Hijab Row : हाईकोर्ट ने सुरक्षित रखा फैसला, 11 दिन चली सुनवाई में कुरान से लेकर विदेशी कोर्ट तक का हुआ जिक्र

Hijab Verdict reserved in Karnataka high court : कर्नाटक हाईकोर्ट ने आज शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध के खिलाफ लगाई गई मुस्लिम छात्राओं की याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया। 11 दिन चली सुनवाई में अंतरात्मा की आजादी, आवश्यक धार्मिक अभ्यास से लेकर कुरान और हदीस तक का जिक्र किया गया। अगले हफ्ते अदालत अंतिम फैसला सुना सकती है। 

Asianet News Hindi | Published : Feb 25, 2022 12:28 PM IST / Updated: Feb 25 2022, 06:38 PM IST

Hijab Verdict reserved in Karnataka high court : कर्नाटक हाईकोर्ट ने आज शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध (Hijab ban in educational institutions) के खिलाफ लगाई गई मुस्लिम छात्राओं की याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया। 11 दिन चली सुनवाई में अंतरात्मा की आजादी, आवश्यक धार्मिक अभ्यास से लेकर कुरान के सूरे और हदीस तक का जिक्र किया गया। सबरीमाला, शायरा बानो केस से लेकर तुर्की और मलेशिया की कोर्ट के फैसले सामने रखे गए। लंबी सुनवाई के बाद चीफ जस्टिस रितुराज अवस्थी ने फैसला सुरक्षित रख लिया। उन्होंने सभी पक्षों से अपने लिखित प्रतिवेदन दाखिल करने को कहा है। सुनवाई शुरू होते ही चीफ जस्टिस रितुराज अवस्थी ने कहा कि कृपया अपनी दलीलें शाम 4 बजे से पहले खत्म कर लें, क्योंकि हमें आज 4 बजे उठना है। कहा- हम अंतहीन बहस नहीं कर सकते हैं। इसके बाद एक याचिकाकर्ता की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता युसूफ मुच्छला बहस में शामिल हुए। पढ़ें हाईकोर्ट में कैसे चली सुनवाई… 

हमें तो सिर्फ कपड़े से सिर ढकने दें, इससे रोकना सही नहीं : मुच्छल 
अधिवक्ता यूसुफ मुच्छल ने कहा– हमने तो सिर्फ इतना कहा है कि सिर को कपड़े से ढकने दिया जाए। हमें ऐसा करने से रोकना कॉलेज के लिए सही नहीं है। हदीस भी कहती है कि चेहरे को ढकने की नहीं, बल्कि हिजाब पहनने की जरूरत है। सरकार अपने जवाब में इस स्थिति को स्वीकार करती है। इस पर एजी नवदगी बोले – कुरान में जो कहा गया है वह अनिवार्य होते हुए भी जरूरी नहीं है। यह शायरा बानो फैसले के विपरीत है।

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1400 वर्षों की प्रथा का जिक्र, रमजान में छूट देने की मांग , CJ बोले अंतिम फैसला देंगे

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए अधिवक्ता डॉ. कुलकर्णी ने कहा यह गलत है कि हिजाब पहनना सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के खिलाफ है। इस पर प्रतिबंध से सामाजिक ताने-बाने में गड़बड़ी दिख रही है। (शिवमोगा में बजरंग दल कार्यकर्ता की हत्या का जिक्र किया)  स्कूलों और कॉलेजों में हिजाब पर प्रतिबंध लगाने से मुस्लिम लड़कियों के मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ा है, खासकर हिजाब पहनने वाली लड़कियों पर। हिजाब को 1,400 वर्षों से एक सांस्कृतिक प्रथा और रिवाज के रूप में देखा जाता है। डॉ. कुलकर्णी के सवाल पर जस्टिस दीक्षित ने कहा – हम आपके लिखे हर पैराग्राफ को पढ़ेंगे। इसके बाद कुलकर्णी ने रमजान में हिजाब की अनुमति मांगी, जिस पर चीफ जस्टिस ने कहा– हम सुनवाई के अंतिम चरण में हैं। अंतिम आदेश पारित करेंगे। 

मीडिया पर प्रतिबंध की याचिका खारिज
सुनवाई के दौरान अधिवक्ता बालकृष्ण ने मीडिया पर स्कूली छात्राओं के फोटो खींचने पर प्रतिबंध लगाने का निर्देश देने की मांग की। उन्होंने आरोप लगाया कि मीडिया 16 से 18 उम्र की छात्राओं का पीछा कर रहा है। उनके हिजाब हटाते हुए फोटो क्लिक कर रहा है। हाईकोई ने उनसे इसके सबूत मांगे। इसके बाद कोर्ट ने कहा कि आपके सबूत यह स्थापित नहीं करते कि मीडिया छात्राओं का पीछा कर रहा है। और यदि यह समस्या है तो आप पुलिस, बाल आयोग या महिला आयोग के पास जाएं। कोर्ट नहीं। इसके बाद उनकी याचिका खारिज कर दी गई। 

रातों रात नहीं खड़ा हुआ आंदोलन, बाहर से हो रही फंडिंग, CBI, NIA से जांच कराएं 
सुनवाई के दौरान एडवोकेट सुभाष झा ने कहा कि हिजाब प्रतिबंध के बाद हुआ आंदोलन रातों--रात नहीं खड़ा हुआ। इसे बाहर से फंडिंग मिल रही है। एनआईए और सीबीआई से इसकी फंडिंग की जांच कराने के आदेश दें। उन्होंने कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (CFI)का जिक्र किया और कहा कि इसके पीछे इसी संस्था का हाथ है। शिवमोगा में बजरंग दल कार्यकर्ता की हत्या में भी यही संगठन है। 

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इलाहाबाद हाईकोर्ट का जिक्र, वकील को धोती कुर्ते में नहीं दिया था प्रवेश 
झा ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक वाक्ये का जिक्र करते हुए कहा कि वहां एक वकील धोती--कुर्ते में पेश होना चाहते थे, लेकिन उन्हें इसकी इजाजत नहीं मिली। उन्होंने तर्क दिया कि यह पोशाक स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की है, लेकिन इसके बाद भी कोर्ट ने उन्हें अनुमति नहीं दी। झा ने कहा कि 1973 में पहली बार ड्रेस कोड का मुद्दा कोर्ट में आया और तब से यह लगातार सामने आ रहा है। यह कट्‌टरपंथ को फैलाने वालों द्वारा किया जा रहा है। झा ने कहा– इस्लाम की उत्पत्ति सऊदी अरब से हुई और 2 साल पहले उन्होंने महिलाओं को कार ड्राइविंग की अनुमति दे दी। आपको पहले देश के कानून का पालन करना चाहिए। 

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