सियासी गलियारों में परदे के पीछे बहुत कुछ घटता है- ओपिनियन, साजिश, सत्ता का खेल और राजनीतिक क्षेत्र में आंतरिक तकरार। पेश है 'फ्रॉम द इंडिया गेट' का नौवां एपिसोड, जो आपके लिए लाया है दो धारी तलवार और अर्थ का अनर्थ होने का मजेदार किस्सा।
From The India Gate: सियासी गलियारों में परदे के पीछे बहुत कुछ होता है- ओपिनियन, साजिश, सत्ता का खेल और राजनीतिक क्षेत्र में आंतरिक तकरार। एशियानेट न्यूज का व्यापक नेटवर्क जमीनी स्तर पर देश भर में राजनीति और नौकरशाही की नब्ज टटोलता है। अंदरखाने कई बार ऐसी चीजें निकलकर आती हैं, जो वाकई बेहद रोचक और मजेदार होती हैं। पेश है 'फ्रॉम द इंडिया गेट' (From The India Gate) का नौवां एपिसोड, जो आपके लिए लाया है, सत्ता के गलियारों से कुछ ऐसे ही मजेदार और रोचक किस्से।
दोधारी तलवार...
गालियां देना, खासकर सोशल मीडिया पर, सभी राजनीतिक दलों की आदत बन चुकी है। यहां तक कि लोग अब नेताओं के परिजनों को भी इसमें घसीटने से नहीं हिचकिचाते। कुछ इसी तरह का मामला यूपी में 'छोटे नेताजी' के साथ तब हुआ, जब एक महिला नेत्री ने शब्दों के बाण चलाते हुए उनके साथ दुर्व्यवहार किया। इसको लेकर एफआईआर भी दर्ज की गई। लेकिन, नेताजी को जब एहसास हुआ कि महिला के खिलाफ एक्शन लेना एक तरह से दोधारी तलवार की तरह है, तो उन्होंने पुलिस को उसे गिरफ्तार न करने की सलाह दी। हालांकि, लोग ये अच्छी तरह जानते हैं कि ये सब नेताजी की उदारता नहीं, बल्कि उनकी राजनीतिक मजबूरी थी। उन्हें ये बात समझ आ चुकी थी कि अगर उन्होंने महिला नेत्री के खिलाफ एक्शन लिया तो उससे जुड़े एक खास वर्ग का वोट बैंक छिटक जाएगा। साथ ही नेताजी को यह भी बताया गया कि महिला केवल उनकी पार्टी के सोशल मीडिया सेल द्वारा शुरू किए गए विवाद का विरोध कर रही थी। वैसे, समय से जमानत देना भी एक पॉलिटिकल काम ही है।
दोहरा झटका..
कुछ घंटों के भीतर दो अलग-अलग घटनाओं में उलझने के बाद ये आईपीएस अधिकारी सोशल मीडिया की सुर्खियों में आ गए। दरअसल, अखिलेश यादव हाल ही में अपनी पार्टी के सोशल मीडिया प्रमुख की गिरफ्तारी के बाद पुलिस हेडक्वार्टर पहुंचे थे। यहां आईपीएस अधिकारी ने उन्हें चाय ऑफर की, लेकिन उन्होंने इससे साफ इनकार कर दिया। अखिलेश बाबू द्वारा चाय का ऑफर ठुकराने के बाद आईपीएस अधिकारी के चेहरे के हाव-भाव ऐसे थे, मानो काटो तो खून नहीं। इस घटना को हुए अभी ज्यादा वक्त भी नहीं हुआ था कि कुछ ही घंटों में एक और वीडियो सामने आया, जिसमें ये आईपीएस अधिकारी एक मीडियाकर्मी के काम में दखल देते नजर आ रहे हैं। हालांकि, जब अधिकारी ने पत्रकार के काम में अड़ंगा लगाने की कोशिश की तो उसने भी उन्हें करारा जवाब दिया। यहां तक कि सरकार द्वारा साहब के खिलाफ एक्शन लेने का वादा करने के बाद ही मीडिया का गुस्सा शांत हुआ। लेकिन यूपी में होने वाले कुछ बड़े आयोजनों को ध्यान में रखते हुए फिलहाल इन आईपीएस अधिकारी के खिलाफ कड़ा एक्शन लेने में देरी की जा रही है।
वोट बैंक पॉवर...
