सार
सियासी गलियारों में परदे के पीछे बहुत कुछ घटता है- ओपिनियन, साजिश, सत्ता का खेल और राजनीतिक क्षेत्र में आंतरिक तकरार। पेश है 'फ्रॉम द इंडिया गेट' का 14वां एपिसोड, जो आपके लिए लाया है पॉलिटिक्स की दुनिया के कुछ ऐसे ही चटपटे और मजेदार किस्से।
From The India Gate: सियासी गलियारों में परदे के पीछे बहुत कुछ होता है- ओपिनियन, साजिश, सत्ता का खेल और राजनीतिक क्षेत्र में आंतरिक तकरार। एशियानेट न्यूज का व्यापक नेटवर्क जमीनी स्तर पर देश भर में राजनीति और नौकरशाही की नब्ज टटोलता है। अंदरखाने कई बार ऐसी चीजें निकलकर आती हैं, जो वाकई बेहद रोचक और मजेदार होती हैं। पेश है 'फ्रॉम द इंडिया गेट' (From The India Gate) का 14वां एपिसोड, जो आपके लिए लाया है, सत्ता के गलियारों से कुछ ऐसे ही मजेदार और रोचक किस्से।
'बाजरे' की ताकत…
भारत का बाजरा संवर्धन अभियान लगातार जारी है। बाजरा को पोषण का नया स्रोत मानने और दुनिया को इसे ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करने के ऐलान के फौरन बाद ही संसद के मेनू में एक नई डिश जोड़ दी गई है। जी हां, आपने बिल्कुल सही अनुमान लगाया, ये कुछ और नहीं बल्कि अलग-अलग तरह के मोटे अनाजों से बनी खिचड़ी है। दरअसल, संसद के फूड कोर्ट से 'बाजरे के मेन्यू' की एक तस्वीर सामने आई है। इसमें मोटे अनाजों से बनी मिक्स खिचड़ी के अलावा बाजरे की खिचड़ी को शामिल किया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2018 में बाजरे को पौष्टिक अनाज के नए स्रोत के तौर पर आगे बढ़ाया था। इसके बाद 2018 को 'राष्ट्रीय बाजरा वर्ष' घोषित किया गया। इसका उद्देश्य वैश्विक उत्पादन को प्रोत्साहित करना था और प्रधानमंत्री के इस विचार को 70 देशों ने अपनाया। मोदी की पहल पर अमल करते हुए संयुक्त राष्ट्र ने भी 2023 को 'अंतरराष्ट्रीय बाजरा वर्ष' घोषित किया है। अमेरिका ने भी बाजरा अनाज उत्पादन के लिए जागरूकता अभियान चलाने का फैसला किया है। बता दें कि कुपोषण से लड़ने के सरल और प्रभावी तरीके के रूप में भारत मोटे अनाज के उत्पादन को बढ़ावा देने की योजनाओं MIIRA (बाजरा इंटरनेशनल इनिशिएटिव फॉर रिसर्च एंड अवेयरनेस) में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। भारत दुनिया में बाजरा का सबसे बड़ा उत्पादक है।
बोस इज राइट...
