सियासी गलियारों में परदे के पीछे बहुत कुछ घटता है- ओपिनियन, साजिश, सत्ता का खेल और राजनीतिक क्षेत्र में आंतरिक तकरार। एशियानेट न्यूज का व्यापक नेटवर्क जमीनी स्तर पर देश भर में राजनीति और नौकरशाही की नब्ज टटोलता है। पेश है 'फ्रॉम द इंडिया गेट' (From The India Gate) का चौथा एपिसोड, जो आपके लिए लाया है 'चाणक्य' नीति से लेकर 'मौसम' की आड़ लेने वाले नेताओं की रोचक कहानी।
From The India Gate: सियासी गलियारों में परदे के पीछे बहुत कुछ होता है- ओपिनियन, साजिश, सत्ता का खेल और राजनीतिक क्षेत्र में आंतरिक तकरार। एशियानेट न्यूज का व्यापक नेटवर्क जमीनी स्तर पर देश भर में राजनीति और नौकरशाही की नब्ज टटोलता है। अंदरखाने कई बार ऐसी चीजें निकलकर आती हैं, जो वाकई बेहद रोचक और मजेदार होती हैं। पेश है 'फ्रॉम द इंडिया गेट' (From The India Gate) का चौथा एपिसोड, जो आपके लिए लाया है 'चाणक्य' नीति से लेकर 'मौसम' की आड़ लेने वाले नेताओं की रोचक कहानी।
'चाणक्य' नीति :
भारतीय जनता पार्टी के मास्टर रणनीतिकार, जिन्हें अक्सर पार्टी का 'चाणक्य' कहा जाता है, उनके पास पूरी चुप्पी के साथ मुद्दों को हल करने की क्षमता है। इसकी एक झलक हाल ही में विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रहे कर्नाटक में देखने को मिली। बीजेपी के अंदरूनी लोग आज भी उस घटना को याद करते हैं, जब एक पूर्व मुख्यमंत्री और राज्य के वरिष्ठ नेता के बीच 'सुलह' हुई थी। ये दोनों नेता एक ही जिले के हैं और इनके बीच लंबे समय से चल रहा मनमुटाव कहीं न कहीं राज्य में पार्टी को नुकसान पहुंचा रहा था। ऐसे में 'चाणक्य' ने हस्तक्षेप किया और दोनों नेताओं से एक कॉमन वैन्यू पर मुलाकात की। दोनों नेता चाणक्य के इर्द-गिर्द बैठे। हॉल में सन्नाटा था, कोई कुछ नहीं बोल रहा था और वे सिर्फ टीवी देख रहे थे। थोड़ी देर बाद चाणक्य को बताया गया कि मीडिया इस पूरे मामले में अपडेट के लिए बाहर इंतजार कर रहा है। इस पर चाणक्य ने चुटकी लेते हुए कहा- चलो, जाएंगे..। इसके बाद उन्होंने दोनों नेताओं को माइक थमाया और कैमरे के सामने ले गए। कुछ देर बाद चाणक्य ने दोनों नेताओं के साथ विजयी मुद्रा में हाथ उपर उठाया और मीडिया के सामने मुस्कुराते हुए पोज दिए। अगले दिन जैसा सभी को लग रहा था, उसी के मुताबिक मीडिया की सुर्खियों में इस बात के ही चर्चे थे कि कैसे चाणक्य ने सिर्फ 15 मिनट में दो दिग्गजों के बीच के मतभेद को पूरी तरह खत्म कर दिया। वैसे, भाजपा की कर्नाटक इकाई में टकराव को दूर करने के लिए कुछ इसी तरह के 'इलाज' की जरूरत थी।
कुर्सी की वेदना :
कर्नाटक में संभावित मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर चुप्पी है। आकांक्षी विधायक मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के मंत्रालय में 6 खाली सीटों में से एक पाने के लिए उत्सुक हैं। यहां तक कि आरएसएस भी मंत्रिमंडल विस्तार को देखने के लिए उतावला है। संघ को लगता है कि ये मई, 2023 के विधानसभा चुनाव में कुरुबा, गोलारू, गंगामातास्थरु, वाल्मीकि और पंचमसालिस के मतदाताओं को लुभाने का एक मौका है। हालांकि, इन सभी चर्चाओं के बीच एक पूर्व सीएम पार्टी के भीतर अपने आलोचकों के मंत्रिमंडल में शामिल होने की संभावना को देखते हुए बिल्कुल भी उत्सुक नहीं हैं। जाहिर तौर पर, यह जानते हुए कि ऐसा करना वास्तव में हॉर्नेट्स के घोंसले को हिलाने जैसा है, मुख्यमंत्री वसवराज बोम्मई कैबिनेट विस्तार की पहल करने वाले आखिरी शख्स होंगे। अब सभी की निगाहें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पर टिकी हैं, जो जल्द ही कनार्टक दौर पर जा रहे हैं। वैसे भी आखिर हां या ना का फैसला दिल्ली से ही होना है।
'मौसम' की आड़...
केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन के पास मीडिया की मुश्किलों से बाहर निकालने की एक अनोखी कला है। वो कई बार ऐसी स्थितियों से बचने के लिए 'मौसम' का उपयोग करते हैं। दरअसल, पी जयराजन द्वारा अपने साथी कॉमरेड ईपी जयराजन पर वित्तीय आरोप लगाए जाने के बाद जब मीडिया ने उनसे सीपीएम के भीतर बढ़ते विवादों के बारे में पूछा तो पिनराई विजयन ने बहुत ही ठंडे दिमाग से जवाब देते हुए कहा- यहां (दिल्ली में) वास्तव में बहुत ठंड है। वहीं, जब मीडिया ने कुछ दिनों पहले CPM के इडुक्की के बाहुबली विधायक एमएम मणि द्वारा CPI के राष्ट्रीय नेता अनी राजा पर किए गए तीखे हमले पर उनकी प्रतिक्रिया जानन चाही तो पिनराई के बचाव में अचानक 'बारिश' आ गई। ये एक अप्रत्याशित बारिश थी। हालांकि, पिनराई ने जवाब देते हुए कहा- आपके यहां इस बार अच्छी बारिश हुई, है ना। जब उनसे राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के साथ चल रहे कोल्ड वॉर के बारे में पूछा गया, तो पिनराई ने मजेदार अंदाज में कहा- मास्क चेहरे को ढंकने में मदद करते हैं। कई बार पिनराई विजयन आक्रामक और अटैक मोड में चले जाते हैं। लेकिन जब उनके पास सवालों के जवाब नहीं होते तो अक्सर मौसम की आड़ लेने लगते हैं।
'कांग्रेस जोड़ो' यात्रा का वक्त..
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का स्वागत करने वाले मुस्कुराते चेहरे तमिलनाडु में आमने-सामने हैं। दरअसल, कांग्रेस की नेतृत्व परिवर्तन की खोज तमिलनाडु में खटाई में पड़ती दिख रही है। इसकी प्रमुख वजह तमिलनाडु के एक नेता का पूर्व वित्त मंत्री के बेटे की राह में रोड़ा बनना है। इसके अलावा तीन अन्य नाम जिनकी चर्चा थी, उनके अवसर भी आंतरिक लड़ाई की वजह से खत्म हो गए। जिस चिंगारी की वजह से हाल ही में आग लगी थी, वो एक व्यवसायी और विधायक को पार्टी के पद से हटाना था। इससे गुस्साए नेताओं ने दिल्ली में डेरा डाला और इस बात को सुनिश्चित किया कि यह आदेश एक घंटे के अंदर रद्द कर दिया जाए। लेकिन प्रमुख नेता को हटाने का उनका प्रयास विफल रहा। कई मैराथन चर्चाओं के बाद भी इसका कोई विकल्प नहीं निकल सका। हालांकि, मीटिंग में एक महिला नेता के नाम पर विचार किया गया, लेकिन बाद में उसे भी ठुकरा दिया गया। आखिर में, देश की सबसे पुरानी पार्टी ने उसी नेता के नेतृत्व में 2024 के चुनाव लड़ने का फैसला किया। हालांकि, सभी गुटों को उचित सीट मिले, ये सुनिश्चित करने के लिए एक समिति का गठन जरूर किया जाएगा। राहुलजी...वाकई, अब कांग्रेस जोड़ो यात्रा का वक्त है।
इम्पोर्टेड लीडर..
तेलंगाना में कांग्रेस के लिए और बड़ी मुश्किलें खड़ी होती दिख रही हैं। दरअसल, दो बड़े नेताओं- जग्गारेड्डी और वी हनुमंत राव ने पीसीसी चीफ के तौर पर रेवनाथ रेड्डी की नियुक्ति के खिलाफ खुले तौर पर विद्रोह कर दिया है। उनकी आपत्ति इस बात को लेकर है कि रेवनाथ तेलुगुदेशम पार्टी से कांग्रेस में आए हैं। ऐसे में रेवनाथ की तरक्की उनके जैसे लोकल नेताओं के भविष्य की संभावनाओं पर ग्रहण लगाती है। इस 'देसी बनाम विदेशी' लड़ाई में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह भी हैदराबाद में डेरा डाले हुए देखे गए। लगता है कि तेलंगाना में मणिकम टैगोर को पार्टी प्रभारी के पद से हटाने के लिए पहले ही एक समझौता फार्मूला तैयार कर लिया गया था। टैगोर एक मजबूत आवाज थे, जिन्होंने रेवनाथ का समर्थन किया। पूर्व पीसीसी प्रमुख उत्तम कुमार रेड्डी और तेलंगाना विधायक दल के नेता मल्लू भट्टी विक्रमार्क जैसे कई और नेताओं का रेवनाथ विरोधी ब्रिगेड में शामिल होना, इस बात की ओर संकेत करता है कि ये सब नए पीसीसी प्रमुख की नियुक्ति से पहले ही तय हो चुका था। उम्मीद है कि एआईसीसी नेतृत्व अब उस नाम पर विचार करेगा जो सभी को स्वीकार हो।
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