एक राज्यसभा सांसद, जो कभी इतिहास के असिस्टेंट प्रोफेसर थे, मध्य प्रदेश में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की आंखों के तारे बने हुए हैं। आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले इस युवा चेहरे का राजनीतिक करियर काफी तेजी से आगे बढ़ रहा है। बेहतरीन वक्ता और कुशल नेतृत्व के चलते उन्हें पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गुड बुक में माना जाता है। साथ ही इस बात की अटकलें भी तेज हैं कि इस साल होने वाले मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले केंद्रीय कैबिनेट पद के लिए उनके नाम पर विचार किया जा सकता है। ये युवा नेता आदिवासी बहुल पश्चिमी मध्य प्रदेश में भाजपा के लिए अच्छा काम कर सकते हैं। बता दें कि राज्य की आबादी में 21 प्रतिशत से भी ज्यादा हिस्सा आदिवासी मतदाताओं का हैं। ऐसे में आदिवासी वोटों को साधने के लिए इनसे बेहतर विकल्प फिलहाल नजर नहीं आ रहा है।
From The India Gate: इधर चूर-चूर हुए अफसरों के अरमान, तो उधर CM ने ही दे डाला राज्यपाल को सजेशन
अर्थ का अनर्थ...
उत्तर भारतीय नेताओं के भाषणों का कन्नड़ में अनुवाद करने में सक्षम लोगों को खोजने में काफी दिक्कतें आ रही हैं। ये मुश्किल बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही राष्ट्रीय दलों के लिए सिरदर्द बनी हुई है। बीजेपी जहां मतदाताओं का विश्वास जीतने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह पर निर्भर है, वहीं कांग्रेस गांधी परिवार के भाई-बहन पर भरोसा जताती आ रही है। लेकिन दोनों ही पार्टियों द्वारा रखे गए ट्रांसलेटर नेताओं की भावनाओं को हिंदी या अंग्रेजी में व्यक्त करने में अब तक पूरी तरह असफल रहे हैं। ताजा मामला कांग्रेस के ना नायकी (महिला सम्मेलन) के दौरान हुआ, जहां लक्ष्मी हेब्बलकर प्रियंका गांधी के जोश और आकांक्षा से भरे शब्दों का अनुवाद करने में पूरी तरह से विफल रहीं। वो अक्सर मूल भाषण से भटक जाती थीं। इसी तरह, भारत जोड़ो यात्रा के दौरान धरम सिंह के बेटे अजय सिंह और नागराज यादव ने मोलाकलमुर और दावणगेरे में जब अपने भाषण शुरू किए तो भीड़ हैरान रह गई। बता दें कि एक बार तो राहुल गांधी को भी अपने ट्रांसलेटर को सिर्फ इसलिए रोकना पड़ गया था, क्योंकि वह मूल भाषण से भटक गया था। इसी तरह, बीजेपी को उस वक्त असहज पल का सामना करना पड़ा, जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह मांड्या दौरे पर पहुंचे। शाह ने सभा में मौजूद लोगों से पूछा- क्या उन सभी का वैक्सीनेशन हो गया है? लेकिन ट्रांसलेटर इसे कुछ और समझा और उसने जनता से पूछा-क्या आप सभी कों केंद्र सरकार की योजनाओं का लाभ मिला है? वो तो भला हो, अमित शाह का जिन्होंने मामले को भांपते हुए फौरन स्थिति को संभाल लिया।
केरल का ट्रंप कार्ड...
