जिनका इस्लाम पर भरोसा नहीं, वो मस्जिदों के लाउडस्पीकर का शोर क्यों सुनें, PIL पर गुजरात HC का सरकार को नोटिस

Loudspeaker in Mosques : जनहित याचिका में कहा गया है कि लाउडस्पीकर के इस्तेमाल से आम लोगों को काफी परेशानी होती है और एक नागरिक को कुछ ऐसा सुनने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता जिसे वे सुनना नहीं चाहता। शादी जीवन में एक बार होती है, लेकिन मस्जिदों का शोर हर रोज सुनना पड़ता है। 
 

Asianet News Hindi | Published : Feb 16, 2022 6:36 AM IST

अहमदाबाद। गुजरात हाईकोर्ट (Gujrat High court) ने मंगलवार को राज्य सरकार को एक जनहित याचिका (PIL) पर नोटिस जारी किया। इस याचिका में गुजरात सरकार को मस्जिदों में लाउडस्पीकरों (Lounspeaker ban in Mosques) पर प्रतिबंध लगाने के निर्देश देने की मांग की गई है। चीफ जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस आशुतोष जे शास्त्री की डिवीजन बेंच ने गुजरात के गांधीनगर जिले के एक डॉक्टर धर्मेंद्र विष्णुभाई की याचिका पर यह नोटिस जारी किया है।
 
200 डेसिबल से अधिक आवाज वाले लाउडस्पीकर बज रहे
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पूछा कि राज्य में ध्वनि प्रदूषण नियमों के अनुसार माइक्रोफोन के उपयोग के लिए कितनी आवाज की अनुमति दी गई है। इस पर याचिकाकर्ता की तरफ से बताया गया कि 80 डेसिबल तक की आवाज की अनुमति है, लेकिन मस्जिदें 200 डेसिबल से अधिक आवाज वाले लाउडस्पीकर का उपयोग कर रही हैं। 

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सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला
याचिकाकर्ता ने भारत में चर्च ऑफ गॉड बनाम केकेआर मैजेस्टिक कॉलोनी वेलफेयर एसोसिएशन और अन्य के मामले में वर्ष 2000 में सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) के फैसले का जिक्र किया, जिसने ध्वनि प्रदूषण नियंत्रित करने के संबंध में निर्देश जारी किया था। याचिकाकर्ता ने कहा कि कोई भी धर्म या धार्मिक संप्रदाय यह दावा नहीं कर सकता कि प्रार्थना या पूजा के लिए या धार्मिक त्योहारों को मनाने के लिए लाउडस्पीकर का उपयोग धार्मिक अभ्यास का एक अनिवार्य हिस्सा है और संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित है। चर्च ऑफ चर्च में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार भगवान के मामले में, लाउडस्पीकर का उपयोग करने का कोई अधिकार नहीं है और एक नागरिक को कुछ ऐसा सुनने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है जो वे नहीं चाहते हैं। 

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शादी के सवाल पर कहा - यह जीवन में एक बार ही होती है 
शादियों में बैंड और डीजे द्वारा होने वाले ध्वनि प्रदूषण के मामले में जवाब देते हुए याचिकाकर्ता ने कहा कि यह एक व्यक्ति के जीवन में एक बार ही होता है, जबकि मस्जिद में हर रोज लाउडस्पीकर का उपयोग होता है। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि जो लोग इस्लाम में विश्वास नहीं करते हैं उन्हें मस्जिद द्वारा इस तरह के ध्वनि प्रदूषण को क्यों सुनना पड़ता है? यहां तक ​​​​कि जब गणपति उत्सव के दौरान लाउडस्पीकर के उपयोग पर प्रतिबंध है, तो मस्जिदों के मामलों में इसे लागू क्यों नहीं किया जा सकता है। याचिकाकर्ता की दलीलों और याचिका में शामिल मुद्दे पर विचार करते हुए, अदालत ने सरकार को नोटिस जारी किया। कोर्ट ने सरकार से 10 मार्च 2022 तक जवाब मांगा है। 

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