सियासी गलियारों में परदे के पीछे बहुत कुछ घटता है- ओपिनियन, साजिश, सत्ता का खेल और राजनीतिक क्षेत्र में आंतरिक तकरार। पेश है 'फ्रॉम द इंडिया गेट' का 15वां एपिसोड, जो आपके लिए लाया है पॉलिटिक्स की दुनिया के कुछ ऐसे ही चटपटे और मजेदार किस्से।
From The India Gate: सियासी गलियारों में परदे के पीछे बहुत कुछ होता है- ओपिनियन, साजिश, सत्ता का खेल और राजनीतिक क्षेत्र में आंतरिक तकरार। एशियानेट न्यूज का व्यापक नेटवर्क जमीनी स्तर पर देश भर में राजनीति और नौकरशाही की नब्ज टटोलता है। अंदरखाने कई बार ऐसी चीजें निकलकर आती हैं, जो वाकई बेहद रोचक और मजेदार होती हैं। पेश है 'फ्रॉम द इंडिया गेट' (From The India Gate) का 15वां एपिसोड, जो आपके लिए लाया है, सत्ता के गलियारों से कुछ ऐसे ही मजेदार और रोचक किस्से।
अंदरूनी कलह..
रायपुर में हुए कांग्रेस के महाधिवेशन में एक बार फिर ये दावा किया गया है कि पार्टी अकेले ही 2024 में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए का सामना करने के लिए एक प्रभावी विपक्षी मोर्चे को एकजुट कर सकती है। लेकिन इस तरह के दावों पर पॉलिटिकल ऑब्जर्वर अपनी हंसी नहीं रोक पा रहे हैं। चार राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक और छत्तीसगढ़ में होने वाले चुनावों पर नजर डालें तो कांग्रेस पार्टी की अंदरूनी दरारें उभर कर सामने आ जाती हैं। भारत जोड़ो यात्रा के दौरान बनाए गए एकता के मुखौटे के बावजूद बेहद कम बदलाव आया है। अगर कर्नाटक में सिद्धारमैया और शिवकुमार उर्फ डीके के बीच रस्साकशी है तो राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच कड़ा मुकाबला है। गहलोत खुद को मुख्यमंत्री बनने के लायक एकमात्र नेता मानते हैं। हालात कुछ इसी तरह के मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी हैं। मध्य प्रदेश में एक धड़े ने खुले तौर पर कमलनाथ का समर्थन किया है। यहां तक कि उनके समर्थन में ट्वीट करने के लिए PCC के ऑफिशियल हैंडल का सहारा लिया है। वहीं, बात छत्तीसगढ़ की करें तो यहां कई सीनियल लीडर चिंतित हैं कि टीएस सिंह देव मौजूदा सीएम भूपेश बघेल को अस्थिर करने के लिए कौन-सा कार्ड खेलेंगे? कई लोगों को लगता है कि अंडे सेने से पहले अंडे गिनने का ये एक क्लासिक मामला है। कुल मिलाकर अब भी इस बात को पूरे यकीन के साथ नहीं कहा जा सकता कि देश की सबसे पुरानी पार्टी, इनमें से कितने राज्यों में बहुमत वाली सीटों का प्रबंधन करेगी।
बजरंग बली को ही भेज दिया नोटिस..
रिक्वेस्ट साधारण थी। 7 दिनों के भीतर जगह खाली करें या उचित कार्रवाई का सामना करें। देखने में बिल्कुल सामान्य लग रहे इस नोटिस की सबसे अजीबोगरीब बात इसे पाने वाले का नाम है। ये नोटिस किसी साधारण शख्स को नहीं बल्कि बजरंग बली को भेजा गया है। जी हां, आपने बिल्कुल ठीक सुना..वही मारुति नंदन जिन्होंने सभी बाधाओं को पार करते हुए सीता मां की खोज के दौरान लंका में सर्जिकल स्ट्राइक की थी। रेलवे के मुताबिक, मध्य प्रदेश के मुरैना में हनुमान जी ने रेलवे की जमीन पर कब्जा कर रखा है। नोटिस में चेतावनी दी गई थी कि अगर बजरंग बली ने रेलवे की जमीन खाली नहीं कि तो उनके आवास यानी मंदिर को तोड़ दिया जाएगा। इसके अलावा, नोटिस में ये भी साफ कहा गया है कि मंदिर गिराने का खर्च भगवान को स्वयं उठाना होगा। भगवान को दिया गया नोटिस सोशल मीडिया के जरिए 'डबल इंजन' की ताकत के साथ वायरल हो गया। जैसे ही मामला बढ़ा, तो इसे आनन-फानन में वापस लिया गया और बाद में मुख्य पुजारी के नाम से एक नया नोटिस जारी किया गया।
जेबकतरे ने नेताजी को भी नहीं बख्शा...
20,000 रुपए के मोबाइल फोन का पता लगाने के लिए कोई 1 लाख रुपए खर्च करने को तैयार क्यों होगा? लेकिन जब एक नेताजी अपने उस फोन को ढूंढने के लिए पुलिस के पीछे ही पड़ जाएं, जो कि मेले में उनकी जेब से कहीं गुम हो गया, तो सवाल उठना लाजिम है। हालांकि, ये मामला तब और विचारणीय हो जाता है, जब नेताजी कहते हैं कि उसमें ऐसा खास कुछ नहीं था। यहां तक कि एक और नेता, जिसने अपना 1 लाख रुपए से ज्यादा कीमत का आईफोन खो दिया था, वो उनकी तरह टेंशन में नहीं था। इन दोनों नेताओं और उनकी तरह कई लोगों ने मेंगलुरु के एक मेले में अपना कीमती सामान खो दिया। यहां तक कि कई लोगों की नगदी भी गायब हो गई, लेकिन ज्यादातर ने चुप रहना ही ठीक समझा। वहीं, पुलिस का कहना है कि जेबकतरे का सरगना इतना पेशेवर था कि उसने किसी को नहीं बख्शा। मेले में आए करीब 15 नेताओं ने अपनी शेखी बघारने के चक्कर में बेशकीमती सामान गंवा दिए। विडंबना ये है कि इनमें से कोई भी शिकायत दर्ज नहीं कराना चाहता था। हो सकता है, उन्होंने मान लिया हो कि ये जनता के पैसे का दुरुपयोग करने का फल हो। वैसे, जैसे को तैसा वाली ये थ्योरी इन दिनों चर्चा में है कि एक साधारण से फोन खो जाने की इतनी चिंता क्यों?