गणतंत्र दिवस की परेड में जब भी अपनी झांकी दिखाने की बात आती है तो केरल हमेशा अधर की स्थिति में होता है। पिछले साल भी सामाजिक संदेश की कमी का हवाला देते हुए इनके प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया था। हालांकि, इस साल ऐसा लगता है कि केरल ने जिस अवधारणा का सुझाव देकर ट्रंप कार्ड खेला है, वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिल के बेहद करीब है। गणतंत्र दिवस की झांकी के लिए केरल इस बार नारी शक्ति के कई पहलुओं को दिखाएगा। विभिन्न क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वाली 24 महिलाएं कर्तव्य पथ से निकलने वाली झांकी का हिस्सा होंगी। कलारिपयट्टू और ड्रम के अलावा झांकी में गोत्र कलामंडलम के कलाकार होंगे, जो पलक्कड़ जिले के अट्टापदी में आदिवासी गीत और नृत्य रूपों पर काम करते हैं। कलामंडलम का नेतृत्व नानचम्मा द्वारा किया जाता है, जिन्होंने बेस्ट फीमेल वॉइस कैटेगरी के लिए नेशनल फिल्म अवॉर्ड जीता था। वहीं, झांकी में अन्य कलाकार केरल की महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए किए गए महान कामों को दिखाएंगे। निश्चित रूप से ये सब प्रधानमंत्री की पसंदीदा योजनाओं 'बेटी बचाओ बेटी पढाओ', उज्ज्वला योजना और नारी शक्ति के साथ तालमेल बैठाने में मदद करेगा।
चुनाव से पहले फेरबदल संभव...
राज्य के बजट सत्र से ठीक पहले मध्य प्रदेश मंत्रिमंडल में फेरबदल की संभावनाएं काफी तेज हो गई हैं। हालांकि, प्रदेश के मुखिया 'मामा' जी ने मुख्यमंत्री के रूप में अपनी स्थिति को और अधिक सुरक्षित व मजबूत करने के लिए पर्याप्त काम किए हैं। भाजपा करीब 6-7 मंत्रियों को हटा सकती है और फेरबदल कर नए चेहरों को शामिल किया जा सकता है। नए चेहरों को पेश करने के पीछे ऐसा माना जा सकता है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान नए स्वरूप वाली कैबिनेट के साथ चुनावी सीजन में प्रवेश करने जा रहे है। ऐसा करने के पीछे सबसे बड़ी वजह सत्ता विरोधी लहर (एंटी-इनकम्बेंसी) को कम करना भी है।
रॉयल्टी Vs लॉयल्टी...
राजपरिवार के लोग रेड कार्पेट के लिए इतने अभ्यस्त हैं कि वे अक्सर पार्टी कार्यकर्ताओं को गलत तरीके से परेशान करते हैं। यहां तक कि जब से राजघराने का एक सदस्य बीजेपी में शामिल हुआ और सत्ता के गलियारों में महत्वपूर्ण स्थान हासिल किया, तभी से उस पर और उसके 'कैडर' पर इस तरह के कई आरोप लगते रहे हैं। पिछले साल भी बीजेपी के स्थानीय कार्यकर्ताओं ने पार्टी मुख्यालय को चिट्ठी लिखकर इन नेता और उनके समर्थकों के प्रति नाराजगी जाहिर की थी। साथ ही यह भी कहा था कि ये सभी उनके प्रति असम्मानजनक व्यवहार कर रहे हैं। उस वक्त भले ही ये मामला शांत हो गया था, लेकिल मध्य प्रदेश में चुनावी मौसम नजरदीक आने के साथ ही एक बार फिर असंतोष पनपने लगा है। अब देखना ये है कि बीजेपी क्या इसको लेकर कोई सख्त कदम उठाएगी या फिर वो इस शाही संकट में फंसने का जोखिम लेगी।
ये भी देखें :