जानिए कैसे बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश और पंजाब के नए जमाने के किसान MSP से बाहर निकलकर ड्रैगन फ्रूट, थाई ग्वावा, सेब और केसर जैसी नकदी फसलों से कमा रहे हैं लाखों। पढ़ें भारत में Green Revolution 2.0 की पूरी कहानी।
Green Revolution 2.0: पारंपरिक फसलों और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के भरोसे रहने वाले किसानों की छवि अब बदल रही है। बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों के कुछ साहसी किसान नई सोच और जोखिम लेकर ऐसी खेती कर रहे हैं जो न सिर्फ उन्हें लाखों की कमाई दिला रही है, बल्कि देश में 'ग्रीन रिवोल्यूशन 2.0 (Green Revolution 2.0)' की नींव भी रख रही है।
26 वर्षीय सोनू, बिहार के पूर्णिया जिले से हैं। 2018 में जब उन्होंने मक्का छोड़कर ड्रैगन फ्रूट की खेती शुरू की तो गांव वालों ने मजाक उड़ाया। लेकिन आज यही किसान 150 रुपये प्रति किलो की दर से फल बेच रहे हैं और उनके ग्राहक आसपास के जिलों में हैं। सोनू बताते हैं कि शुरुआत में डर था लेकिन यह मेरे जीवन का सबसे सही फैसला साबित हुआ।
सीकर जिले की संतोष देवी ने 2015 में जब राजस्थान की तपती गर्मी में सेब के पेड़ लगाने की सोची तो खुद भी असमंजस में थीं। लेकिन HRMN-99 वैरायटी के सेब ने चमत्कार कर दिया। आज उनके खेत में 100 से ज्यादा पेड़ हैं और सालाना 40 लाख रुपये तक की कमाई हो रही है।
विदिशा जिले के लेखक-किसान विजय मनोहर तिवारी ने 2021 में थाई ग्वावा (Thai Guava) की खेती शुरू की। ये फल दिल्ली और मुंबई में प्रीमियम गिफ्टिंग के लिए लोकप्रिय हैं। विजय ने बताया कि 12 बीघा की मेरी ग्वावा फैक्ट्री ने 2023-24 में 42 टन उत्पादन दिया। हर दिन की माइक्रोमैनेजमेंट जरूरी है। विजय तिवारी कहते हैं कि अगर इंदौर या अहमदाबाद से वेस्ट एशिया के लिए चार घंटे की उड़ान मिले तो हम दिल्ली-मुंबई से तीन गुना ज्यादा कीमत पर फल बेच सकते हैं।
अजमेर के गुरकीरत सिंह ने MBA करने के बाद केसर (Saffron Farming) की तरफ रुख किया। 30 लाख रुपये लगाए और पहली फसल में ही इन्वेस्टमेंट वसूल कर लिया। अब हर साल 60 लाख रुपये की कमाई कर रहे हैं।
नेशनल सैंपल सर्वे 77वें राउंड के अनुसार, भारतीय कृषि परिवारों की औसत मासिक आय महज 3,798 रुपये थी। ऐसे में MSP पर निर्भरता से हटकर नई फसलों की ओर बढ़ना न सिर्फ आर्थिक रूप से सही है बल्कि जल संरक्षण और पोषण सुरक्षा की दृष्टि से भी उपयोगी है। कृषि विशेषज्ञ ओमप्रकाश कि हर जगह गेहूं या धान उगाना व्यावहारिक नहीं है। नई नकदी फसलें किसानों को प्रेरणा देती हैं और कंज्यूमर्स को न्यूट्रिशन देने में सहायक होती।
केंद्र सरकार की मिशन फॉर इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट ऑफ हॉर्टिकल्चर (MIDH) और नेशनल हॉर्टिकल्चर बोर्ड (NHB) नई फसलों को बढ़ावा देने के लिए तकनीकी सहायता और वित्तीय मदद दे रहे हैं। हालांकि, कृषि विशेषज्ञ सुधीर पंवार कहते हैं कि जमीनी स्तर पर इन योजनाओं का असर अभी भी सीमित है।