From The India Gate: कहीं नफरत की आग में जल रहे नेताजी, तो कहीं जानी दुश्मन बने बाप-बेटे
बेलगाम नेताजी...
सही फ्रेम पाने के लिए जोर आजमाइश करना, नेताओं की पॉलिटिकल हैबिट बनती जा रही है। उत्तर प्रदेश के एक पूर्व मंत्री लाइमलाइट पाने के चक्कर में कई बार आलोचनाओं का शिकार भी हो चुके हैं, बावजूद इसके वो अपनी आदत में जरा भी सुधार नहीं ला रहे हैं। ये नेताजी, मुख्यमंत्री और दूसरे सीनियर लीडर्स के साथ तस्वीरें क्लिक कराके अपना रास्ता बनाते हैं। हालांकि, इसके लिए उन्हें कई बार चेतावनी भी दी जा चुकी है, लेकिन उनके रवैये में रत्तीभर भी फर्क नहीं आया। हाल ही में इन्होंने सीएम के करीब पहुंचने के चक्कर में एक मंत्री को ही धकिया दिया। इतना ही नहीं, मुख्यमंत्री के काफिले में शामिल एक बड़े अधिकारी ने भी उन्हें रोकने की भरपूर कोशिश की, लेकिन वो किसी से नहीं संभले। मामला बिगड़ता देख राज्य के नेताओं ने इसके लिए केंद्र से गुहार लगाई। केंद्र के हस्तक्षेप के बाद फिलहाल नेताजी की लगाम कस दी गई है।
पार्टी में का बा...
एक भोजपुरी सिंगर इन दिनों अपने गाने को लेकर विवादों में हैं। 'यूपी में का बा' पार्ट-2 गाने के बाद, जबसे इन्हें नोटिस थमाया गया है, तभी से बवाल मचा हुआ है। हालांकि, नोटिस मिलने के बाद राज्य का मुख्य विपक्षी दल सिंगर के सपोर्ट में आ गया है। यहां तक कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने सिंगर के समर्थन में बयान तक दे दिया, जिससे कयास लगाए जाने लगे कि अब पार्टी में इनकी एंट्री जल्द होगी। इतना ही नहीं, पार्टी सरकारी नोटिस की धज्जियां उड़ाने वाले बयानों से कहीं आगे बढ़ चुकी है। पार्टी अध्यक्ष ने सभी संबंधितों को निर्देश दिए हैं कि वो सिंगर को कानूनी मदद सुनिश्चित कराएं। वैसे, महिलाओं के सम्मान के मामले में इनका अपना ट्रैक रिकॉर्ड दयनीय है। ऐसे में जब पार्टी के नेता इस तरह के मुद्दों के लिए खड़े होते हैं, तो सवाल उठना स्वाभाविक है। वैसे, शायद पार्टी को लगता है कि ये दिखावटी पहल उनकी महिला विरोधी छवि को बदलने में मदद कर सकती है।
फ्लॉवर की पावर..
हवाइयन संस्कृति में, अपने बाएं कान के पीछे फूल पहनने का मतलब है कि सामने वाला रिलेशन में या विवाहित है। वहीं, दाएं कान की ओर पहनने का मतलब है कि सामने वाला अविवाहित है और संभवतः प्यार की तलाश में है। लेकिन हवाई से करीब 13,000 किमी दूर जब एक सीनियर लीडर ने अपने दाएं कान पर फूल लगाया तो बहुरंगी सवाल खड़े हो गए। दरअसल, हाल ही में जब कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने बजट पेश किया, तो इस दौरान कांग्रेस नेता सिद्धारमैया अपने दाएं कान में फूल लगाकर अनोखे ढंग से विरोध करते दिखे। कीवी मेले हूवा' (कान पर फूल लगाना) ये एक कन्नड़ कहावत है, जिसका मतलब है 'दूसरों को मूर्ख बनाना'। वैसे, इस नौटंकी से पॉलिटिकल गोल हासिल हुआ या नहीं, ये तो पता नहीं लेकिन फ्लॉवर प्रोटेस्ट ने फूलों के दाम बढ़ाने में जरूर मदद की। वहीं, कांग्रेस कार्यकर्ता बीजेपी के रिपोर्ट कार्ड के साथ बेंगलुरू की सड़कों पर गेंदे का फूल बांटते नजर आए। वैसे, ये कोई नहीं जानता कि इस आइडिया के पीछे कौन है या किसने इसे सिद्धारमैया को सुझाया? लेकिन कयास कई तरह के लगाए जा रहे हैं। एक थ्योरी ये कहती है कि सिद्धारमैया की आपत्ति के बावजूद कांग्रेस आलाकमान ने उन पर इस तरह का सर्कस करने का दबाव डाला। वहीं, दूसरी ओर ये भी कहा जा रहा है कि 'कीवी मेले हूवा' प्रकरण के पीछे कांग्रेस के राजनीतिक रणनीतिकार सुनील कानुगोल का हाथ है।
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