'जिहाद' पर बोलते हुए मदनी का कोर्ट और सरकार पर बड़ा इल्जाम-'दंगों के दौरान भी मुसलमान मारे जाते हैं, लूटे भी मुसलमान जाते हैं'

जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने जिहाद के नाम पर हिंसा और उग्रवाद फैलाने वाले संगठनों को कड़ी चेतावनी दी है। दिल्ली के रामलीला मैदान में तीन दिवसीय आम सत्र के रविवार को समापन पर एक प्रस्ताव पारित किया गया।

नई दिल्ली. प्रमुख मुस्लिम संगठनों में शामिल जमीयत उलेमा-ए-हिंद (Jamiat Ulema-e-Hind Chief Mahmood) ने जिहाद के नाम पर हिंसा और उग्रवाद फैलाने वाले संगठनों को कड़ी चेतावनी दी है। हालांकि सरकार और कोर्ट पर बड़ा इल्जाम भी लगाया गया कि दंगों में भी मुसलमान मारे जाते हैं और लूटे मुसलमान ही जाते हैं। वहीं, बेकसूरों को जेल में भी डाल दिया जाता है। दिल्ली के रामलीला मैदान में तीन दिवसीय आम सत्र के रविवार को समापन पर एक प्रस्ताव पारित किया-'जिहाद के नाम पर हिंसा और उग्रवाद फैलाने वाले संगठन हमारे सहयोग के हकदार नहीं हैं।' पढ़िए पूरी डिटेल्स...

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अरशद मदनी के विवादास्पद बयान के बाद आया ये अपडेट, पढ़िए 10 बड़ी बातें

1. मौलाना अरशद मदनी के बयान से पैदा हुए विवाद के बीच जमीयत ने कई प्रस्ताव पारित किए और एक संदेश जारी किया। इसमें कहा गया, "जमीयत उलेमा-ए-हिंद धार्मिक नफरत और संप्रदायवाद को देश की अखंडता के लिए सबसे बड़ा खतरा मानती है। यह हमारे लंबे विरासत और लोकाचार( heritage and ethos) से मेल नहीं खाता है।"

2. प्रस्ताव में कहा गया कि विभिन्न धर्मों के बीच मैत्रीपूर्ण और भाईचारे के संबंध भारतीय समाज की गौरवपूर्ण और स्थायी पहचान रहे हैं। इन संबंधों में दरार पैदा करने की किसी भी योजना को राष्ट्रीय अपराध माना जाना चाहिए। यह संदेश मंच से जमीयत प्रमुख महमूद मदनी ने रविवार(13 फरवरी) को मंच से पढ़ा।

3. जमीयत का यह प्रस्ताव ऐसे समय में आया है, जब इससे पहले दिन में जमीयत प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने यह दावा करके विवाद खड़ा कर दिया था कि 'ओम' और 'अल्लाह' एक ही भगवान हैं, जिनकी 'मनु' पूजा करते हैं। उनकी इस टिप्पणी पर मंच पर मौजूद एक प्रमुख जैन भिक्षु ने माइक पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। इसके बाद अन्य धार्मिक नेताओं सहित सभी मंच से उतरकर चले गए थे।

4.मदनी के इस बयान के विरोध में अधिवेशन में पहुंचे जैन मुनि लोकेश ने मंच से ही असहमति जताते हुए कहा था- आपने जो बात कही है, मैं सहमत नहीं हूं और मेरे सारे धर्म के संत कोई इससे सहमत नहीं हैं। ये जो कहानी ओम, मनु, अल्लाह उसकी औलाद, ये फालतू की बाते हैं। सारा पलीता लगा दिया एकता और सद्भावना के सम्मेलन में।

5. मौलाना महमूद असद मदनी की अध्यक्षता में जमीयत के 34वें आम सत्र के दौरान मुस्लिम संगठन ने संकल्प लिया कि वे कभी भी धार्मिक नेताओं और पवित्र पुस्तकों का अपमान नहीं करेंगे। वे समाज को आतंकवाद और घृणा से मुक्त करेंगे और देश की रक्षा और सम्मान के लिए प्रयास करेंगे।

6.मौलाना मदनी ने मुसलमानों को आंतरिक और बाहरी दुश्मनों(nternal and external enemies) के बारे में भी आगाह किया, जो उन्हें मनोवैज्ञानिक रूप से निराश, उकसाने और गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं।

7. प्रस्ताव पढ़ा गया कि 'जिहाद के नाम पर चरमपंथी और हिंसक प्रवृत्ति का प्रचार करने वाले संगठन देश हित या इस्लाम धर्म के मामले में हमारे सहयोग और समर्थन के हकदार नहीं हैं। वे जिहाद का इस्तेमाल पूरी तरह से गलत बयानी में कर रहे हैं।

8. प्रस्ताव में कहा गया कि 'बलिदान, वफादारी, और राष्ट्र के प्रति देशभक्ति हमारा राष्ट्रीय और धार्मिक कर्तव्य है, हमारा धर्म और हमारा देश पहले है, यह हमारा नारा है, मातृभूमि के लिए अपनी जान देना और इसके सम्मान के लिए मरना, यह हमारे बुजुर्गों ने हमें सिखाया है।'

9. हालांकि जमीयत ने अपने प्रस्ताव में आरोप लगाया कि आम धारणा है कि न्यायपालिका राज्य के दबाव में काम कर रही है। कहा गया-'न्याय किसी भी सभ्य समाज के लिए सबसे बड़ा मानक है। प्रत्येक शासक का पहला कर्तव्य अपनी प्रजा को समान और निष्पक्ष न्याय प्रदान करना है।'

10. प्रस्ताव में आरोप लगाया गया कि सुप्रीम कोर्ट और देश की अन्य अदालतें भारत के सबसे बड़े लोकतंत्र के संरक्षक और ताकत हैं, लेकिन कुछ के लिए जमीयत ने कहा, आम धारणा है कि अदालतें राज्य के दबाव में काम कर रही हैं।' प्रस्ताव में कहा गया, श्यह स्थिति कतई स्वीकार्य नहीं है। यदि न्यायपालिका स्वतंत्र नहीं है, तो देश भी स्वतंत्र नहीं है।'

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