सियासी गलियारों में परदे के पीछे बहुत कुछ घटता है- ओपिनियन, साजिश, सत्ता का खेल और राजनीतिक क्षेत्र में आंतरिक तकरार। पेश है 'फ्रॉम द इंडिया गेट' का 19वां एपिसोड, जो आपके लिए लाया है पॉलिटिक्स की दुनिया के कुछ ऐसे ही चटपटे और मजेदार किस्से।
From The India Gate: सियासी गलियारों में परदे के पीछे बहुत कुछ होता है- ओपिनियन, साजिश, सत्ता का खेल और राजनीतिक क्षेत्र में आंतरिक तकरार। एशियानेट न्यूज का व्यापक नेटवर्क जमीनी स्तर पर देश भर में राजनीति और नौकरशाही की नब्ज टटोलता है। अंदरखाने कई बार ऐसी चीजें निकलकर आती हैं, जो वाकई बेहद रोचक और मजेदार होती हैं। पेश है 'फ्रॉम द इंडिया गेट' (From The India Gate) का 19वां एपिसोड, जो आपके लिए लाया है, सत्ता के गलियारों से कुछ ऐसे ही मजेदार और रोचक किस्से।
नाइट ड्यूटी अलाउंस..
कर्नाटक में चुनाव के नजदीक आते ही भीड़ जुटाने का खेल जोर पकड़ने लगा है। सभी राजनेता अपनी लोकप्रियता के समर्थन में भारी भीड़ जुटाना चाहते हैं। वैसे, इस बात में कोई सीक्रेट नहीं है कि सभी पार्टियां अपने संबंधित कार्यकर्ताओं को रैलियों और कैम्पेन में परेड कराने के लिए अलग से अलाउंस (भत्ता) देती हैं। लेकिन बेलगाम जिले में एक रैली का आयोजन करने वाले इन दिनों गहरे सदमे में हैं। चुनाव प्रचार के लिए एक क्षेत्र का दौरा करने वाले ज्यादातर सीनियर लीडर अपने यात्रा कार्यक्रम में एक से ज्यादा प्रोग्राम्स की प्लानिंग करते हैं। अगर किसी एक मीटिंग में देरी हो जाती है, तो उसके बाद की सभी रैलियां भी लेट हो जाती हैं। बेलगाम में कुछ ऐसा ही हुआ, क्योंकि जिन नेताओं को दोपहर में कार्यक्रम स्थल पर पहुंचना था, वे देर शाम तक भी नजर नहीं आए। यहां तक तो मामला फिर भी ठीक था, लेकिन इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात तब सामने आई, जब पैसे देकर इकट्ठा की गई भीड़ (पेड क्राउड) रात होते ही तितर-बितर होने लगी। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि भीड़ को महज 'दिन का भत्ता' ही दिया गया था। शाम के बाद वहां रुकने का मतलब भीड़ को एक्स्ट्रा पैसा या नाइट अलाउंस की जरूरत थी। कुल मिलाकर लोकल नेता भीड़ को रोकने में नाकामयाब रहे और उनके सामने सिर्फ खाली कुर्सियां ही नजर आईं। पूरे सीन को देखकर तो यही कहा जा सकता है कि इस फ्लॉप शो के लिए आयोजकों को काफी बुरा-भला सुनना पड़ा।
कचरा सौदा और दामादों का खेल..
ऐसा लगता है कि घटिया कमाई के लालच ने केरल में सत्तारूढ़ दल और विपक्ष को एक कर दिया है। एर्नाकुलम जिले के ब्रह्मपुरम में गार्बेज प्लांट स्थापित करने के सौदे में सीनियर वामपंथी नेताओं के निकट संबंधी की भूमिका पर दो बार विचार किया गया था। धुंआ छंटने के बाद अब ऐसा लगता है कि सीपीएम नेता के दामाद द्वारा जीता गया मेन कॉन्ट्रैक्ट सीपीएम के ही एक बड़े नेता के दामाद के आशीर्वाद से कांग्रेस नेता के दामाद को सब-कॉन्ट्रैक्ट के रूप में दे दिया गया। बीजेपी ने अब कचरे के सौदे और दामादों द्वारा निभाई गई भूमिका की सीबीआई जांच की मांग की है। कैश फॉर ट्रैश कहानी में भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार की कहानियां दिन-ब-दिन सामने आती जा रही हैं। ऐसे में इन नेताओं के मामले में वो कहावत सच साबित होती दिख रही है, जिसमें कहा गया है कि जब तक उसके पास कूड़ा बीनने वाले की नजर है, तब तक वह कूड़ा बीनने वाला बना रहेगा।
व्हाया नाड..
