भारत भर में 5,000 से अधिक बार प्रस्तुति किया गया है। 

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मुनिवेंकटप्पा ने लोक वाद्ययंत्र थामेट को संरक्षित किया है। थमाटे एक तबला वाद्य यंत्र है। 16 साल की उम्र में मुनिवेंकटप्पा ने थामाटे बजाना शुरू किया था। वह दूसरे कलाकारों को भी इसकी ट्रेनिंग देते हैं।

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परशुराम कोमाजी खुने झडिपट्टी लोक रंगकर्मी हैं। उन्होंने 5,000 से अधिक नाटक शो में 800 अलग-अलग भूमिकाएं निभाई हैं। उन्होंने वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों के युवाओं को लोक संस्कृति में शामिल कर मुख्यधारा में लाने में बड़ा योगदान दिया है। 
 

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गुलाम मुहम्मद जाज 8वीं पीढ़ी के संतूर शिल्पकार हैं। कश्मीर में पिछले 200 सालों से उनका परिवार बेहतरीन संतूर बनाने के लिए जाना जाता है।

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भानुभाई चित्रा 7वीं पीढ़ी के कलमकारी कलाकार है। उनका परिवार 400 साल पुराने पारंपरिक शिल्पकला को आगे बढ़ा रहा है। उनकी पेंटिंग में महाभारत और रामायण जैसे पौराणिक महाकाव्य की कहानी होती है। 

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परेश राठवा पिथौरा कलाकार हैं। वे इस प्राचीन सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा दे रहे हैं। पिथौरा 12,000 साल पुरानी आदिवासी लोक कला है। 

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कपिल देव प्रसाद बिहार के नालंदा जिले के बावन बूटी हथकरघा बुनकर हैं। वह 52 बूटी के माध्यम से शिल्प की बुनाई करते हैं। वह अपने शिल्प में प्राचीन बौद्ध प्रतीकों को दर्शाते हैं।
 

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तुला राम उप्रेती पारंपरिक तरीके से जैविक खेती करते हैं। वह दूसरे किसानों को भी जैविक खेती सिखाते हैं। उनके प्रयासों से किसान कम खर्च में प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। 

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वदिवेल गोपाल और मासी सदइयां सांप विशेषज्ञ हैं। वे खतरनाक और विषैले सांप पकड़ने में माहिर हैं। इन्होंने सापों को बचाने में अहम योगदान दिया है। दोनों इरुला जनजाति के हैं।

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