From The India Gate: कहीं दब गई 'सिंघम' की दहाड़, तो कहीं चकनाचूर हुए सपने

सियासी गलियारों में परदे के पीछे बहुत कुछ घटता है- ओपिनियन, साजिश, सत्ता का खेल और राजनीतिक क्षेत्र में आंतरिक तकरार। पेश है 'फ्रॉम द इंडिया गेट' का 26वां एपिसोड, जो आपके लिए लाया है पॉलिटिक्स की दुनिया के कुछ ऐसे ही चटपटे और मजेदार किस्से।

From The India Gate: सियासी गलियारों में परदे के पीछे बहुत कुछ होता है- ओपिनियन, साजिश, सत्ता का खेल और राजनीतिक क्षेत्र में आंतरिक तकरार। एशियानेट न्यूज का व्यापक नेटवर्क जमीनी स्तर पर देश भर में राजनीति और नौकरशाही की नब्ज टटोलता है। अंदरखाने कई बार ऐसी चीजें निकलकर आती हैं, जो वाकई बेहद रोचक और मजेदार होती हैं। पेश है 'फ्रॉम द इंडिया गेट' (From The India Gate) का 26वां एपिसोड, जो आपके लिए लाया है, सत्ता के गलियारों से कुछ ऐसे ही मजेदार और रोचक किस्से।

कहां गई सिंघम की दहाड़...

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'कर्नाटक सिंघम' (कर्नाटक का शेर) अपनी दहाड़ खो चुका है। हालांकि, वे पड़ोसी राज्य तमिलनाडु में भाजपा के प्रमुख हैं। इन नेताजी को कर्नाटक चुनाव के दौरान काफी जिम्मेदारी दी गई थी। लेकिन सीनियर लीडर्स की घोर अनदेखी और टिकट वितरण में हस्तक्षेप को अब बीजेपी की बड़ी हार के कारणों में से एक माना जा रहा है। कई सीनियर लीडर्स ने तो इन नेताजी के साथ मंच साझा करने से भी इनकार कर दिया है। बीजेपी का दहाड़ता हुआ शेर अब चौतरफा आलोचना झेल रहा है, जिसके चलते फिलहाल वो किसी बिल्ली के बच्चे की तरह तब तक पीछे हट गया है, जब तक कि वो अपनी राजनीतिक भव्यता को फिर से हासिल नहीं कर लेता।

बिखर गए सपने..

कर्नाटक चुनाव के नतीजों ने तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव (KCR) के राजधानी तक BRS कार चलाने के सपने की हवा निकाल दी है। खुद को एक संभावित राष्ट्रीय विकल्प के रूप में दिखाते हुए केसीआर ने अपनी स्थिति को मजबूत करने की दृष्टि से एक गैर-कांग्रेसी, गैर-बीजेपी मोर्चे की संभावना पर चर्चा करते हुए कई बैठकें बुलाई थीं। लेकिन कांग्रेस के अपनी अग्रणी स्थिति को एक बार फिर पा लेने के साथ ही केसीआर की महत्वाकांक्षाओं पर पानी फिर गया। शपथ ग्रहण समारोह में कई गैर-बीजेपी मुख्यमंत्रियों की मौजूदगी अप्रत्यक्ष रूप से इस बात का समर्थन करती है कि कांग्रेस ने कर्नाटक जीत के बाद आखिर क्या हासिल किया है। केसीआर ने अपनी प्रयोगशाला में जिस एक राजनीतिक फॉर्मूले को आजमाया, वो इस उम्मीद में एचडी कुमारस्वामी के साथ गठबंधन को बढ़ावा देना था कि अगर त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति बनी तो कुमारस्वामी किंग मेकर साबित होंगे। लेकिन कांग्रेस जो कि तेलंगाना में बीजेपी के साथ ही एक विपक्षी पार्टी है, उसने एक बड़ी जीत दर्ज करते हुए सभी के मुंह बंद कर दिए। अब इस बात में कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए कि केसीआर सिद्धारमैया के शपथ ग्रहण समारोह में बुलाए गए मेहमानों की लिस्ट में भी नहीं थे।

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री-काउंटिंग ने बिगाड़ा खेल..