ऐसा लगता है कि केरल के वायनाड लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र (पूर्व सांसद राहुल गांधी द्वारा प्रतिनिधित्व) को जल्द ही व्हाया-नाड के रूप में फिर से नाम देना होगा। इससे पहले कि कांग्रेस के कार्यकर्ता उस फैसले की कानूनी बारीकियों को पूरी तरह समझ पाते, जिसमें राहुल को अयोग्य ठहराया गया, ये सुझाव दिया गया कि अगर उपचुनाव का ऐलान होता है तो वायनाड से प्रियंका गांधी वाड्रा को चुनाव लड़ना चाहिए। दरअसल, राहुल जब वायनाड से मैदान में उतरे थे, तो उन्हें अपनी पुश्तैनी सीट अमेठी को खोने का डर था। वास्तव में वायनाड में राहुल गांधी की एंट्री ने पार्टी के भीतर परस्पर विरोधी गुटों को साथ ला दिया था, जो कांग्रेस के लिए अच्छा था। अब अगर प्रियंका उपचुनाव में इस सीट से मैदान में उतरती हैं, तो कांग्रेस समर्थक वायनाड सीट को जीतकर वो गांधी परिवार के लिए एक और सुरक्षित सीट बनाने का रास्ता साफ कर देंगी। इससे केरल के कांग्रेस कार्यकर्ताओं को बाकी बची 19 सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका मिल जाएगा और वायनाड के रास्ते संसद में प्रवेश करने का रास्ता आसान हो जाएगा।
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नेताजी को फुल छूट..
यूपी में राजनीतिक जानकार इस बात की उम्मीद कर रहे थे कि अखिलेश यादव रामचरितमानस के बारे में विवादित टिप्पणी करने वाले एक प्रमुख नेता पर फौरन एक्शन लेते हुए उन्हें सही रास्ता दिखाएंगे। लेकिन, विडम्बना ये रही कि इन पर कार्रवाई तो दूर, उल्टे इन नेताजी का विरोध करने वाले कुछ लोगों के खिलाफ ही एक्शन ले लिया गया। ये देख पार्टी के नेता और कार्यकर्ता भी भौंचक्के रह गए। ऐसा लगता है कि नेताजी पर चुप्पी साधे रहना पिछड़े समुदाय के वोटों को लुभाने की एक पॉलिटिकल स्ट्रैटजी थी। लगता है कि अखिलेश यादव ने ज्यादा से ज्यादा वोट हथियाने के चक्कर में इन नेताजी को पूरी तरह छूट दे रखी है। वैसे, हिंदू-मुस्लिम वोट बैंक पर डिपेंड रहने की वजह से पार्टी पहले ही काफी नुकसान उठा चुकी है। खैर, ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि सपा की ये रणनीति पार्टी को आगे लाएगी या फिर और पीछे धकेल देगी।
हासन की चुनौती..
पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी के प्रीतम गौड़ा के जीतने के बाद हासन निर्वाचन क्षेत्र जेडीएस (जनता दल सेक्युलर) खेमे में विवाद का कारण बन गया है। जेडीएस इस सीट पर फिर से दावा करना चाहती है, लेकिन पार्टी सही उम्मीदवार खड़ा करने के लिए जद्दोजहद कर रही है। चर्चा ये है कि लोकल नेता और 4 बार इस निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले दिवंगत विधायक एचएस प्रकाश के बेटे स्वरूप प्रकाश को टिकट दिया जाएगा। स्वरूप को जेडीएस प्रमुख एचडी कुमारस्वामी का समर्थन हासिल है। लेकिन एचडी देवेगौड़ा के बड़े बेटे एचडी रेवन्ना अपनी पत्नी भवानी को मैदान में उतारने के पक्ष में हैं। गेंद अब देवेगौड़ा के पाले में है और उनका आशीर्वाद निश्चित रूप से तय करेगा कि आखिर मौका किसे मिलेगा? देवेगौड़ा के करीबी सूत्रों का कहना है कि वो अपनी बहू भवानी के बजाय स्वरूप के पक्ष में हैं। इसके पीछे जो सबसे बड़ी वजह है, वो ये कि हसन निर्वाचन क्षेत्र ने उन्हें 1991 में संसद के लिए चुना। ऐसे में अब स्वरूप के ऊपर अपनी बहू को तरजीह देने से उनकी बदनामी होगी। माना जा रहा है कि नाटक के अगले एपिसोड की कहानी उनके लिविंग रूम में लिखी जाएगी।
नेताजी की भद्द पिटी..
कीचड़ में कमल का खिलना अक्सर आशावाद के उदाहरण के तौर पर देखा जाता है। लेकिन, तमिलनाडु में स्टालिन सरकार के खिलाफ जो विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, उनमें सबसे बड़ा हाथ बीजेपी का ही लग रहा है। भाजपा के शीर्ष नेताओं का दावा है कि 2026 में राज्य में उनकी ही सरकार बनेगी। लेकिन, बीजेपी यहां असमंजस की स्थिति में लग रही है। बीजेपी कार्यकारिणी की बैठक में इस पसोपेश वाली स्थिति को लेकर चर्चा भी की गई। दो पार्टियों के बीच संघर्ष की स्थिति को संभालने के लिए बीजेपी के कुछ सीनियर लीडर्स को अपने पाले में लाने की कोशिश की गई, जिसकी वजह से दोनों पार्टियों में मतभेद उभर कर सामने आए। इस पर बीजेपी के एक सीनियर लीडर ने गठबंधन तोड़ने की धमकी दी। तब उन्हीं की पार्टी के कुछ साथियों ने समझदारी से काम लेने और शांत रहने की सलाह दी। जब बीजेपी के ये सीनियर लीडर समाधान के लिए दिल्ली पहुंचे तो राष्ट्रीय नेतृत्व ने भी उन्हें सलाह दी कि मूर्खता न करें। कुल मिलाकर राष्ट्रीय नेतृत्व ने जब नेताजी की बात मानने से इनकार कर दिया तो वे चुपचाप अपने पांव लौट आए।
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