बॉस इज ऑलवेज राइट...लगता है कि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने अपनी बंगाल इकाई को ये संदेश साफतौर और स्पष्ट तरीके से दे दिया है। एक बड़े फेरबदल (13 राज्यों के गवर्नर बदले गए) के बीच, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस को रिटेन (यथावत) करते हुए केंद्रीय नेतृत्व ने उनकी रणनीति का समर्थन किया है। बोस ने बंगाल में बीजेपी नेताओं के भारी दबाव के बावजूद अपने एक्स काउंटरपार्ट (पूर्ववर्ती) के उलट मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ अच्छे संबंध स्थापित किए हैं। दरअसल, राज्य के भाजपा नेताओं द्वारा खुले तौर पर उनके खिलाफ बगावत करने के बाद बोस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी। लेकिन उन्हें वहां से हटाने या वापस बुलाने की दलीलों पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया गया। ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री भी ममता बनर्जी से आए दिन किसी न किसी मुद्दे को लेकर भिड़ने से अच्छा उनके साथ मिलकर काम करने की रणनीति को ज्यादा बेहतर मानते हैं। बता दें कि पीएमओ ने बोस को केवल 15 मिनट का समय दिया था, लेकिन पीएम के साथ उनकी बैठक एक घंटे तक चली। ऐसे में बीजेपी के राज्य प्रमुख सुकांत मजूमदार ने सबसे पहले उस संदेश को समझने की कोशिश की, जो पीएम मोदी ने बोस के साथ बैठक को 45 मिनट के लिए बढ़ा कर दिया था। राज्यपाल आनंद बोस ने भी मजूमदार को अपना पक्ष समझाया। लेकिन विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी का बोस विरोधी रवैया अब भी जारी है। अधिकारी को खुश रखने और उनके साथ संबंधों को मजबूत करने के लिए बोस ने अपनी सेक्रेटरी नंदिनी चक्रवर्ती को जाने देने का फैसला किया है। बता दें कि नंदिनी राजभवन में तैनात ममता की विश्वासपात्र थीं। लेकिन बीजेपी उनके खिलाफ थी और उन्हें हटाना चाहती थी। ऐसा करने से लगता है कि बोस को कुछ वक्त मिल गया है, लेकिन इसके बावजूद उन पर नजर रखी जा रही है।
कांग्रेस का थरूर फोबिया...
कांग्रेस की किचन कैबिनेट एक बार फिर सांसद शशि थरूर को कार्यसमिति से बाहर रखने की रणनीति बना रही है। आगामी पूर्ण सत्र में पैनल का पुनर्गठन किए जाने की संभावना है। थरूर ब्रिगेड उनके कांग्रेस वर्किंग कमेंटी (CWC) में एंट्री के लिए पर्याप्त समर्थन जुटाने के लिए पहले से ही एक्शन मोड में है। वरिष्ठ नेता एके एंटनी के बेटे अनिल एंटनी, जिन्होंने हाल ही में बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री पर कांग्रेस के रुख के खिलाफ खुलकर बात की थी, थरूर के पूर्ण समर्थन में हैं। थरूर का समर्थन करने वाले अन्य लोगों में कार्ति चिदंबरम, सलमान सोज और एम के राघवन शामिल हैं। वैसे, कांग्रेस का असंतुष्ट गुट G-23 अब मुरझाता हुआ दिख रहा है, लेकिन बावजूद इसके हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके बेटे दीपेंद्र हुड्डा द्वारा दिल्ली में आयोजित भोज में इसके एक बार पुन: संगठित होने का संकेत देने वाले कुछ नए घटनाक्रम नजर आ रहे हैं। इस भोज में आनंद शर्मा और अश्विनी कुमार समेत असंतुष्ट नेता मौजूद रहे। मेन्यू में उत्तर भारतीय व्यंजन शामिल थे, जो कांग्रेस के भविष्य को स्वादिष्ट बनाने के लिए खासतौर पर राजनीतिक चर्चा के लिए जरूरी थे।
From The India Gate: कहीं नफरत की आग में जल रहे नेताजी, तो कहीं जानी दुश्मन बने बाप-बेटे
मुफ्त उपहारों की बारिश...
कर्नाटक में इन दिनों मुफ्त उपहारों की बारिश हो रही है। कुकर, टीवी, कपड़ा, शराब और खाने जैसी चीजें आसमान से घर-घर टपक रही हैं। बता दें कि इस घटना के पीछे कोई मौसम संबंधी रहस्य नहीं है, बल्कि ये एक सीजनल संकेत है, जो चुनाव के मौसम का स्वागत करता है। कुछ क्षेत्रों में, लोगों को आसपास के केंद्रों में मुफ्त तीर्थ यात्रा की पेशकश भी की जाती है। इस कवायद से राज्य के स्वामित्व वाली परिवहन निगमों के खजाने भी भरते हैं। एक तरफ जहां, वोटर्स लोकल तीर्थ स्थानों के दर्शन के बाद खुद को धन्य महसूस करते हैं, वहीं इन वोटर्स को प्रभावित करने वाले स्थानीय नेताओं को एक अलग ही तरह की 'तीर्थयात्रा' पर ले जाया जाता है। ऐसे ही सैकड़ों स्थानीय नेता बैंकॉक दर्शन के बाद हाल ही में लौटे हैं और कई नेता अगली उड़ान के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं। लेकिन इन सभी घटनाक्रमों के बीच एक पेचीदा सवाल दिमाग में घूम रहा है। वोटर्स को शपथ दिलाई जाती है कि वे उस पार्टी को ही अपना वोट देंगे, जिसने उनकी यात्रा का खर्च उठाया है, लेकिन बैंकॉक के भक्त किसकी कसम खाएंगे?