कर्नाटक में वोटों की गिनती के आखिरी कुछ मिनट इतने सस्पेंस से भरे हुए थे, जैसे किसी हाई-वोल्टेज टी20 मैच का आखिरी ओवर हो। ये हाई वोल्टेज ड्रामा जयनगर निर्वाचन क्षेत्र में देखने को मिला। कांग्रेस की सौम्या रेड्डी को बीजेपी के सीके राममूर्ति के खिलाफ 150 वोटों के अंतर से विजयी घोषित कर दिया गया। यहां तक ​​कि जब कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने जश्न मनाना शुरू किया, तभी बीजेपी ने री-काउंटिंग की मांग कर दी। बेंगलुरु दक्षिण के सांसद तेजस्वी सूर्या ने काउंटिंग बूथ में जाकर री-काउंटिंग की बात कही। जल्द ही चुनाव आयोग के अफसरों ने इस शर्त पर उनकी मांग मान ली कि कोई भी बीजेपी लीडर मतगणना केंद्र के अंदर नहीं रहेगा। री-काउंटिंग में बीजेपी के सीके राम मूर्ति कांग्रेस की सौम्या रेड्डी से 17 वोटों से आगे हो गए। अब कांग्रेस की बारी थी कि वो राममूर्ति को 16 वोटों के बेहद कम अंतर से विजेता घोषित करने के लिए एक और दौर की री-काउंटिंग की मांग करे। हालांकि, सौम्या रेड्डी के परिवार के लिए अब एकमात्र सांत्वना पड़ोस के बीटीएम लेआउट निर्वाचन क्षेत्र से उनके पिता रामलिंगा रेड्डी की जीत थी। हालांकि, कर्नाटक में कुछ अन्य उम्मीदवार भी थे, जो बेहद कम अंतर से चुनाव जीते थे। गांधीनगर सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत गुंडू राव के पुत्र दिनेश गुंडू राव ने बीजेपी के सप्तगिरि गौड़ा को 105 वोटों से हराया। इसी तरह, पोस्टल वोटों ने कांग्रेस के मौजूदा विधायक राजू गौड़ा को चिक्कमंगलुरु के श्रृंगेरी विधानसभा क्षेत्र में 201 वोटों के अंतर से बीजेपी के जीवनराज के खिलाफ जीत दर्ज करने से बचाया।

केरल में कुश्ती, दिल्ली में दोस्ती..

केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन नई कर्नाटक सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में अपनी अनुपस्थिति के बारे में पहले से ही जानते थे। हालांकि, वे खुद को विपक्षी एकता के उभरते शुभंकर के रूप में पेश करते रहे हैं, लेकिन फिर भी कांग्रेस नेताओं ने उन्हें शपथ ग्रहण समारोह में न बुलाने का फैसला किया। शपथ ग्रहण के दौरान कई गैर-बीजेपी मुख्यमंत्री मौजूद थे। दिलचस्प बात ये है कि कॉमरेड सीताराम येचुरी और भाकपा नेता डी राजा भी नजर आए। विडंबना ये है कि जब वामपंथी राष्ट्रीय नेता विपक्षी एकता को प्रमाणित करने के लिए कांग्रेस नेताओं के साथ हाथ मिला रहे थे, तब कांग्रेस के नेतृत्व वाली UDF तिरुवनंतपुरम में वामपंथी सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रही थी। टीवी पर एक साथ चल रहे दोनों विजुअल वेंकैया नायडू के उस वन-लाइनर की याद दिलाते हैं, जिसमें उन्होंने कहा था- केरल में कुश्ती, दिल्ली में दोस्ती..।

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