पुलिस की पहल पर शक की निगाहें..
बंगाल के राजनीतिक गलियारों से कुछ ऐसी खबरें आ रही हैं, जिनका स्वागत नहीं किया जा सकता। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की दुआरे पुलिस पहल को शक की निगाह से देखा जा रहा है। विपक्षी दल इसे पंचायत चुनाव से पहले मतदाताओं को डराने की चाल बता रहे हैं। वे बीरभूम जिले के रामपुरहाट के एक गांव से हाल ही में वायरल हुए एक वीडियो का हवाला देते हैं, जहां पुलिस पंचायत के बारे में जनता की राय इकट्ठा करती दिख रही है। इस दौरान निवासियों से कहा गया है कि वे अपनी उन शिकायतों को लिस्ट बनाएं, जिनका समाधान पंचायत ऑफिस में नहीं किया जा सका है। भाजपा नेता सजल घोष ने इसे पुलिस की गुंडागर्दी बताते हुए कहा कि यह मतदाताओं को दबाव में लाने की साजिश है। वहीं, सीपीएम नेता सुजान चक्रवर्ती इस पहल की और ज्यादा आलोचना करते हुए कहते हैं कि यह TMC की मदद के नाम पर एक चाल थी। वहीं, TMC के मीडिया सेल के प्रभारी देबांशु मुखर्जी ने लोगों की चिंताओं को दूर करने के लिए इस पहल को अनोखा कदम बताते हुए सही ठहराया है। दुआरे पुलिस ने साबित कर दिया है कि हमारी सरकार के पास छिपाने के लिए कुछ नहीं है। हम लोगों की शिकायतों और समस्याओं को समझने और उन्हें दूर करने के लिए पूरी तरह से पारदर्शी हैं।
ब्यूरो-क्रेजी...
इसे नौकरशाही कबड्डी का खेल कहें, जहां एक खिलाड़ी अपने प्रतिद्वंद्वी को बेदम करने की कोशिश करता है, भले ही उसकी सांस उखड़ रही हो। कुछ इसी तरह का सत्ता संघर्ष तमिलनाडु की नौकरशाही के ऊंचे तबके में चल रहा है, जहां डीजीपी और मुख्य सचिव दोनों ही अपने करियर के आखिरी पड़ाव पर हैं। हालांकि, वे पिछले फेरबदल के दौरान गैर-तमिलनाडु अफसरों को इन पदों पर कब्जा करने से रोकने में सफल रहे थे, लेकिन राज्य सरकार ने उन्हें उनके संबंधित पदों से रिटायर करने का फैसला किया है। जहां तक, केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से लौटने वाले कुछ सीनियर अफसरों के साथ पुलिस के शीर्ष अधिकारियों के संबंध का सवाल है तो पिच अब एक सहज परिवर्तन के लिए बिल्कुल स्पष्ट है। लेकिन मुख्य सचिव पद के लिए उत्तर-भारतीय मूल के दो अफसरों के बीच होड़ है। दोनों ने कार्ड को अपने सीने से लगा रखा है। लेकिन ऐसा लगता है कि एक मशहूर कॉलीवुड एक्टर के हमनाम अधिकारी, सबसे आगे चल रहे हैं। मानना पड़ेगा कि इस रियल ड्रामा में रील अवतारों से ज्यादा सस्पेंस है।
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